Sunday 23 June 2019

समझदारी

"क्या बात है आशु तू कुछ उदास लग रही है।" तृप्ति ने अपनी सहेली के गले में हाथ डालते हुये कहा। " अब क्या बताऊँ तुम्हें , मुझे लगता है तुम्हारे जीजा जी अब मुझे प्यार नही करते।" आशु ने मुंह लटकाये हुये कहा।

"क्या....और ऐसा तुम्हें क्यों लगता है भई? इतना ध्यान तो रखते हैं तुम्हारा, फिर भी शिकायत?" तृप्ति ने चाय की चुस्की लेते हुये कहा।

"देखो तृप्ति पहले मैं रसोई में काम करती थी तो वहीं खड़े रहते थे, बातें करते रहते थे या कभी कभी पीछे से आ कर कमर में हाथ डाल देते थे। अब ये सब तो किताबों की बातें हो गईं है।" आशु के चेहरे पर निराशा के भाव साफ उमड़ आये थे।

"अरे भाई,तो अब तुम्हारी शादी को पांच साल हो गये है। ये सब तो चोंचले तो नवदम्पति करते हैं।" तृप्ति ने अपनी उंगलियों से आशु की ठुड्डी को थामा और उसके बुझे हुये चेहरे को थोड़ा ऊपर किया।

"प्यार तो प्यार होता है न। रोहन के जन्म के बाद मैं उतनी खूबसूरत नही दिखती न इसलिये तुम्हारे जीजा जी का प्यार भी कम हो रहा है।" आशु के अंदर का काम्प्लेक्स बोल रहा था।

"अरे यार...तुम्हारी दवाइयों का ख़याल कौन रखता है? जीजा जी ही न? तुम्हें तो ख़ुद कभी याद नही रहता समय पर लेना। अब क्या ये प्यार नही है?"

"ऐसे तो मैं भी उनके खाने का हेल्थ का बहुत ध्यान रखती हूँ। ये तो फर्ज़ में आता है तृप्ति। पति पत्नी का एक दूसरे के प्रति फर्ज़।" आशु ने तुरंत तमकते हुये कहा।

"और फर्ज़ बिना प्यार के भी निभाया जा सकता है। हा हा हा वेरी फनी।" तृप्ति ने बड़ा फनी से मुँह बनाते हुये कहा।

"तुम हँस लो पर सच यही है शादी के कुछ सालों बाद प्यार कम होने लगता है। बस एक दायित्व की तरह हम रिश्तों को निभाते चले जाते हैं। सच बोल क्या यूँ ही पति दूसरी छरहरी लड़कियों की तरफ आकर्षित नही होते? या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में नही पड़ जाते?" आशु की आवाज़ चिंता में डूबी हुई लग रही थी।

"ओफ्फो आशु तुमने कहाँ तक सोच डाला। ये बात सही है समाज में ये सब भी हो रहा है। पर जहाँ तक मैं शेखर को जानती हूँ वो ऐसा बिल्कुल भी नही है। जानती हो उसने मेरे पापा को फ़ोन किया था ये जानने के लिये कि शेयर मार्केट में पैसा इन्वेस्ट करके एक्स्ट्रा इनकम कैसे बढ़ाई जा सकती है। अब बोलो क्या ये उसका तुम्हारे और बच्चे के प्रति प्रेम नही है? उसे फ़िक्र है तुम दोनों की। वो चाहता है कि बढ़ते हुये खर्चों अच्छे से मैनेज कर पाये। मैं तो इसे प्यार ही मानती हूँ।"

"तृप्ति, ऐसे तो मैं भी अब पहले से ज़्यादा काम करतीं हूँ। पहले हम दो थे अब तीन हैं जाहिर है काम बढ़ गया है। तो बस वैसे ही खर्चें बढ़ेंगे तो उसे भी ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी पैसे कमाने के लिये। पहले मेरे लिये वो गिफ्ट्स लाते थे अब तो महीनों हो गए है कोई गिफ्ट कोई सरप्राइज नही।" आशु की शक्ल रूआंसी हो चली थी। 

"अरे तो अब वो डाइपर ला रहा है न रोज़ाना। बेबी प्रोडक्ट्स ला रहा है न? बच्चे के खिलौने ला रहा है न? ये भी गिफ्ट्स हैं। बस अब तुम प्रियॉरिटी नही बेबी है प्रियॉरिटी में।" तृप्ति ने समझाने के लिये पूरा जोर लगा दिया। 

"वही तो मैं कह रही हूँ। अब मैं नही उनकी लाइफ की प्रियॉरिटी में।"

"अच्छा एक बात बताओ आज सुबह जब शेखर ऑफिस जा रहा था और उसने कहा था आशु नाश्ता लगा दो। तुमने क्या जवाब दिया था?" आज सुबह ही ट्रेन से आई थी तृप्ति। और उसने सुबह सुबह ही ये दृश्य देखा था। 

"मैं उस वक़्त बेबी को ढूध पिलाने में बिजी थी मैंने कहा ख़ुद निकाल कर खा लो। तो इसमें क्या हो गया?" आशु ने लापरवाही से उत्तर दिया।

"ये एक उदाहरण है डिअर। ऐसे न मालूम कितनी बार तुम भी उसे इग्नोर करती होगी। वो तो कभी शिकायत नही करता। बस यही तुम्हे समझना है आशु शादी के बाद प्यार कम नही हो जाता प्यार का स्वरूप बदल जाता है। पति पत्नी दोनों ज्यादा जिम्मेदार हो जाते हैं। और उम्र की परिपक्वता के साथ यंग ऐज जैसा पैशन नही रह जाता। बस इसलिये कभी कभी लगने लगता है कि प्यार कम हो रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि प्यार उतना ही रहता है बस पैशन बदलकर जिम्मेदारियों में तब्दील हो जाता है।" तृप्ति ने आशु को प्यार से गले लगाते हुये कहा। 

"शायद तुम सही कह रही हो। थैंक्यू दोस्त मुझे सही सलाह देने के लिये। अब मैं हर चीज़ को नए नजरिये से देखने की कोशिश करती हूँ।" आशु आख़िरकार मुस्कुरा दी थी।

दोस्तों शादी के कुछ सालों बाद विशेषकर बच्चा होने के बाद पति पत्नी के बीच इस प्रकार की समस्यायें जन्म लेने लगतीं हैं। जब उन्हें लगता है अब उनके बीच प्यार नही रहा और वे एक दूसरे से दूर होते जा रहे है। वास्तव में यहाँ पर एक दूसरे को समझने की उनके व्यवहार में आये परिवर्तन को समझने की जरूरत होती है। बस जरा सी समझदारी और गृहस्थी की गाड़ी कभी पटरी से नही उतरती।

दोस्तों पसंद आये तो लाइक और शेयर जरूर करियेगा। 

©® Twinkle Tomar Singh

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