रात के दस बजे पास के एक नर्सिंग होम पर प्रवेश करते ही देखा गेट के आजु बाजू में बहुत सुंदर रंगोली बनी थी। बिना सोचे किसने बनाई कैसे बनाई तुरंत मैंने मोबाइल निकाला और फ़ोटो खींच ली।
रोज सुबह शाम मुझे एक इंजेक्शन लगवाने यहां आना पड़ता है। आज दीवाली की रात है। थोड़ा मन में डर था कोई नर्स न मिली तो। रेहाना को देखते ही सुकून मिला।
"रेहाना... आज मुझे यकीन था तुम्हीं मिलोगी। लो जल्दी से इंजेक्शन लगा दो। घर पर सब वेट कर रहे हैं खाने का।" मैंने खुश होते हुये कहा।
"बिल्कुल दीदी। मैं खाली ही हूँ। लाइये हाथ इधर करिये।" इंजेक्शन हाथ मे लेकर उसने कहा।
उफ़्फ़..आराम से ..। जानती हो न मुझे कितना डर लगता है इंजेक्शन से।
"अरे दीदी। अब भी आदत नही पड़ी आपको। आपने रंगोली देखी गेट पर। मैनें बनाई है।" इंजेक्शन कोंचते हुये उसने गर्व से कहा।
"बहुत सुंदर बनी है रेहाना। और उसके चारों ओर दिये भी तुम्हीं ने सजाये?" मैंने दर्द से अपना ध्यान हटाते हुये कहा।
"और कौन करता दीदी ? दिये के बिना रंगोली अच्छी लगती क्या ? सब तो छुट्टी पर है। सबकी दीवाली है। मैं और हमीद भैया ही है पेशेंट के साथ ड्यूटी पर।" इंजेक्शन निकालते हुये उसने कहा।
"अच्छी बात है न। तुम्हारी छुट्टी नही है वरना मेरा क्या होता आज।" मैंने रुई इंजेक्शन वाली जगह पर दबा कर पकड़ते हुये कहा।
" मुझे तो ईद पर छुट्टी मिलती है न दीदी। इसलिये कोई मलाल नही। अच्छा है न, काम नही रुकना चाहिये।" रेहाना अपनी खनकती सी हंसी के साथ कह रही थी।
तभी एक बच्चा रोता हुआ अपने पिता के साथ दाख़िल हुआ। उसने शायद पटाखे से अपना हाथ जला लिया था।
रेहाना मुझे छोड़ कर उसकी ओर तेजी से भागी। " क्या हो गया...अरे..अरे..कितना जला लिया।...संभल के खेलना था न...कोई बात नही चलो ड्रेसिंग रूम में अभी मैं ठीक करती हूँ।"
मैं रेहाना को बच्चे को गोद में उठाये हुये ड्रेसिंग रूम में ले जाते हुये देखती हूँ। उसे लिटा कर वो उसकी मरहम पट्टी करने में मशगूल हो जाती है।
लौटते हुये मेरे पांव रेहाना की बनायी हुई रंगोली पर ठिठक जाते है। मुझे लगने लगता है ये मेरे देश सी रंगोली है केसरिया, हरा , सफेद, नीला सब रंग तो है इसमें। बॉर्डर बना कर रंगोली में रंग बांट दिये गये है बस। पर एक भी रंग के बिना पूरी रंगोली अधूरी है।
©® Twinkle Tomar Singh
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