Monday 12 August 2019

कामकाजी हूँ चरित्रहीन नही

"देख देख आज फिर वही उसको घर छोड़ने आया है।" पड़ोसन ने दूसरी पड़ोसन को कोहनी मारकर दिखाया। सामने निहारिका अपने कलीग की कार से उतर रही थी। "अपना ख़्याल रखना और कुछ ज़रूरत हो तो फ़ोन कर लेना।" कार में बैठे हुये शख़्स ने निहारिका से कहा। निहारिका ने मुस्कुरा कर जवाब दिया "श्योर।" फिर उसने वेव किया और कार वहाँ से चली गयी।

इतना सा ही दृश्य निहारिका की दोनों पड़ोसिनों के लिये कुछ भी काल्पनिक कहानी बुनने के लिये काफ़ी था। " देखा कैसे हँस हँस कर बात कर रही थी। मैं तो कहती हूँ शर्त लगा लो दोनों में कुछ चल रहा है।" पड़ोसन नंबर एक बोली।

"अरी बहन मैं भी अंधी नही हूँ। जब पति पत्नी से कम कमाये तो उसकी पत्नी ऐसी ही आवारा हो जाती है। इनकी महत्वकांक्षा इतनी बढ़ जातीं हैं कि पैसे प्रमोशन के लिये कुछ भी कर सकतीं हैं।"   पड़ोसन नंबर दो ने चटखारे लेते हुये कहा।

"मैं तो कहती हूँ कि हर कामकाजी औरत जब आदमियों के बीच आठ आठ घंटे काम करेगी तो थोड़ी बहुत हँसी ठिठोली न हो, हो ही नही सकता। एक हम लोग है अपने पति के अलावा किसी भी दूसरे आदमी से बात करते संकोच लगता है, भले ही वो हमारा रिश्तेदार क्यों न हो। और एक ये हैं रोज तितली बनकर निकलती है। किसलिए क्या हम समझते नही?" पड़ोसन नंबर एक ने अपने सती सावित्री होने की जैसे इन शब्दों में घोषणा कर डाली हो। साथ में निहारिका के फैशन स्टाइल को लेकर उनके मन में कितनी घृणा है कितनी ईर्ष्या है उसका पता भी दे डाला।

"सही कह रही हो बहन। पता नही कैसे इनके पति इन्हें बर्दाश्त कर लेते हैं। क्या आँख पर पट्टी बांध रखी है? जब हमें दिखता है तो क्या उसे नही दिखता होगा? कमाऊ बीवी की तो लात भी अच्छी लगती है। हुँह।" पड़ोसन नंबर दो को ये बोलकर गहरी आत्म संतुष्टि मिली थी। क्योंकि पहले इच्छा उनकी भी थी काम करने की पर परिवार की इच्छा के विरुद्ध कर न सकी। अब उनकी हालत खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे जैसी हो गयी थी।

"अरे दिखता सब होगा। देख लेना ज़्यादा दिनों तक वो भी बर्दाश्त न कर सकेगा। लिख कर रख लो यही हाल रहा तो आने वाले कुछ सालों में इनका तलाक पक्का है।" पड़ोसन होने के नाते इन्हें दूसरे का भाग्य बाँचने का भी अधिकार मिल गया था फौरन पड़ोसन नंबर एक ने सटीक भविष्यवाणी कर डाली।

"हाय राम। देख लो कुछ लोगों के लिये नौकरी शादी से भी बढ़कर होती है। ठीक भी है कोई पति आखिर किसी चरित्रहीन औरत को कब तक बर्दाश्त करेगा। स्वाभिमान भी कोई चीज़ होती है। " अचानक से पड़ोसन नंबर दो की संवेदनशीलता जाग उठी थी और समाज के गिरते स्तर की चिंता उन्हें सताने लगी थी।

अब अचानक पड़ोसन नंबर एक के दिल में ममता जाग गयी, "क्या कहती हो अगर इनका तलाक हो गया तो इनका बेटा किसके पास रहेगा?"

"मुझे तो लगता है अपने पापा के साथ ही रहेगा। इसके रंग ढँग देख कर तो नही लगता कि ये बेटे को अपने पास रखेगी।" पड़ोसन नंबर दो पहले ही निहारिका को चरित्रहीन घोषित कर चुकी थी अब चरित्रहीन औरत कहाँ परिवार बना कर रख सकती है।

"अरे चलो बहन हमें क्या लेना देना दूसरे की ज़िंदगी से। वो जाने उनका काम जाने।" पड़ोसन नंबर एक ने अपना सामान समेटा जैसे कि अपना फैलाया रायता समेट के ले जा रही हो।

" हाँ बहन सच है हमें क्या करना, कोई जाता है भाड़ में तो जाये।" पड़ोसन नंबर दो ने गहरी साँस ली और अपने घर चल दी।

और इस तरह बस एक छोटी सी घटना को बढ़ाते बढ़ाते दोनों पड़ोसिनों ने न केवल निहारिका को चरित्रहीन साबित कर दिया बल्कि उसके भविष्य का फैसला भी सुना दिया।

बस बात इतनी सी थी कि शेखर जो निहारिका के साथ ही काम करता है कभी कभी एमरजेंसी में उसे उसके घर ड्राप कर देता है। उस दिन भी निहारिका की ऑफिस में तबीयत ख़राब हो गयी थी। तभी उसने जाते जाते पूछा था कि किसी और चीज़ की जरूरत हो तो फ़ोन कर लेना क्योंकि उस दिन उसका पति शहर से बाहर था।

अगर निहारिका अपनी दोनों पड़ोसिनों की बातें सुन लेती वो शायद चिल्ला कर यही कहती - " कामकाजी हूँ इसका मतलब ये नही है कि चरित्रहीन हूँ आप कौन होती हैं मुझे मेरे करैक्टर का सर्टिफिकेट देने वालीं।"

कामकाजी महिलाओं को जाने अनजाने लोगों की ऐसी चुभती नज़रों का सामना करना पड़ता ही है। उन्हें दूसरों से हँसता बोलता देखकर लोगों के मन में ऐसे ही विचार आते हैं। लोगों को तो बस अपना ख़ाली समय काटने के लिये गॉसिप के लिये मटीरियल चाहिए होता है फिर इसके लिये किसी के चरित्र पर लाँछन ही क्यों न लगना पड़े।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

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