Sunday 29 April 2018

महरी महिमा पुराण

रेडियो पर गाना चल रहा है
पिया ऐसो जिया में समाय गयो रे
कि मैं तन मन की सुध बुध गवां बैठी
हर आहट पर समझूँ वो आय गयो रे...

नायिका दोपहर बीतने के बाद अलसायी सी बिस्तर पर पड़ी है। उसके कान समेत सभी पांचों इंद्रियां दरवाजे पर लगी हुई है। तभी दरवाजे की घंटी बजती है....
प्रफुल्लित नायिका के पैरों में रोलर स्केट्स लग जाते है । उल्लास से वो दरवाजा खोलती है।
पर सामने खड़े व्यक्ति को देखकर उसकी सारी खुशी काफ़ूर हो जाती है ....
मन मे सड़ा सा भाव आता है ..
अरे ये तो रोज रोज खिटपिट करने वाले 'वो' आये है..

नायिका उन्हें चाय वगैरह देने में व्यस्त हो जाती है। अभी भी उसके कान समेत छह इंद्रियां ( ध्यान दें अबकि बार छह ) दरवाजे की ओर लगी हैं।

फिर से दरवाजे की घंटी बजती है। नायिका के मन में फिर उल्लास जागता है। जैसे भक्त मंजीरा मनका सब छोड़कर भगवान का स्वागत करने पहुंचता है,वैसे ही नायिका चाय समोसा सब छोड़ के दरवाजे की ओर भागती है....
अबकि बार सामने खड़े व्यक्ति को देखकर उसका मन व्यक्ति के चरणों मे लोटने जैसा हो जाता है।
पर मन को बांध लेती है।
मन में उमंग के साथ जोर शोर से भाव उमड़ता है ( ध्यान दीजिए भाव इस बार उमड़ता है)...

अरे ये तो मेरे बर्तनों के साथ खिटपिट करने वाली 'वो' आयीं हैं....

#महरी_महिमा_पुराण
Twinkle Tomar




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