Tuesday 26 March 2019

न घर की न नौकरी की

'सर , मुझे थोड़ा जल्दी छुट्टी चाहिये आज। मेरे बेटे की पेरेंट्स टीचर मीटिंग है।" सांत्वना सिंह ने (जो कि एक अध्यापिका हैं)बड़े संकोच के साथ हलक से शब्द निकाले।

"अभी चार दिन पहले ही तो आप हॉफ डे लीव लेकर गयी थीं,मिसेज सिंह। ऐसे कैसे काम चलेगा? आपकी अनुपस्थिति में आपका क्लास कौन पढ़ायेगा ? बच्चे शोर मचाने लगते हैं। " प्रिंसिपल ने कुर्सी पर बैठे बैठे ठसक के साथ कहा।

"जी समझती हूँ सर। मेरा बेटा अभी छोटा है। उसकी तबीयत थोड़ी ख़राब थी तो उसे डॉक्टर के पास लेकर जाना था उन दिन। प्लीज् आज छठे घंटे के बाद छुट्टी दे दीजियेगा।" सांत्वना ने लगभग गिड़गड़ाते हुये शब्दों में कहा।

"ठीक है जाइये। पर अब इस महीने नो हॉफ लीव।" प्रिंसिपल ने अहसान सा जताया पर साथ में एक चाबुक भी लगा दिया।

मन मसोस के सांत्वना स्टॉफ रूम में आयी। बोतल में से पानी निकाल कर पिया। घड़ी की तरफ देखा तो छटा घंटा लगने में 15 मिनट बाकी थे। 15 मिनट में 50 बातें उसके दिमाग में घूमने लगीं। उत्सव, उसका बेटा, कितनी शिद्दत से स्कूल में उसका इंतज़ार कर रहा होगा। हमेशा ही उसकी ये शिकायत रहती है मैं उसके स्कूल के किसी भी फंक्शन में देर से पहुँचती हूँ। पिछली बार तो उसकी परफॉरमेंस निकल गयी थी तब पहुँच पायी थी। टन टन टन करके छह घंटे लगे तो सांत्वना अपनी तन्द्रा से बाहर आयी। झटपट उसने अपना बैग उठाया स्कूटी में डाला और फुल स्पीड में जान जोखिम में डालकर चलाते हुये ले गयी । कैसे भी हो उसे जल्दी से जल्दी उत्सव के पास पहुंचना हैं।

जैसे ही वहां पहुंची देखा तो उत्सव मुंह फुला कर क्लास में सबसे पीछे बैठा है। उसे देखते ही बोला - "आज फिर लेट कर दिया न आपने। मेरी मैम कितनी बार आपको पूछ चुकी है। सबके पैरेंट आ के चले भी गये।"

"अरे मेरा राजा बेटा ट्रैफिक में फंस गयी थी मैं। चल तेरी टीचर से तेरी खबर लूँ।"

जैसे तैसे मीटिंग निपटा कर सांत्वना घर पहुंची। फिर वही खाना, कपडे, महरी से काम करवाते करवाते शाम हो गयी। विराज के आने का वक़्त हो गया। सोचने लगी विराज आ जाएं तो ही चाय चढ़ाऊँ।

घंटी बजी , दरवाजा खोला तो विराज ने स्माइल तक नहीं दी। बल्कि नाराज होते हुये अंदर आये और शिकायती लहजे में कहने लगे - "क्या हो गया है तुम्हें आजकल?  आज लंच ब्रेक में सबके साथ टिफ़िन खोला तो देखा सिर्फ़ पराठे हैं। सब्जी रखना ही भूल गयी थी तुम। मिस्टर शर्मा ने दी अपनी सब्जी। व्यंग्य भी मारा भाई मेरी पत्नी तो बस हाउस वाइफ है इसलिए एकदम परफेक्ट है मेरे लिये।"

"ओ माय गॉड" सांत्वना ने दांतों से जीभ काटी। "सुबह सुबह तीन तीन टिफ़िन लगाती हूँ। गलती से भूल गयी होंगी। जाने दो। मैं अच्छी सी चाय बनाती हो तुम्हारे लिये।"

"रहने दो। मैं खुद बना लूँगा। कल चीनी डालना भूल गयीं थी तुम। मम्मी को बिना चीनी चाय चाहिये सबको नही। " विराज खीजते हुये बोला।

सांत्वना सर झुका कर रसोई में चली गयी। और कुछ बोलना मतलब भारत पाकिस्तान का युद्ध। फ़िलहाल चाय बना कर उसने रेडी कर दी। तब तक मम्मी जी भी वॉक से वापस आ गईं । सब चाय पी ही रहे थे,अपने दिन भर की बातें शेयर कर कर रहे थे कि मम्मी जी ने कहा - "बहु मेरा चश्मा बनने को दिया था।" सांत्वना ने अपराध भावना के साथ उत्तर दिया - मम्मीजी स्कूल से जल्दी में लौटी तो भूल गयी, कल जरूर से ले आऊँगी।" मम्मीजी जी कहा-" कोई बात नही बहु। बस सुंदरकांड पढ़ने में दिक्कत होती है इसलिये कहा। " सांत्वना ने मन में सोचा कि जब कोई बात नही तो ये सुनाने की क्या जरूरत थी।

सारा काम निपटा कर जब सांत्वना रात में बिस्तर पर गयी तो पूरे दिन का घटनाक्रम उसके दिमाग में घूमने लगा। सोचने लगी नौकरी और घर के बीच में पिस कर न नौकरी ही ढंग से कर पा रही है और न ही घर ठीक से देख पा रही है। न प्रिंसिपल खुश है न बेटा न पति न सास न रिश्तेदार। सबको खुश रखने की कोशिश में उसकी अपनी ख़ुशी गुम हो गयी है इसका किसी को ख़्याल ही नही। घड़ी देखी तो साढ़े बारह बज रहा था। उसने आँखे बंद करके सोने की कोशिश की। सोयेगी नही तो सुबह जल्दी उठ नही पायेगी और फिर से शिकायतों की झड़ी ही लग जायेगी।

दोस्तों एक कामकाजी महिला के मन की व्यथा बहुत कम लोग समझ पाते हैं। सबको सन्तुष्ट करना ही उसकी ज़िन्दगी की प्राथमिकता हो जाती है। एक दोहरे गिल्ट कॉन्शेंस के साथ उसे जीना होता है। घर पर उसे नौकरी के काम लाकर पूरे करने होते है और नौकरी पर हो तो उसे घर को वक़्त न दे पाने की अपराध भावना सताती है। आत्मग्लानि की भावना एक परछाई की तरह साथ चलती है उसके। घर में नौकरी की फ़िक्र और नौकरी पर घर की चिंता। जब तक घर के सब लोग मिल कर सहयोग न करें तब तक उसकी ज़िन्दगी की मुश्किलें हल नही होती।

ट्विंकल तोमर सिंह

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