कठिन दिन है।
कठिन इसलिए कि एक शिक्षक का दिन श्याम-पटल, चॉक, डस्टर, पुस्तक में कट जाए तो वो सरल है।
निर्धन क्षेत्र से अभाव का भाव लिये छात्राओं के हाथ से 'नोट' लेना , गिनना, कम होने पर ये सोचना क्या इसकी पूर्ति करने लायक धन है मेरे थैले में, कटे-फटे 'नोट' होने पर शिक्षिका होने के नाते एक हल्की सी झिड़की देना, कुछ 'नोट' एकदम न चल पाने की स्थिति में वापिस कर देना, वापिस पाने वाले के चेहरे पर नया नोट न ला पाने की विवशता को पढ़ना, फिर डायरी में कम-अधिक-सही राशि दर्ज़ कर लेना।
गुरु का ये कार्य तो नहीं !
उसने सारी राशि मेरी मेज़ पर बिखेर दी। मैं समय-सीमा बीत जाने के बोध से पहले से झुंझला रही हूँ।
"ये क्या है? इतने फुटकर पैसे? अब इनको गिनने में न मालूम कितना वक्त लगेगा।"
एक रुपये के सिक्के, दो रुपये के सिक्के, दस का नोट , बीस का नोट... सबसे बड़ा एक ही नोट है...सौ का..वो भी तुड़ा मुड़ा सीला अपने अस्तित्व पर शर्माता हुआ।
सौ बच्चों की कक्षा में अक्सर फ़ीस में कोई न कोई 'नोट' नकली, कटा-फटा, बिल्कुल न चल पाने वाला आ ही जाता है। क्लर्क हमारी त्रुटि बता कर लेने से इनकार कर देता है। भरपाई हमें ही करनी पड़ती है।
गर्मी, उमस पहले से ही मन को चुभ रही है। और चुभ रहा है ये फुटकर पैसे गिनना। गिनते गिनते अचानक से याद आयी एक मिट्टी की गुल्लक। अपने घर के बच्चों को देखा है उसमें पैसे डालते हुये.... दो सौ का नोट....पाँच सौ का नोट...!!
हाथ पसीज जाते हैं....थम जाते हैं...मैं उसकी आँखों में देखकर पूछती हूँ...
"ये पैसे क्या गुल्लक फोड़कर लायी हो?"
"जी,मैम...पापा ने कहा है दो महीने बाद फीस के पैसे दे पाएंगे।" लड़की धीरे से बोलती है।
मैं उसकी आँखों से अपनी आँखें हटा लेती हूँ। मैं नहीं चाहती वो अपनी शिक्षिका को द्रवित देखे। द्रवित होना कोमल भाव है। मुझे सशक्त छवि ही रखनी है!
मैं पैसे गिनने लगती हूँ , मन में कहती हूँ....पढ़ती रहना लड़की....ईश्वर करे तुम्हारी गुल्लक कभी ख़ाली न हो..और प्रत्यक्ष में उससे कहती हूँ...
"ठीक है...जाओ...रसीद कल मिलेगी।"
दृढ़ता के साथ कह सकती हूँ ये दुनिया का सबसे सुंदर 'पूंजी निवेश' है !
(My Experience With Students)
~टि्वंकल तोमर सिंह
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