बहीखाते में सुख दुख का हिसाब दर्ज़ हुआ
वक़्त की पोटली से साल एक और खर्च हुआ
©® Twinkle Tomar Singh
बहीखाते में सुख दुख का हिसाब दर्ज़ हुआ
वक़्त की पोटली से साल एक और खर्च हुआ
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वक़्त चुराता जाता है
साल जिंदगी से
खबर भी नही होती
और सब हासिल होने के बाद
बस वक़्त ही खर्च हो जाता है
हमारी तिज़ोरी से।
कहते है
आईना झूठ नही बोलता
पर वो ये भी नही बताता
कि जो आज सच है
वो आने वाले कल का
सच नही होगा
उम्र चुरा ली जाएगी
चेहरे की लकीरों से।
सच बोलूं
तो सब झूठे हैं,
फ़रेबी है
हाथों की उंगलियां
जब उंगलियों में फंसी हों,
कान में एक एक इअर प्लग लगाये
हम रात के अंधेरे में बिस्तर पर लेटे हुए
जब " तुम..पुकार लो" वाला गाना सुनते है,
बस वही लम्हा सच है।
जब मैं कहूँ...
ये गाना जान ले लेता है...
और तुम उस गाने को
उसी लय में व्हिसल करने लगो...
तो लगता है..
वक़्त की भी क्या औकात
जो मेरे साल चुरा ले...
झूठ बोलता है आईना
कि उम्र खर्च हो रही है...
मैं तो अब भी वही हूँ...
कशमकश भरे कदम रखते हुए,
हाथों में मेघदूत पकड़े....
भारी पलकों को थामे हुई आंखें लिए..
और तुम वही हो
मेरा इंतज़ार करते हुए...
©® Twinkle Tomar Singh
पार्लर के लिये एक लड़की चाहिए थी । मंजू आंटी ने कहा था भेज रही हूँ अभी तक तो आयी नही।
तभी छनछन की आवाज़ के साथ दरवाजा किसी ने पुश किया। एक 20- 22 साल की दुबली पतली लड़की अंदर आती है। सस्ती सी गुलाबी रंग की साड़ी पहने , एक चोटी बांधे हुये, पीछे चिमटी से बाल कसे हुए, हाथों में भर भर चूड़ियां पहने हुये, पैरों में मोटी मोटी देहाती सी पायल पहने हुये..
"जी ..हम..हम.. वो किरन....मंजू आंटी ने भेजा है।"
"हां..हां..आओ। कभी पहले किसी पार्लर में काम किया है ?"
"जी ...सीतापुर में करते थे। सबसे अच्छा पार्लर था वो वहां का।"
"अच्छा ठीक है...ज़रा मेरा फेशियल करके दिखाना। टेस्ट तो देना ही पड़ेगा न।"
"जी दीदी..आप उसकी फिक्र न करिये। हमारे हाथ से जो एक बार फेसिअल करा लेता है फिर कहीं और नही जाता। "
इसी के साथ उसने अपना ठंडा हाथ मेरे माथे पर रखा। ऐसा लगा मानो हाथों पर उसने ममता का घोल चढ़ा रखा हो। मेरे गालों पर अपनी उंगलियों के पोरों को घुमा रही थी, ऐसा लग रहा था , मैं केरल के किसी हर्बल तेल थेरेपी संस्थान में हूँ।
संतुष्ट होकर मैंने कहा -"ठीक है। कल से ठीक 9 बजे आ जाना। और सुनो ये पैंट शर्ट यहां की ड्रेस है। हेयर स्टाइल वगैरह भी चेंज करनी होगी। और ये चूड़ी पायल बिल्कुल नही चलेगा। यहां बड़े हाई फाई घरों की महिलाएं आती हैं। ये सब बहुत बैकवर्ड लगता है। "
"ठीक है दीदी।"
"और दीदी नही मैम बोलोगी। ओके।"
"जी दीदी मेरा मतलब मैम जी।"
"मैं हंसी...मैम जी नही केवल मैम।"
"ठीक है मैम।" मुसकुराते हुये छनछन का शोर मचाते हुये वो वहां से चली गयी।
दूसरे दिन देखा सूट पहन कर आई थी। हाथों में सिर्फ दो दो चूड़ियां पहनी थी। पैरों से छनछन की आवाज़ भी नही आ रही थी। फ़टाफ़ट उसने पैंट शर्ट पहन लिया,जूड़ा बना लिया। एकदम से उसकी पूरी पर्सनैलिटी ही बदल गयी थी। मैंने कहा- "अब तुम लग रही हो लखनऊ वाली।" जवाब में वो सिर्फ़ मुस्कुरा दी और काम पर लग गयी। उसे वाकई कस्टमर्स को संतुष्ट करना आता था। सबके मन के हिसाब से काम कर देती थी।
शाम को जब वो जाने लगी तो उसने यूनिफार्म चेंज की। फिर अपने पर्स से निकाल कर मोटी मोटी पायल पहनने लगी। मैंने पूछा-"ये क्या ?"
