एक 'चतुर' नौजवान एक कॉलेज में पढ़ता था। उसको 'स्त्री का मौन मुखर है' इस विषय पर प्रतियोगिता में भाषण देना था। उसकी मित्र एक पढ़ाकू लड़की थी, उसने इस विषय पर एक लेख तैयार किया था। 'चतुर' नौजवान ने उसका रजिस्टर देख लिया और तुरंत गणना कर ली कि इसे भाषण के रूप में पढ़ा जा सकता है।
उसने तुरंत मोबाइल से भाषण की फोटो खींची । घर पर एक कागज में लिखा और अच्छे से रट लिया।
कार्यक्रम में जब उसने वही भाषण अच्छे से सही भाव भंगिमाओं के साथ पढ़ा तो उसकी बहुत वाह वाह हुई। और प्रथम पुरस्कार के लिए उसका नाम चुन लिया गया।
लड़की के एक मित्र ने उसे इस कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग सुनाई।लड़की हैरान रह गयी बिना उसकी अनुमति के उसके लेख का प्रयोग किया गया। उसी के शब्द और कहीं पर उसे क्रेडिट तक नही दिया गया।
लड़की ने अकेले में बड़ी 'उदारता' के साथ उस नौजवान से इस विषय में बात की। उनकी काफी सरस और सहज बातचीत इस विषय पर हुई। नौजवान ने उसे भरोसा दिलाया - बहन, मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ ? मैं मां सरस्वती का उपासक हूँ, 'विद्या' का पुजारी हूँ। अवश्य ही मुझसे भूल हुई है। आगामी पुरस्कार वितरण में जब मुझे पुरुस्कार के लिये बुलाया जाएगा , मैं आपका नाम लेकर इस गलती को सुधार दूंगा कि इसका श्रेय आपको जाता है।
पुरस्कार वितरण हुआ ,तारीख बीत गयी। नाम न लिया जाना था न लिया गया।
फिर एक दिन उस 'चतुर' नौजवान से उस लड़की ने उसके दो दोस्तों के सामने इस बात का जिक्र कर दिया । उसने तुरंत चाशनी से भी मीठे मधुर शब्दों में कहा - "मौका मिला तो जनता के सामने मंच पर मैं अपनी इस बहिन को श्रेय जरूर दूंगा।"
लेकिन उसने ऐसा किया नही।
एक बार पुनः कॉलेज में एक वाद विवाद, साहित्य, कविता पर कार्यक्रम होने थे। उन्हीं मित्रों में से एक मित्र ने लड़की से अनुमति लेकर उसी लेख में प्रयुक्त कविता की कुछ पंक्तियों को लड़की के नाम के साथ पढ़ा और साथ में ये जिक्र भी किया ये जो नौजवान महोदय मेरे साथ बैठे है , इन पंक्तियों को मुझसे पहले कई बार पढ़ चुके है। ये जरूर मेरी बात से सहमत होंगे।
अब उस 'चतुर' नौजवान का मुंह देखने लायक था।
" आप विद्या के कितने ही बड़े पुजारी क्यों न हों, अगर आपकी नीयत में खोट है तो आपके विद्या के मंदिर स्थापित शुद्ध देसी के दिये की लौ में भी खोट रहेगा।"
Twinkle Tomar
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