बारी सबकी आनी थी। पर पीतल की मटकी इतरा रही थी। लौह की मटकी सकुचा रही थी। जल कुंड पर घट भर पानी दोनों को बराबर मिला। न किसी को कम,न किसी को अधिक।
मोक्ष का जल भी माटी-देह के घड़ों में भेद नही करता।
©® टि्वंकल तोमर सिंह
दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...
No comments:
Post a Comment