Sunday 28 July 2019

सौतन का फ्रेंडशिप डे गिफ़्ट

"ऋतु मुझे पता है अगर मैं तुमसे कहूँ कि मुझे अच्छा नही लगता तुम मेरे पति से हँस हँस कर बात करती हो। मेरी अनुपस्थिति में भी तुम दोनों आराम से बैठे बात करते रहते हो। माना कि तुम दोनों के बीच सिर्फ़ दोस्ती का रिश्ता है और मुझे अच्छा नही लगता। जलन होती है। लगता है कि शेखर तुम्हारी तरफ आकर्षित हो रहें हैं।" मेरे सामने बैठी वो न मालूम क्या क्या किस्से सुनाये जा रही थी। बीच में ख़ुद ही जोक्स मारकर हँसती थी। बातों का मायाजाल फैलाने में तो बहुत माहिर है हमेशा से। पर मेरे मन में उससे कोई और ही बातचीत चल रही थी।

कितनी बार सोचा उसे बोल दूँ ये सब। पर हिम्मत नही हुई। क्या सोचेंगे दोनों मेरे बारे में। यही न मेरी सोच कितनी गिरी हुई है। या फिर ये कि मुझे ईर्ष्या होती है दोनों को साथ देखकर। तो हाँ सच ही तो है। होती है। क्यों मुझे लगता है जिन निगाहों से शेखर मुझे देखता है उन पर सिर्फ़ मेरा हक़ है। जो तारीफ़ के लफ्ज़ शेखर के मुँह से निकलते हैं उन पर सिर्फ़ मेरा हक़ है।

"क्या सोच रही हो ? कबाब तो तुम वाकई मस्त बनाती हो।" जवाब नही तुम्हारा। ऋतु कह रही थी। "हुह... हाँ मैंने अपनी जिठानी से सीखा है।" मैं बिना किसी भाव के उत्तर दे रही थी।

"क्या हूँ हाँ...हूँ हाँ लगा रखा है। लगता है जैसे किसी और ही दुनिया में। मेरी प्यारी दोस्त मैं तुम्हें ऐसे उदास नही देख सकती।" इतना कहकर ऋतु ने मुझे गले लगा कर किस किया और जल्दी में अपना पर्स उठा कर बोली-" सॉरी बेब, अब मुझे निकलना है। घर पर बेटा इंतज़ार कर रहा होगा। बाई द वे फ्रेंडशिप डे वाले दिन तुम क्या कर रही हो? मैंने एक सरप्राइज प्लान किया है तुम्हारे लिये। कहीं बाहर मत जाना उस दिन। ठीक है। ओ के मैं निकलती हूँ बाय।" तूफान की तरह ये सब बोल कर अपनी स्कूटी स्टार्ट करके वो चली गयी।

मैं किंकर्तव्यविमूढ़ वहीं खड़ी थी। आज भी उसे कुछ नही कह पायी। कितनी कम उम्र है इसकी बस तीस साल और इस उम्र में अपने पति को खो चुकी है। एक बेटा है पाँच साल का। नौकरी कोई बहुत अच्छी नही है। तीन पाँच करके किसी तरह सारे खर्चे चलाती है। ससुराल से अपशकुनी कह कर निकाला जा चुका है लव मैरिज जो की थी उसने। उसे उसके बेटे के साथ देखती हूँ तो वो दोनों एक तस्वीर की तरह दिमाग में बस जाते हैं। बहुत दया आती है। जब कभी रो रो कर अपना दुःख बताती है तो कैसे कहुँ मैं भी रोती हूँ उसके साथ। भगवान किसी के साथ ऐसा न करे। एक सहेली वाला सारा प्यार इस पर उमड़ आता है।

वहीं फिर शाम को शेखर के साथ बात करते देखती हूँ। मुझे क्यों असुरक्षित महसूस होता है? क्यों लगता है इसका पति नही है इसीलिये ये मेरे पति को.....मैं रसोई में खाना बना रही हूँ और दोनों ड्राइंग रूम में बातें कर रहे है। मुझे अच्छा नही लगता। पल पल मेरी यही कोशिश होती है मैं कमरे में पहुँच जाऊं। कभी सब्जी जलती है कभी रोटी कभी ख़ुद मैं.....। एक बार लाइट गयी और पूरा अंधेरा हो गया। इन्वर्टर भी खराब था। मैं सब कुछ छोड़ कर दौड़ती हुई आयी कहीं अंधेरे में दोनों .....लिपट न जाये....किस न कर लें....छी.. कितना गंदा दिमाग है मेरा।

उसका एक ही व्यक्तित्व दो हिस्सों में बँटा है मेरे लिये। कभी उस पर बहुत ममता आती है कभी मैं उससे सिर्फ़ ईर्ष्या करती हूँ। मेरे लिये वो दो भूमिकाओं में आकर खड़ी हो जाती है कभी सहेली कभी सौतन।

"आज फ्रेंडशिप डे है क्या बोला था उसने कोई सरप्राइज देगी। क्या हो सकता है भला? हुँह मुझे कुछ गिफ़्ट करना तो बहाना होगा। शेखर को ही कुछ गिफ्ट करना होगा। गिफ़्ट से संबंध प्रगाढ़ जो होते हैं।" मन अपनी गणनाओं में लगा हुआ था। सोचा जरा बाहर निकल कर देखा जाये। ऋतु का घर दो घर छोड़ कर ही था। तभी रोज का इतना ज्यादा मिलना जुलना था। देखा तो भौंचक्क रह गयी। ऋतु के घर ट्रक आया हुआ था। समान पैक करके लादा जा रहा था।...धक्क...ये क्या हुआ? कैसी फीलिंग हुई बता नही सकती खुशी या दुख?

दौड़ती हुई मैं उसके घर पहुँची। "ऋतु...ये किसका समान पैक हो रहा है?" ऋतु को देखते ही मैं बोली। ऋतु शांत थी ,बोली-"अंदर आओ।" हम दोनों अंदर पैक्ड कार्टन पर बैठ गये। ऋतु ने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया," स्नेहा, माना मैं बुद्धि में तुमसे कम हूँ, तुम्हारे जितनी इंटेलीजेंट भी नही हूँ। पर इतनी भी अनपढ़ और बेअक्ल नही कि तुम्हारी आँखों को न पढ़ पाऊँ। तुम्हें क्या लगता है जो बात तुम मुझसे कभी कह नही पाओगी वो मैं सुन नही पाऊँगी? शेखर को मुझसे बात करना कितना और क्यों अच्छा लगता है मैं वास्तव में नही जानती। और मुझे भी लगता है मेरी ही तरफ से कुछ गलत कदम न उठ जाये। मुझे निश्चय करना था मुझे सौतन बनना है या सहेली। मैं सहेली बन कर रहना चाहतीं हूँ। मुझे फ्रेंडशिप डे के दिन किसी एक की दोस्ती को चुनना था शेखर की या तुम्हारी। मैंने तुम्हारी दोस्ती चुनी है स्नेहा। यही है मेरा फ्रेंडशिप डे का गिफ़्ट। दूर रहकर थोड़ी तो दूरियाँ आयेंगी ही। और शेखर से और दूर होने की कोशिश करूँगी, ये मेरा वादा है।"

ऋतु ने फिर से मेरे गाल पर किस किया। मैं कुछ बोलने की स्थिति में नही थी। मेरा गला रुंधा हुआ था।

©® Twinkle Tomar Singh

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