बारी सबकी आनी थी। पर पीतल की मटकी इतरा रही थी। लौह की मटकी सकुचा रही थी। जल कुंड पर घट भर पानी दोनों को बराबर मिला। न किसी को कम,न किसी को अधिक।
मोक्ष का जल भी माटी-देह के घड़ों में भेद नही करता।
©® टि्वंकल तोमर सिंह
1. नौ द्वारों के मध्य प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...
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