Thursday, 11 October 2018

स्मृति भर शेष नही हो तुम


तुम्हारे आने की
कितनी प्रतीक्षा थी

तुम्हारा जाना
इतनी जल्दी होगा
ये भी नही पता था

अच्छा है
जाने का अर्थ
मात्र जाना होता है

दूर जाना नही
और हृदय से दूर जाना
तो बिल्कुल भी नही

फिर भी
इस औपचारिक
विदा की घड़ी में
सीली हैं आंखें
जैसे कि विदा हो
एक वधु की
हर्ष भी है,विषाद भी

हमने पढ़ा है न
अच्छे लोगों की
दुनिया को बहुत जरूरत है
इसीलिये ईश्वर उन्हें
एक जगह टिकने नही देता

भले ही
दूसरों के लिये ये
पुरुस्कार सरीखा हो
और स्वयं उस
अच्छे इंसान के लिये
दण्ड सरीखा।

मेरे भी जीवन में
कुछ अच्छे कर्मों का
पुरुस्कार हो तुम
जो सदा साथ चलते है
उपलब्धि बनकर !

स्मृति भर शेष नही हो तुम !

Twinkle Tomar

No comments:

Post a Comment

रेत के घर

दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर  माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...