Wednesday 5 December 2018

बेड़ियां

पार्लर के लिये एक लड़की चाहिए थी । मंजू आंटी ने कहा था भेज रही हूँ अभी तक तो आयी नही।

तभी छनछन की आवाज़ के साथ दरवाजा किसी ने पुश किया। एक 20- 22 साल की दुबली पतली लड़की अंदर आती है। सस्ती सी गुलाबी रंग की साड़ी पहने , एक चोटी बांधे हुये, पीछे चिमटी से बाल कसे हुए, हाथों में भर भर चूड़ियां पहने हुये, पैरों में मोटी मोटी देहाती सी पायल पहने हुये..

"जी ..हम..हम.. वो किरन....मंजू आंटी ने भेजा है।"

"हां..हां..आओ। कभी पहले किसी पार्लर में काम किया है ?"

"जी ...सीतापुर में करते थे। सबसे अच्छा पार्लर था वो वहां का।"

"अच्छा ठीक है...ज़रा मेरा फेशियल करके दिखाना। टेस्ट तो देना ही पड़ेगा न।"

"जी दीदी..आप उसकी फिक्र न करिये। हमारे हाथ से जो एक बार फेसिअल करा लेता है फिर कहीं और नही जाता। "

इसी के साथ उसने अपना ठंडा हाथ मेरे माथे पर रखा। ऐसा लगा मानो हाथों पर उसने ममता का घोल चढ़ा रखा हो। मेरे गालों पर अपनी उंगलियों के पोरों को घुमा रही थी, ऐसा लग रहा था , मैं केरल के किसी हर्बल तेल थेरेपी संस्थान में हूँ।

संतुष्ट होकर मैंने कहा -"ठीक है। कल से ठीक 9 बजे आ जाना। और सुनो ये पैंट शर्ट यहां की ड्रेस है। हेयर स्टाइल वगैरह भी चेंज करनी होगी। और ये चूड़ी पायल बिल्कुल नही चलेगा। यहां बड़े हाई फाई घरों की महिलाएं आती हैं। ये सब बहुत बैकवर्ड लगता है। "

"ठीक है दीदी।"

"और दीदी नही मैम बोलोगी। ओके।"

"जी दीदी मेरा मतलब मैम जी।"

"मैं हंसी...मैम जी नही केवल मैम।"

"ठीक है मैम।" मुसकुराते हुये छनछन का शोर मचाते हुये वो वहां से चली गयी।

दूसरे दिन देखा सूट पहन कर आई थी। हाथों में सिर्फ दो दो चूड़ियां पहनी थी। पैरों से छनछन की आवाज़ भी नही आ रही थी। फ़टाफ़ट उसने पैंट शर्ट पहन लिया,जूड़ा बना लिया। एकदम से उसकी पूरी पर्सनैलिटी ही बदल गयी थी। मैंने कहा- "अब तुम लग रही हो लखनऊ वाली।" जवाब में वो सिर्फ़ मुस्कुरा दी और काम पर लग गयी। उसे वाकई कस्टमर्स को संतुष्ट करना आता था। सबके मन के हिसाब से काम कर देती थी।

शाम को जब वो जाने लगी तो उसने यूनिफार्म चेंज की। फिर अपने पर्स से निकाल कर मोटी मोटी पायल पहनने लगी। मैंने पूछा-"ये क्या ?"

"कुछ नही मैम...जब से हम बड़े हुये हैं..पायल हमेशा से पहनते रहे हैं। अब न पहनो तो लगता है पैर एकदम हल्का हो गया है। दिन भर लगता रहा जैसे पैरों में रुई भर गई है। अभी हमको लखनऊ वाली बनने में टाइम लगेगा न।" - खिलखिला कर हंसते हुये वो बोली।

उसे जाते हुये मैं देखती रही। मेरी आंखें उसकी छनछन करती हुई पायल पर टिकी थी। मुझे लगा स्त्री शायद बंधनों को भी आभूषण बना लेती है और खुश रहती है।उसे अहसास भी नही होता कि बेड़ियां तन को ही नही, मन को भी कैद कर लेती हैं।

©® Twinkle Tomar Singh

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