Saturday 2 March 2019

जन्मदिन

सूरज निकलने पर यदि उस ओर मुंह करके खड़े है तो परछाईं पीठ के पीछे रहेगी। पूरा दिन यूँ ही बीत जाये इसी दिशा की ओर मुंह किये तो पायेंगे परछाई दोपहर में सबसे छोटी और शाम ढलते ढलते सबसे लंबी दिखती है।

जीवन की भी दोपहर बीत जाती है और शाम की ओर बढ़ने लगती है। कल तक जो परछाईयाँ दिखती भी नही थीं, आज अपना कद बढ़ाते बढ़ाते डराने लगती हैं। जीवन की सुबह और दोपहर में बेखौफ़ रहने वाले भी  डरने लगते है कि शाम होगी तो न जाने क्या होगा?

जितना भी कस के गाँठ बांध लो, उम्र ख़र्च हो ही जानी है तो जन्मदिन का जश्न क्यों? कम होती संपदा पर भला कैसी प्रसन्नता?

बहीखाते में सुख दुख का हिसाब दर्ज़ हुआ
वक़्त की पोटली से साल एक और खर्च हुआ

बहुत कुछ पाया, बहुत कुछ पाने की हसरत रह ही गयी। ईश्वर के सामने सिर झुकाती हूँ तो कभी कुछ मांगती नही, बस धन्यवाद देती हूँ जो कुछ दिया उस के लिये। शिकायतें बहुत है उससे,पर क्षमा कर दिया उसे भी मैंने।

फिर भी जन्मदिन ऊर्जा से तो भर ही देता है, कुछ तो ख़ास अनुभव होता ही है। जश्न इस बात का आने वाला कल मुट्ठी में है। कुछ हँसी बाँटी जाये, कुछ दुख पढ़े जाये। सम्पदा बस इतनी ही कुछ तो अच्छा काम किया ही होगा। बहुत से पल व्यर्थ में फिसल भी गये तो क्या, जो घड़ी जी लेंगे वही रह जानी है।

समय की धारा में उमर बह जानी है।

जन्मदिन मुबारक हो टि्वंकल !







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