Wednesday 27 March 2019

माँ नही मासी बनना है मुझे

श्रुति मेरी बात मानो। शादी के दस साल हो चुके हैं। कुछ न कुछ कॉम्प्लिकेशन्स लगे ही हुये है तुम्हारे साथ। आई वी एफ भी करा के देख चुकी हो । भगवान की मर्जी होती तो एक प्यारा सा बच्चा अब तक तुम्हारी गोद में होता आज। अब भगवान की मर्ज़ी नही है न तभी तो आज तक...... " तान्या श्रुति की बेस्ट फ्रेंड थी। उसे  समझाने के लिये ही स्पेशली टाइम निकाल कर आई थी।

श्रुति सिर झुकाये हुये प्यालियों में चाय उंडेल रही थी। बहुत ध्यान से उसकी बात सुन रही थी। फिर तान्या कोई नई बात नही कह रही थी। उसके माता पिता , रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी, कलीग्स सब यही सलाह देते थे।

"श्रुति....मेरी बात सुन भी रही हो कि नही।" तान्या ने चाय की केतली उसके हाथ से ले ली। और उसे झिंझोड़ कर कहा।

"हाँ , बाबा सुन रही हूँ।" श्रुति ने जबरदस्ती मुस्कुराते हुये कहा। मुस्कान जब झूठी होती है तब आंखें चिल्ला चिल्ला कर सच बोलने लगतीं है। श्रुति की आंखों में साफ़ लिखा था मैं इस टॉपिक पर बात नही करना चाहती।

"श्रुति माय डिअर, तुम समझती क्यों नही। समय रहते एक औरत को माँ के रोल में आ जाना चाहिये। मेरी भाभी गायनोकोल्जिस्ट हैं उनका अपना हॉस्पिटल है। कई पेरेंट्स ऐसे आते है जो बच्चे को खासकर लड़कियों को पैदा होने के बाद अपनाना नही चाहते। कई बार तो कोई कुँवारी लड़की जो माँ बन जाती है उसका परिवार भी.........। खैर ये सब छोड़ो तुम हाँ बोलो तो तुम्हें तुरंत पैदा हुआ बच्चा मिल जाएगा। थोड़ी बहुत फॉर्मेलिटी बस तुम माँ कहलाने का सुख ले सकोगी।"  तान्या अपनी पूरी सामर्थ्य लगा कर श्रुति को समझाना चाहती थी। दोनों सहेलियां बचपन से साथ थीं। साथ पढ़ी, बड़ी हुई, शादी भी एक ही साल में दोनों की हो गयी। पर तान्या के दो प्यारे प्यारे बच्चे थे और श्रुति की गोद अब तक सुनी थी।

"तान्या तुम्हारी बात अपनी जगह बिल्कुल सही है। ज़्यादातर निःसंतान दम्पति यही करते हैं। पर मेरा सोचना कुछ और है।" श्रुति के इस घाव को जो कोई भी छू भर लेता है, वो आत्मविश्वास खो बैठती है , अनमनी सी हो जाती है। जैसे ठहरे पानी में किसी ने कंकड़ फेंक दिया हो। पर उसने पानी में बनी लहरों के स्थिर होने का इंतज़ार किया और संयत होते हुये बोली।

"क्या सोचना है तुम्हारा ? मैं भी तो सुनूँ जरा। तुम्हारी समझ में ये बात क्यों नही आती कि समय निकल जायेगा तो आगे बच्चा गोद लेने में तुम्हें ही परेशानी होगी। बच्चे की और तुम्हारी एनेर्जी मैच करना मुश्किल हो जायेगा।" तान्या लगभग खीजते हुये बोली। अगर उसका बस  चलता तो वो अपनी सहेली की खुशियों के लिये कुछ भी कर गुजरती।

" इन सब बातों पर मैंने विचार कर लिया है तान्या। इच्छा मेरी भी यही होती है। पर जानती हो मुझे क्या लगता मैं सिर्फ़ अपना स्वार्थ देख रही हूँ। मुझे एक बच्चा चाहिये और मैं इस भूख को मिटाना चाहती हूँ।" श्रुति की आवाज़ किसी गहरे खोह से आ रही थी। लेकिन उसके स्वर में किसी तपस्वी सी गंभीरता थी।

"श्रुति ... सही है जानू.. यही सही है। स्वार्थ नही है।"

"जानती हो। जब मैं किसी दम्पति को देखती हूँ जिनके बच्चे हैं। तो मेरे अंदर ये विचार आता है ये किस तरह अपने बच्चों के ग़ुलाम हो गये हैं। उनका पूरे जीवन की धुरी बस उनके बच्चे हो जातें है। बच्चों की पढ़ाई, उनकी सुरक्षा बस इसी फ़िक्र में उनका जीवन घुलता जाता है। और अगर उनकी आर्थिक स्थिति ज़्यादा अच्छी न हो तो भले ही अपना पेट काटना पड़ जाये, पर बच्चों के लिये अपने आप को कुर्बान कर देंगे।"

"हाँ तो इसमें नई बात क्या है ? सब यही करते हैं । प्रकृति का नियम है ये तो। देखो न चिड़िया भी अपने बच्चे की कितनी सेवा करती है।"

