Friday 20 September 2019

सात कपड़े एक भगोना

"क्या भइया, ठीक ठीक लगाओ न। पूरे सात कपड़े दिये हैं तुम्हें, इनके बदले में ये ज़रा सा पिद्दी सा भगोना। और कितना हल्का भी है। कोई ठीक ठीक सा बड़ा और भारी बर्तन दो।" पड़ोस वाली भाभी कपड़ों के बदले बर्तन देने वाले से बहस कर रहीं थीं। आख़िरकार एक मीडियम साइज़ के भगोने पर जाकर सौदा पक्का हुआ।

पड़ोस वाली भाभी अभी नयी ही आयीं थीं हमारे मोहल्ले में रहने के लिये। हमारी हल्की फुल्की ही बातचीत हुई थी। जब विक्रेता चला गया तो भाभी ने मुझे बालकनी में खड़े देखा। मेरी तरफ़ देखकर उन्होंने अभिवादन वाली मुस्कान फेंकी। मैंने भी बदले में सिर झुका कर अभिवादन किया।

" देखिये भाभी जी, कितना बढ़िया भगोना लिया है। पुराने कपड़ों के बदले में।" भाभी विजयी मुस्कान के साथ बता रहीं थीं।

मैं भी उत्सुकता में नीचे आ गयी। मुझे देखना था सात कपड़ों के बदले में कैसा भगोना मिला है। मैंने भगोना हाथ में लेकर देखा, ठीक ठाक था, नया था तो चमक भी ख़ूब रहा था। " अच्छा है" कह कर मैंने भगोना उनके हाथ में वापस दे दिया।

"भाभी जी, आप क्या करती हैं पुराने कपड़ों का?" भाभी ने अचानक से सवाल दाग दिया।

" कुछ नही, कामवाली को दे देतीं हूँ।" मैंने कहा।

" अबकी बार संभाल कर रखियेगा कपड़े किसी को न देना। अगली बार जब ये आयेगा तो आपको बुला लूँगी। आप भी कपड़े के बदले में बर्तन ले लेना।" भाभी मुफ़्त की सलाह गर्व के साथ दे रहीं थीं। भगोना उन्होंने ऐसे पकड़ रखा था जैसे किसी देश की क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप पकड़ती है।

" अरे कामवाली से तो साल भर के दो कपड़े तय हुये हैं। दीवाली पर मैं नयी साड़ी देती हूँ और होली पर पहनी हुयी। बस इससे ज़्यादा नही। और ज़रूरत भी क्या है? इन लोगों के लिये जितना भी कर दो एहसान थोड़े ही मानती हैं। इसलिये मैं तो कहती हूँ आप भी कम ही कपड़े देना और बाकी कपड़े बचा लेना। मैं तो साल में एक - दो ज़रूरत के बर्तन ऐसे ही ले लेती हूँ, फ़्री में।" भाभी अपनी गृह मंत्रालय की नीतियों का बखान कर रहीं थीं।

" और जानतीं हैं इन लोगों को ज़्यादा कपड़े दे दो तो ये लोग भी यही करती हैं। कपड़ों के बदले में बर्तन ले लेतीं हैं।" भाभी बड़े विश्वास के साथ बता रहीं थीं।

मुझे इस सच पर भरोसा हुया हो या न हुया हो पर मेरे भी मन में लालच जागा। मैं बेकार में सारे कपड़े कामवाली को दे देतीं हूँ। अगली बार मैं भी नहीं दूँगी और इनके बदले कोई अच्छा सा बर्तन ले लूँगी।

" अच्छा भाभी चलती हूँ। जब बर्तन वाले भैया आयें तो मुझे बुला लेना।" मैंने कहा और उनसे विदा लेकर घर के अंदर पैर रखा।

घर के अंदर पैर रखते ही देखा कमली मेरा ही दिया हुआ सूट पहनकर फ़र्श पर पोछा लगा रही थी। पता नही मुझे क्यों लगा जैसे कि मैं उसकी अपराधी हूँ।

फिर वो बात याद आयी " अगर इनको ज़्यादा कपड़े दे दो, तो ये लोग भी उसके बदले में बर्तन ले लेतीं हैं"...मेरी आँखों के सामने एक दृश्य भी खिंच गया मेरे दिये हुये अच्छे अच्छे सूट या साड़ियाँ कमली बर्तन वाले को देकर बदले में एक भगोना ले रही है।

एक कलाकार हूँ तो कल्पनाशक्ति कैसी भी उपमायें सुझा देती है। मुझे लगने लगा एक चूल्हे के ऊपर भगोना रखा है उसमें रखा दूध गरम हो रहा है, और चूल्हे में लकड़ी नही जल रही, बल्कि मेरे बहुत सारे पुराने कपड़े जल रहे हैं। और कमली एक फुँकनी लेकर चूल्हे में हवा फूँक रही है।

"हे राम.." मैंने आँखे मूँद ली। कुछ पल के लिये ही सही मेरे मन में लालच जागा तो मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने कमली का हक़ मार लिया हो। कमली कपड़े का कुछ भी करती हो, है तो ग़रीब ही न। मुझे एक भगोने से ज़्यादा उसकी दुआ कमाना अच्छा लगता है।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

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