एक विदा-पुष्प
तुम्हारे नाम का
नदी में
प्रवाहित करने से पहले
तौल लिया था
अपने रिक्त मन का भार
तुला में इस ओर
अब जितना भी
भारी रहे मन
उस ओर नही रखूँगी
तुमसे आस का कोई बाट
ये वचन दिया !
©® टि्वंकल तोमर सिंह
1. नौ द्वारों के मध्य प्रतीक्षारत एक पंछी किस द्वार से आगमन किस द्वार से निर्गमन नहीं पता 2. कहते हैं संयोग एक बार ठक-ठक करता है फिर मुड़ कर...
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