Tuesday 11 September 2018

हिन्दी है हम

सुनयना ने कॉफी का मग उठाया और बालकनी में कुर्सी पर अपनी पसंदीदा जगह पर जा बैठी। आज का दिन उसके जीवन में विशेष था। अतीत की किताब से एक भूला बिसरा पन्ना फिर उसकी आँखों के आगे नाच गया था।

सुनयना अतीत की गहराइयों में उतराने लगी।
पंद्रह वर्ष पहले की सपनीली रात की छाप आज भी उसके ज़ेहन में ताज़ा है जब वो अभिनय ठाकुरों की पत्नी बनकर अपने ससुराल पहुंची थी। घर भर के लोगों ने उसका भव्य स्वागत किया था। जेवर गहनों से उसे लाद दिया गया था मुंह दिखाई में। उसकी सखियाँ उसकी किस्मत से जल रही थी। हिंदी मीडियम से पढ़ी सुनयना इतनी भाग्यशाली निकली कि उसे एक मल्टी नेशनल कंपनी पर उच्च पद पर आसीन बढ़िया सैलरी पाने वाला दूल्हा मिल गया।

शादी के कुछ दिनों बाद सुनयना जब अभिनय के साथ उसके ऑफिस की पार्टी में जाती तो सबसे हाय हेलो के आगे कुछ बोल ही नही पाती थी। उसकी कंपनी में काम करने वाले सभी लोग इंग्लिश में ही बात करते थे। सुनयना उनकी बात पूरी समझ लेती थी और अपने मन में इंग्लिश के पूरे वाक्य भी बना लेती थी। पर उसे बोल पाने का साहस नही कर पाती थी।  जब अभिनय के दोस्त उनके घर आते थे तब भी यही होता था। उसके गले में शब्द घुट कर रह जाते थे। दोस्त समझते थे भाभी जी रिजर्व्ड हैं या फिर dumb हैं।

अभिनय को भी लगने लगा कि उसने सुनयना की डिग्री देखकर, उसकी सुंदरता पर मोहित होकर  उससे विवाह तो कर लिया पर सुनयना उसके लायक नही है। कल को अगर अभिनय को फॉरेन में शिफ्ट होने पड़ा तो सुनयना वहां कैसे एडजस्ट कर सकेगी? अकसर उसकी खीज़ सुनयना पर निकलती।

"कितनी dumb हो , हिंदी में एम ए की डिग्री लेकर बैठी हो। इंग्लिश का तो एक सेंटेंस नही बोल सकती। इंग्लिश स्पोकन कोर्स ही जॉइन कर लो।"

सुनयना उसे क्या समझाती? हिंदी मीडियम से पढ़ी लड़की उच्च शिक्षित होकर भी हिंदी भाषी ही रह जाती है। इंग्लिश स्पोकन कोर्स वैसे ही है जैसे एक लंगड़े का बैसाखी लेकर चलना। बैंगलोर जैसे बड़े शहर में इंग्लिश कम आने के कारण उसके ज्ञान का कोई महत्व ही नही रह गया।

धीरे धीरे सुनयना को समझ आने लगा कि उसे इस घर में वो सम्मान नही मिल सकता जो मिलना चाहिए।  अभिनय का सुनयना से विवाह बस इस आधार पर चल रहा था कि उसे अपना घर चलाने के लिये ,माता पिता की सेवा करने के लिये, सेक्स के लिये एक HIV मुक्त स्त्री का शरीर चाहिये था।

सुनयना का स्वाभिमान अधिक दिनों तक उस घर के घुटन भरे माहौल में उसे कैद न रख सका। एक दिन सब कुछ छोड़ छाड़ कर वो अपने मायके वापस आ गयी। माता पिता ने समझाया, पर खानदान में उनकी बदनामी वाला उनका विलाप उसे डिगा नही सका।

पढ़ाई ही अब उसका हथियार थी जीवन की जंग को जीतने के लिये। देखते देखते उसने बी एड किया। और देश भर के नामी गिरामी विद्यालयों में जहां हिंदी टीचर की भर्ती का विज्ञापन निकलता फ़ौरन फॉर्म भर देती। अंततः उसका चयन मुम्बई के विख्यात मदनानी इंटरनेशनल स्कूल में हिन्दी अध्यापिका के पद पर हो गया।

जल्दी ही उसने सफलता की सभी पायदानें हिंदी भाषा पर सशक्त पकड़ के कारण नाप डाली। पत्र पत्रिकाओं में उसके हिंदी लेख छपने लगे। शहर भर में जहाँ कहीं भी हिन्दी पर सेमिनार होते, हिन्दी भाषा के उत्थान के लिये गोष्ठी होती, हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार के लिये कोई सम्मेलन होता ,वहां सुनयना सिंह का नाम जरूर आता।

मुम्बई जैसे शहर में जहां इंग्लिश और मराठी का बोलबाला है ,वहाँ रईस खानदान के 'इंग्लिश स्पीकिंग पीपल' अपने बच्चों को हिन्दी की ट्यूशन पढ़वाने के लिये उसके आगे लाइन लगा कर खड़े रहते थे।

आज स्कूल ओवर होने के बाद उसने देखा एक ग्यारह बारह साल का लड़का अपनी मॉडर्न मॉम के साथ उसकी ओर आ रहा था।

लड़के ने गुड आफ्टरनून विश किया और मां ने बोला - "Mam , this is my son Aryan. Would you please give tuition to my son for Hindi ?"

सुनयना बिना झिझके आत्मविश्वास के साथ बोल रही थी-  "क्यों नही ? क्या परेशानी है इसको हिंदी में ?

" Well, he cannot write words correctly in Hindi. And he is not able to frame sentences. Hindi essays are far beyond his capacity. "

सुनयना हँसते हुये बोली " कोई बात नही, ये सब बहुत बड़ी बात नही है। मैं इसे जरूर पढ़ाऊंगी। हम हिंदुस्तानी है, अगर हमें हिन्दी न आये तो ये बहुत शर्म की बात है। मैं नही चाहती भाषा को लेकर कैसी भी शर्मिन्दगी किसी भी बच्चे को झेलनी पड़े।"

" शुक्रिया मैम, मुझे लगा आप इतना बिजी है। शायद आपके पास वक़्त न हो। इसलिये मैं परेशान थी।" - अबकी बार महिला अपनी इंग्लिश छोड़कर हिन्दी में आभार व्यक्त करने को मजबूर हो गयी थी।

"कोई बात नही आप इसे छोड़ जाइये। मैं स्कूल ओवर होने के बाद यहीं ट्यूशन देती हूँ। आप एक घंटे के बाद आ जाइयेगा।"

सुनयना आर्यन की ओर मुख़ातिब होकर बोली-
" अच्छा बेटा , हम आज एक निबंध लिखने की कोशिश करेंगे। कोई आसान सा टॉपिक लेते है।..उम्म ...हाँ.... मेरे पिता मेरे आदर्श ..!
क्या नाम है तुम्हारे पिता का ? "

" अभिनय ठाकुर" ....!

Twinkle Tomar

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