Thursday, 29 August 2019

देह माटी

बारी सबकी आनी थी। पर पीतल की मटकी इतरा रही थी। लौह की मटकी सकुचा रही थी। जल कुंड पर घट भर पानी दोनों को बराबर मिला। न किसी को कम,न किसी को अधिक।

मोक्ष का जल भी माटी-देह के घड़ों में भेद नही करता।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

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