"तान्या मुझे गलत मत समझो। मैं जो कहना चाह रही हूँ उसे समझो। अपना बच्चा होते ही लोग इतने मजबूर हो जाते है कि अगर उनके आस पास किसी बच्चे को मदद की जरूरत हो, तो भी वो चाह कर नही कर पाते। अपने बच्चे के लिये जितना भी पैसा हो कम ही पड़ता है।"

"ये तो तुम बिल्कुल सही कह रही हो। मैं भी कमाती हूँ और तुम्हारे जीजा जी भी। पर देखो न आजकल पढ़ाई लिखाई, कपड़े, गृहस्थी का सामान सब इतना महंगा हो गया है कि पूरा ही नही पड़ता।" तान्या ने आह भरते हुये सोचा कि कबसे वो सोच रही है अगले महीने से उसके पड़ोस वाले वृद्धाश्रम में हर महीने कुछ दान कर दिया करेगी। पर वो अगला महीना कभी आ ही नही पाता।

"वही तो। मैं भी ऐसे ही किसी एक बच्चे की माँ नही बनना चाहती। मैं सिर्फ़ एक बच्चे से बंधना नही चाहती। मैं ऐसे तमाम लाखों बच्चों की मदद करना चाहती हूँ जो मजबूर है, कमजोर है, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है। फिर वो बच्चे मेरे पास पड़ोस में हो चाहे मेरे रिश्तेदारी में हों या मेरे घर में काम करने वाले लोगों के हो। मेरी चचेरी बहन की ही दो बेटियाँ हैं। उसकी आर्थिक स्थिति सही नही है। सबसे पहले मैं उन्हीं से शुरुआत करना चाहती हूं।" श्रुति की आंखों में नेह के डोरे झलकने लगे थे। दोनों बेटियां मासी से कितना प्यार करतीं थीं। फ़ोन पर तो रोज़ ही बात होती थी। और मिलने पर तो वे उससे ही चिपकी रहतीं थीं। श्रुति उन दोनों के लिये बहुत कुछ करना चाहती थी। पर उसका सारा पैसा आई वी एफ कराने में बह गया था।

श्रुति दुपट्टे के छोर को उंगली पर लपेटने लगी जैसे अपने अंदर उमड़ रहे ममता के भाव को मथ रही हो। "एक अपने बच्चे पर सारा प्यार, सारी ममता, और सारा धन लुटा दिया और अगर भविष्य में वो ख़राब निकल गया तो मुझे बहुत दुख होगा। स्वतंत्र रहकर ऐसे मैं असंख्य बच्चों की मदद कर सकतीं हूँ जिन्हें सहारे की जरूरत है। और वो सब के सब तो ख़राब भी नही निकल सकते न। जॉब से लौटने के बाद मेरा बचा हुआ दिन पूरा ख़ाली रहेगा ऐसे बच्चों को समर्पित करने के लिये। " श्रुति के अंदर का आत्मविश्वास कहीं दूर शून्य में खोई हुई आंखों से चमक रहा था।

"ओ माय डार्लिंग... यू आर सो जेनरस..! ये पॉइंट तो मैंने सोचा ही नही। फिर भी ये बहुत बड़ा निर्णय है। सब चीज़ें अच्छी तरह सोच लेना। बुढ़ापे में इनमें से कोई भी बच्चा काम न आया तो?" तान्या ने एक बहुत ही वाज़िब प्रश्न उठाया।

" तान्या, ये भी मैं सोच चुकी हूँ। जीवन की हर डोर ऊपर वाले के हाथ में है। क्या कभी कुछ हमारी प्लानिंग से होता है भला? मेरे साथ की जितनी निःसंतान महिलाओं ने आई वी एफ कराया सबके पास आज बच्चा है। मेरे पास ही नही। क्यों? प्लानिंग और मेडिकल साइंस से सब कुछ हो जाता फिर क्या था ? रही बात बुढ़ापे की तो जिस बगल वाले वृद्धाश्रम में तुम कुछ दान देना चाहती हो न वहीं मैं भी भर्ती हो जाऊँगी।"

"दोनों सहेलिया खिलखिलाकर हँसने लगीं। तान्या ने कहा- "तुम भी महान हो। गंभीर विषय में भी कॉमेडी घुसा देती हो। सच कहूँ तो मेरे दो लड़के हैं फिर भी इनमें से किसी एक पर भी मुझे भरोसा नही। कल को ये पढ़ाई पूरी करने के बाद, शादी के बाद कहाँ रहेंगे, हमें साथ रखेंगे या नही कुछ कहा नही जा सकता। मैं अपने पड़ोस वाले अंकल को देखती हूँ उनकी उम्र अस्सी साल है। वाइफ की डेथ हो चुकी है। बेटे विदेश में है। यहाँ अपने दिन काट रहे हैं बस।"

यस तान्या, यही तो मैं कहना चाहती हूँ। तुम्हारे पास ऑप्शन नही था। मेरे पास ऑप्शन है। एक बच्चे के स्कूल से लौटने का घर पर बैठकर इन्तज़ार करने से अच्छा है मैं सौ बच्चों को स्कूल भेजने का इंतज़ाम कर सकूँ। मैं स्वतंत्र रहकर बहुत कुछ कर सकती हूँ। जब मेरे पास दो विकल्प है कि माँ बनूँ या मासी तो मेरे अंदर से यही पुकार आती है-मुझे माँ नही बनना मुझे ज़्यादा से ज़्यादा जरूरतमंद बच्चों की मौसी बनना है।

©® Twinkle Tomar Singh


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