Saturday 7 September 2019

कोठरी का रहस्य

नई बहू ने कोठरी की दहलीज पर पैर रखा ही था कि सास की कड़कती हुई आवाज़ आयी- "बहू....अंदर पैर न धरियो। हमारे घर की औरतें वहाँ नही जातीं।"

दुल्हन ने अपने पैर वापस खींच लिये। और मन मसोस कर रह गयी।

नई बहू को कोठरी में जाना वर्जित था। बस उसका पति ही सुबह शाम वहाँ खाना पानी लेकर जाता था। आख़िर कितने दिन अपने आप को रोकती नई बहू। कम उमर की बहुरिया थी। उत्सुकता और शैतानी इस उम्र में ठूँस ठूँस भगवान ने दिमाग़ में भरी होती है।

एक दिन बहू ने देखा घर में कोई नही है। बस फिर क्या था। मौका पाकर घुस गई कोठरी में। अंदर गयी तो देखा कोठरी छोटी सी पर बड़ी रहस्यमयी सी थी। ऐसा लगता था जैसे अंदर रोज़  पूजा पाठ किया जाता हो। सामने एक औरत की बड़ी सी तस्वीर टँगी थी जिसके चेहरा पर पीला रंग पोत दिया गया था। उसकी साड़ी,गहने,चोटी सब दिख रहे थे पर चेहरा नही दिख रहा था। ऐसा लगता था किसी भले घर की औरत है।

जिज्ञासावश बहू ने एक कपड़ा लिया वहाँ लोटे में रखे पानी से उसे गीला किया और उस गीले कपड़े से तस्वीर पर लगा रंग छुटा दिया।

फिर अचानक न मालूम क्या हुआ उसे जोर से चक्कर आया और वो बेहोश होकर गिर पड़ी।

होश आया तो उसने अपने आप को एक काँच के पीछे पाया। दोनों हाथों से काँच पर थपकी दी। शीशे के पार उसे वो कोठरी दिख रही थी। तब उसे मालूम हुआ कि वो ख़ुद उस तस्वीर में कैद हो चुकी है।

वह बहुत चिल्लायी, मदद के लिये आवाज़ दी। पर लगता था जैसे उसकी आवाज़ बाहर जा ही नही रही थी।

शाम को बाहर कुछ लोगों के बोलने बतियाने की आवाज़ आने लगी। वो खुश हो गयी कि शायद अब उसको यहाँ से कोई निकाल सके। तभी कुछ देर में उसका पति खाना पानी लेकर आया, साथ में एक औरत भी थी। उसके आश्चर्य की सीमा नही रही जब उसने देखा कि ये तो वही तस्वीर वाली औरत थी। दोनों हँस हँस कर बातें कर रहे थे।

पति कह रहा था "बेग़म,आख़िर तुम छूट ही गयीं इस कैद से। अगर इतना रहस्य न बनाता तो ये कभी बेवकूफ़ न बनती। कैसे बताऊँ कितने दिनों से मैं इसी दिन का इंतज़ार कर रहा था।"

इसके बाद औरत की आवाज़ आयी," अरे वो तो तुम्हारी सौतेली माँ ने मुझे भी बेवकूफ़ बना कर इसमें कैद कर दिया था। तब से मैं भी कितना तड़प रही थी तुम्हें क्या पता।"

पति बोला," ये हमारे घर पर तांत्रिक का श्राप है। हमारे खानदान की कोई एक औरत इस तस्वीर में कैद रहेगी। रोज उसकी तस्वीर के सामने खाना पानी रखना होगा ताकि वो भोग लगा कर जीवित रह सके। और अपनी उम्र पूरी करके मरे अन्यथा प्रेत योनि में चली जायेगी और हम सब को परेशान करती रहेगी।"

" हाँजी जानती हूँ। ये मेरे कैद होने के बाद मेरे बदले में जो तुम्हारी सौतेली माँ यहाँ से मुक्त हुईं थीं, उन्होंने बताया था। अब लो जल्दी से ये अभिमंत्रित रोली हल्दी लो और इसे कीलित कर दो वरना ये बाहर आ जायेगी और मुझे वापस जाना पड़ेगा क्योंकि तस्वीर खाली नही रह सकती इतने दिनों से अंदर थी मैं। तंत्र का असर अभी गया नही है मुझ पर से। तस्वीर मुझे वापस खींच लेगी।" औरत ने कहा।

" अब मैं तुम्हें जाने थोड़े ही दूँगा।" इतना कहकर पति ने अभिमंत्रित रोली और हल्दी ली और तस्वीर पर नई बहू के चेहरे पर मंत्र पढ़ते हुये पोत दी।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

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