"तुम समझते क्यों नही मेरी क्या प्रॉब्लम है? रात में तुम टीवी चलाते हो तो मुझे नींद नही आती है।"
"तुम्हें तो लड़ने का बस कोई बहाना चाहिये। पहले तो तुम घोड़े बेच कर सो जातीं थीं। तब चाहे कोई टीवी चलाये या चाहे भूकम्प आ जाये।"
"पहले और अब में फर्क है।"
"क्या फर्क है मैं भी तो सुनूँ जरा। मुझे तो बस ये समझ आता है पहले तुम मुझसे बहुत प्यार करती थीं। नई नई शादी हुई थी तुम्हें मेरी हर बात अच्छी लगती थी। अब तुम बिल्कुल दुश्मनों की तरह लड़ती हो।"
"तुम बात को कहाँ से कहाँ ले जा रहे हो। शादी को बारह साल हो गये हैं। हमारी उम्र अब युवावस्था वाली नही रही। नींद के घंटे कम हो गये है। और आसानी से नींद भी नही आती।"
"ये सब बहाने है। मैं क्या करूँ बताओ? मुझे टीवी देखे बगैर नींद नही आती। दिन भर की मानसिक उलझन को ले कर मैं सो नही सकता। तुम तो जानती ही हो कितनी परेशानियां है जीवन में। टीवी में कोई मूवी या सांग्स देखते देखते मैं इन्वॉल्व हो जाता हूँ फिर कब नींद आ जाती है पता नही चलता।"
"और इसका उल्टा मेरे साथ होता है। बारह बजे तक जगती रहूँ तो नींद उचट जाती है फिर उसके बाद दो दो घण्टे तक नींद नही आती। टीवी की रोशनी में और आवाज़ में मुझे नींद नही आती।"
"तो फिर अब क्या किया जाये? इसके लिये तो दो बेडरूम बनाने पड़ेंगे। हम अलग अलग बेडरूम में सोएंगे और क्या।"
"कैसी बात करते हो तुम? तुम कोशिश तो कर के देखो मेरे साथ। मैं चाहती हूं ग्यारह बजे तक लाइट्स ऑफ करके कमरे में अंधेरा करके हम सो जायें। चाहे तो हल्का सा म्यूजिक या कोई ग़ज़ल चला लें। इससे दोनों को अच्छी नींद आयेगी और हमारी नींद की खुराक भी पूरी हो जाएगी।"
"करके देखा तो था कुछ दिन। पर मेरे साथ नही हो पाता ऐसा। मैं अपनी परेशानियों को सोचने लगता हूँ।"
"तो फिर एक ही उपाय है टीवी बेडरूम से बाहर जायेगा। तुम बाहर बैठकर टीवी देखना। जब नींद आने लगे तब कमरे के अंदर आना।"
"ये नही हो पायेगा। नींद का झोंका जब आने लगता है तब किसे मन करता है उठ कर दूसरे कमरे सोने के लिये चला जाये। ऐसे तो मैं सोफे पर सो जाया करूँगा। और रात भर मेरी नींद डिस्टर्ब होती रहेगी।"
"तुम बात समझने को तैयार ही नही हो।"
"यही बात तो मैं भी कह सकता हूँ। तुम मेरी बात समझने को तैयार ही नही हो। तुमको नींद की प्रॉब्लम है तो मुझे भी तो है।"
"पर सोमेश मुझे सुबह तुमसे जल्दी उठना होता है और जल्दी ऑफिस भी जाना होता है। तुम एक घंटा लेट जाते हो।"
"उससे क्या फर्क पड़ता है। नींद उचट जाये तो कितने भी घण्टे मिले कुछ फर्क नही।"
"तो तुम ही बताओ क्या इलाज है इसका?"
"यही इलाज है कि एक महीना तुम्हारे हिसाब से टीवी ऑफ करके ग्यारह बजे सो कर देखा जाये। और एक महीने तुम टीवी के साथ मुझे बर्दाश्त करो। फिर देखा जाये इसके क्या नतीजे रहते हैं।"
"चलो यही सही। गुड नाईट !"
"गुड नाईट!"
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दोस्तों मुझे लगता है ये समस्या आज के वर्किंग कपल्स के बीच की कॉमन समस्या है। इसका कोई परमानेंट इलाज भी नही है। अगर आप लोगों में से किसी को इस समस्या का सही उपाय पता हो अवश्य शेयर करियेगा।
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