Thursday 29 August 2019

ज़रा सी आहट होती है तो दिल पूछता है

रेडियो पर गाना चल रहा है....

"जरा सी आहट होती है तो दिल पूछता है
कहीं से वो तो नही...कहीं ये वो तो नही....."

मैं दोपहर बीतने के बाद अलसायी सी बिस्तर पर पड़ी हुई हूँ। मेरे कान समेत सभी पांचों इंद्रियां दरवाजे की हर आहट पर लगी हुई है। कब दरवाजे की घंटी बजे और उनके दर्शन हों। तभी दरवाजे की घंटी बजती है....टन्न टन्न... मन मयूर नाच उठता है। अहा...लगता है जिसका इन्तज़ार था वो आ गया।

मैं प्रफुल्लित होकर भागती हूँ। जैसे कि पैरों में रोलर स्केट्स लग गये हो। उल्लास के साथ मैं दरवाजा खोलती हूँ।
पर सामने खड़े व्यक्ति को देखकर मेरी सारी खुशी काफ़ूर हो जाती है ....
मन मे सड़ा सा भाव आता है ..अच्छा रोज रोज चीनी मांगने वाली भाभी आयी हैं।

" आइये भाभी जी। क्या हुआ फिर चीनी खत्म हो गयी है?" मैंने अपने सड़े से मुँह पर चॉकोलेट स्माइल की कोटिंग करते हुये कहा।

"अरे नेहा जी, क्या बताये। कल चीनू का मन हुआ लड्डू खाने का। सारी चीनी उसी में ख़त्म हो गयी। आज इनको बोला है लौटते में चीनी लेते आयेंगे। तब तक मैंने सोचा आपसे ले लूँ इसी बहाने थोड़ी गपशप भी हो जाएगी।" चीनू की मम्मी अपने खींसे निपोर रहीं थीं।

मेरा आंखें उनसे परे दरवाजे के बाहर झाँक रहीं थीं। मन में सोच रही थी, " क्या हुआ उसको? उसके आने का वक़्त तो हो गया है।"

आधा घंटा मेरा सफलतापूर्वक बर्बाद करने के बाद चीनू की मम्मी मटक कर चल दीं। मेरा इंतज़ार अभी भी खत्म नही हुआ था। दरवाजे की घंटी से ज़्यादा मधुर कोई संगीत नही था मेरे लिए इस समय। फिर वही दरवाजे पर आहट का इंतजार। फिर से घंटी बजी टन्न टन्न। मेरे रूखे चेहरे पर मुस्कान की एक्सप्रेस रेलगाड़ी धड़धड़ करती हुई गुज़र गयी। फिर से वही सब कुछ, प्रफुल्लित मैं, पैरों में रोलर स्केट्स, उल्लास के साथ दरवाजा खोलना पर ये क्या....ये तो वो आये हैं....

वो कौन ? अरे वही रोज रोज खिटपिट करने वाले 'वो' आये है.. जिनसे सात जन्मों तक खिटपिट का संबंध हैं। क्या मालूम कितने जन्मों का काउंट डाउन पूरा हो चुका है काश कोई तरीका होता जानने का। ख़ुशी काफ़ूर ही चुकी थी फिर से। नकली मुस्कान के साथ मैंने कहा," अरे आप, इतनी जल्दी कैसे आ गए?"

"वो आज काम जल्दी निपट गया। सब निकल रहे थे तो मैं भी निकल लिया। जल्दी से चाय पिलाओ। मैं गरमागरम समोसे लाया हूँ।" पतिदेव टाई ढीली करते हुये बोले।

" हाँजी बिल्कुल। आप हाथ मुँह धोकर बालकनी में बैठिये। मैं बस दस मिनट में आ रही हूँ।" मैंने पूरी चाशनी में लपेट कर शब्द बोले कि कहीं मेरे मुँह के सड़े से एक्सप्रेशन वो पढ़ न लें। चाय बनाते समय भी कान दरवाजे पर लगे हुये थे। " हाय अब तो समय भी निकला जा रहा है। क्या हो गया? भगवान सब सही रखना।" मुझे घबराहट होनी शुरू हो गयी थी।

इसके बाद मैं पतिदेव को चाय वगैरह देने में व्यस्त हो जाती हूँ। पर चाय समोसा कुछ भी मजा नही दे रहा। सब बेस्वाद है। जब तक जिसका इंतज़ार है वो न आये मेरे लिये पूरी दुनिया सूनी है। रेडियो पर गाने पर गाने बजते जा रहे है।...."आ जा रे अब मेरा मन घबराये.... देर न हो जाये कहीं देर न हो जाये...." हाय ये रेडियो वाले भी बड़े बेदर्द हैं चुन चुन कर दर्द वाले गाने ही सुनायेंगे।

आप विश्वास नही मानेंगें पर मुझे एक पल का चैन नही था। अभी भी मेरी कान समेत छह इंद्रियां दरवाजे की ओर लगी हैं। ( ध्यान दीजिए अबकी बार छह इन्द्रियाँ... इस बार छटी इन्द्री भी दरवाजे की ओर सूरजमुखी के समान ही ताक रही है) धीरे धीरे आस भी छूटती सी लग रही है।

फिर से दरवाजे की घंटी बजती है...टन्न टन्न।  मेरे मन में फिर से उल्लास जागता है। जैसे भक्त मंजीरा मनका सब छोड़कर भगवान का स्वागत करने पहुंचता है, वैसे ही मैं चाय समोसा सब छोड़ छाड़ के दरवाजे की ओर भागती हूँ.....

और देखो, जिसका मुझे इंतज़ार था वो आ ही गया। अबकि बार सामने खड़े व्यक्तित्व को देखकर मेरा मन उसके चरणों मे लोटने जैसा हो जाता है। पर मन पर काबू कर लेतीं हूँ। " धैर्य रखो धैर्य" अंतर्मन से आवाज़ आती है।

"देखो वो आ गया...देखो वो आ गया.." रेडियो पर गाना बजने लगता है।

मन में उमंग के साथ जोर शोर से प्रेमभाव  उमड़ता है मन होता है गले ही लगा लूँ। रूठूँ.. नाराज़ होऊँ... डाटूँ...." इतनी देर क्यों लगा दी। पता भी है मैं कितना परेशान हो रही थी। मुझे तो लगा कि तुम...."

अरे अब क्या बताऊँ कौन आया है । वही आयीं है । मेरे बर्तनों के साथ खिटपिट करने वाली 'वो' आ गयी हैं... 'वो' अरे वही जिसे हम कामवाली कहते हैं। जिनका इंतज़ार हमें पति, पड़ोसन, मायकेवाले, कूरियर वाले आदि की अपेक्षा सबसे ज़्यादा रहता है। दो दिन की छुट्टी लेकर गयीं थीं महारानी। आज आना था तो रात से ही मैंने सारे बर्तन ढेर कर रखे थे। बार बार दिल धड़क रहा था आज न आयीं तो ये सारे बर्तन मुझे ही घिसने होंगें। खैर अंत भला सो सब भला। चलिये महरी महिमा पुराण ख़त्म हुआ आप भी जाकर चाय नाश्ता करिये।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

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