Friday, 29 March 2019

सद्गुरु ढाक लिया मोहे पापी पर्दा

वो गहने महंगे कपड़ों से लदी हुई लंगर कर रही थी। ऋतु मेरी सहेली जिसके मंगेतर को मैंने चुरा लिया था, मेरी ओर चली आ रही थी। गुरुद्वारे की पंगत में बैठकर अपनी हालत पर इतना दुख आजतक नही हुआ।

अचानक उसकी और मेरी नज़रें मिली। उसकी आंख की पुतली फैली फिर सामान्य हो गयी। मेरी थाली में खाने के साथ गंगाजल सी पवित्र आंसुओं की दो बूंदे भी परोस गयी। उसने नौकर को आदेश दिया देखना सब पेट भर के खाये।

गुरुद्वारे में सबद के शब्द गूंज रहे है- निर्गुण राख लिया...संतन का सदका...सद्गुरु ढाक लिया..मोहे पापी पर्दा..

Twinkle Tomar Singh

No comments:

Post a Comment

रेत के घर

दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर  माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...