पुरानी किताबों की पुरानी दुकान थी।
सरसों से तेल निकाला जा चुका था, किताबें सरसों की खली की तरह खोजट पड़ी थीं।
साहित्य प्रेमी हूँ ,उस खली में से भी तेल सोखने पहुंच गयी।
एक तरफ अमृता प्रीतम की पिंजर की पूरो की बोली लगी तीस रुपये में। नागराज भी वहाँ थे अपनी पुरानी कॉमिक्स साम्राज्य के साथ इतरा रहे थे।
न मालूम क्यों ऐसा लगा कि वो इतरा भी रहे हैं और हेय दृष्टि से पिंजर में बंद पूरो को देख रहे हैं।
आख़िरकार नागराज को भी लेने का मन बन गया बच्चों के लिये।किताबों के सौदागर से उनकी क़ीमत पूछी।
हनक के साथ वो बोला -सौ रुपये (जिस पर प्रिंट दाम पड़ा था आठ रुपये।)
नागराज के दम्भ का रहस्य मुझसे छुपा न रहा फिर !
Twinkle Tomar
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