"कुछ नही मैम...जब से हम बड़े हुये हैं..पायल हमेशा से पहनते रहे हैं। अब न पहनो तो लगता है पैर एकदम हल्का हो गया है। दिन भर लगता रहा जैसे पैरों में रुई भर गई है। अभी हमको लखनऊ वाली बनने में टाइम लगेगा न।" - खिलखिला कर हंसते हुये वो बोली।
उसे जाते हुये मैं देखती रही। मेरी आंखें उसकी छनछन करती हुई पायल पर टिकी थी। मुझे लगा स्त्री शायद बंधनों को भी आभूषण बना लेती है और खुश रहती है।उसे अहसास भी नही होता कि बेड़ियां तन को ही नही, मन को भी कैद कर लेती हैं।
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रात के दस बजे पास के एक नर्सिंग होम पर प्रवेश करते ही देखा गेट के आजु बाजू में बहुत सुंदर रंगोली बनी थी। बिना सोचे किसने बनाई कैसे बनाई तुरंत मैंने मोबाइल निकाला और फ़ोटो खींच ली।
रोज सुबह शाम मुझे एक इंजेक्शन लगवाने यहां आना पड़ता है। आज दीवाली की रात है। थोड़ा मन में डर था कोई नर्स न मिली तो। रेहाना को देखते ही सुकून मिला।
"रेहाना... आज मुझे यकीन था तुम्हीं मिलोगी। लो जल्दी से इंजेक्शन लगा दो। घर पर सब वेट कर रहे हैं खाने का।" मैंने खुश होते हुये कहा।
"बिल्कुल दीदी। मैं खाली ही हूँ। लाइये हाथ इधर करिये।" इंजेक्शन हाथ मे लेकर उसने कहा।
उफ़्फ़..आराम से ..। जानती हो न मुझे कितना डर लगता है इंजेक्शन से।
"अरे दीदी। अब भी आदत नही पड़ी आपको। आपने रंगोली देखी गेट पर। मैनें बनाई है।" इंजेक्शन कोंचते हुये उसने गर्व से कहा।
"बहुत सुंदर बनी है रेहाना। और उसके चारों ओर दिये भी तुम्हीं ने सजाये?" मैंने दर्द से अपना ध्यान हटाते हुये कहा।
"और कौन करता दीदी ? दिये के बिना रंगोली अच्छी लगती क्या ? सब तो छुट्टी पर है। सबकी दीवाली है। मैं और हमीद भैया ही है पेशेंट के साथ ड्यूटी पर।" इंजेक्शन निकालते हुये उसने कहा।
"अच्छी बात है न। तुम्हारी छुट्टी नही है वरना मेरा क्या होता आज।" मैंने रुई इंजेक्शन वाली जगह पर दबा कर पकड़ते हुये कहा।
" मुझे तो ईद पर छुट्टी मिलती है न दीदी। इसलिये कोई मलाल नही। अच्छा है न, काम नही रुकना चाहिये।" रेहाना अपनी खनकती सी हंसी के साथ कह रही थी।
तभी एक बच्चा रोता हुआ अपने पिता के साथ दाख़िल हुआ। उसने शायद पटाखे से अपना हाथ जला लिया था।
रेहाना मुझे छोड़ कर उसकी ओर तेजी से भागी। " क्या हो गया...अरे..अरे..कितना जला लिया।...संभल के खेलना था न...कोई बात नही चलो ड्रेसिंग रूम में अभी मैं ठीक करती हूँ।"
मैं रेहाना को बच्चे को गोद में उठाये हुये ड्रेसिंग रूम में ले जाते हुये देखती हूँ। उसे लिटा कर वो उसकी मरहम पट्टी करने में मशगूल हो जाती है।
लौटते हुये मेरे पांव रेहाना की बनायी हुई रंगोली पर ठिठक जाते है। मुझे लगने लगता है ये मेरे देश सी रंगोली है केसरिया, हरा , सफेद, नीला सब रंग तो है इसमें। बॉर्डर बना कर रंगोली में रंग बांट दिये गये है बस। पर एक भी रंग के बिना पूरी रंगोली अधूरी है।
©® Twinkle Tomar Singh
दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...