Wednesday 13 December 2017

रेनकोट

रेनकोट
एक घंटे इंतज़ार किया। बारिश थमने का नाम ही नही ले रही।दिल कड़ा किया, दुपट्टे से खुद को अच्छी तरह लपेटा। बारिश से नही पर लोगों की नज़रों के ओलों से तो बचा ही लेगा।
एक्टिवा की चाभी पर उंगलियां फिराई, जैसे उन्हें सांत्वना दे रही हूँ, बस 25 मिनट की ही तो बात है फिर घर आ जायेगा।जी कड़ा कर के चल ही दी।
3-4 मिनट में ही बारिश ने पूरी और बुरी तरह भिगो दिया।बारिश की तेज बूंदे आलपिनों की बौछार जैसे चुभ रही है। ठंडी हवा बैरन बनी है।दांत किटकिटाते जा रहे है।जब इतना भीग ही गयी हूँ तो अब रुकने का क्या फायदा।
काश रेनकोट होता आज साथ !
ऑपरेशन के बाद एनेस्थेसिया से अभी आधी ही बाहर आयी हूँ, समय का बोध नही हो पा रहा। कहाँ हूँ, कौन हूँ। ये सब अजनबी लोग कौन है मेरे चारों ओर। तभी स्ट्रेचर पर लेटे लेटे ही ऊपर सामने तुम्हारा चेहरा दिखता है।तुम्हारी आवाज़ आती है कानों में।
"टिया..मैं हूँ..सब ठीक है !!"
और मैं निश्चिंत होकर आंखें मूंद लेती हूँ।
अजीब सा नशा है ।आधी जगी हूँ आधी सोयी हुयी हूँ।चेतन हूँ.... अचेतन हूँ ....कुछ बोध नही।
शरीर सूक्ष्म बन गया है उड़ा जा रहा है।सपना है या सच है कुछ पता नही चल रहा....
बहुत तेज़ बारिश हो रही है....
पर मैं मुस्कुरा रही हूँ..क्योंकि मैंने रेनकोट पहना हुआ है।


Twinkle  Tomar

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