एक
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जब तक पीठ पर बच्चे को
बाँध कर रणक्षेत्र में कूदती
न दिखे स्त्री,
संसार ये मानता ही नहीं
कि हर क्षण एक युद्ध
लड़ रही है स्त्री !
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दो
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ईश्वर का एक चमत्कार
खटकता रहा मुझे जीवन भर
स्त्री की पीठ पर उगे
जब जब देखे छह अतिरिक्त हाथ!
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तीन
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हर पुरुष की
सफलता के पीछे
सदैव रहा
एक स्त्री का हाथ !
पर एक स्त्री अकेली ही
लड़ती रही
सफलता पाने के लिये,
क्योंकि पुरुष के अहम को
कभी भाया ही नहीं
उसके पीछे खड़े रहना !
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चार
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बस चाभी भर दो
चौबीस घण्टे टिक-टिक
चलती रहेगी
घड़ी नहीं जानती
कार्य के घण्टे होते हैं
बस आठ!
वो बिन चाभी की एक घड़ी है..
स्त्री भी कहाँ जानती है!
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पाँच
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कुछ स्त्रियाँ
पुरुषों के पदचिन्हों पर
चलते हुये,भरती हैं
उनके कदमों की धूल
अपनी माँग में !
कुछ स्त्रियाँ
पुरूषों से परे हटकर
छापती हैं अपने पदचिन्ह,
माँग में सिंदूर से अधिक
उन्हें भाती है
बिवाइयों में धूल !
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~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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