Wednesday 18 September 2019

माँ हूँ तेरी, तुझसे बड़ी वाली बिल्ली

"ओह माय गॉड, मिहिर, तुमने तो बताया ही नही था कि शादी के बाद बहू को पहली रसोई में कुछ मीठा बनाना होता है।" तुलसी हैरान परेशान कमरे में आई। मिहिर कमरे की बालकनी में सुबह की चाय का लुफ़्त उठा रहा था।

"अरे इसमें बताने वाली क्या बात है। सब जानते हैं ये तो एक रस्म है। रसोई में बहू को खाना बनाने देने के लाइसेंस का टेस्ट। कार चलाने के लाइसेंस का टेस्ट तो तुमने फट से पास कर लिया था।" मिहिर ने चाय का सिप लेते हुये कहा।

"मिहिर, तुम अच्छी तरह जानते हो मुझे कुछ भी बनाना नही आता। हॉस्टल में रह कर पढ़ी हूँ। पानी उबालना, चाय बनाना और मैगी बनाने के सिवा मुझे कुछ नही आता।" तुलसी के मासूम चेहरे पर निराशा के बादल साफ़ दिख रहे थे।

"अच्छा, तो जब मम्मी पापा तुम्हें देखने आये थे तब तो तुम्हारी भाभी बड़ा बढ़चढ़ कर कह रहीं थीं, खाइये, खाइये....खीर हमारी तुलसी ने बनाई है।" मिहिर ने चुटकी लेते हुये कहा।

"मिहिर...."थोड़ा गुस्से में नाराज़गी दिखाते हुये तुलसी बोली। " तुम जानते हो अच्छी तरह मैं बिन माँ बाप की बेटी, ऊपर से दूसरी कास्ट..तुम्हारे मम्मी पापा तैयार कहाँ थे शादी के लिये। तो भाभी को ये सब लीपा पोती करनी पड़ी ऊपर से इसलिये कि कहीं बात बिगड़ न जाये।" मायूस होते हुये तुलसी ने कहा।

" अरे बेग़म, अब आप हमारी अर्धांगिनी हैं। अभी देखो मैं तुम्हारी परेशानी फट से दूर करता हूँ।" मिहिर ने कॉलर ऊंचा उचकाते हुये कहा।

मिहिर ने फौरन मोबाइल निकाला, यू ट्यूब पर खीर बनाने की विधि सर्च की। दोनों ने मिलकर ध्यान से वीडियो देखा। मिहिर ने दो तीन बार उसे रेसिपी के सारे स्टेप्स रटवा दिये। फिर भी तुलसी को ज़रा भी कॉन्फिडेंस नही था। क्योंकि बचपन से ही उसके माँ पिताजी का साया उठ गया। चाचा जी ने तुलसी और उसके भाई दोनों को होस्टल में डाल दिया। नतीजा ये रहा कि तुलसी को कुछ भी काम करना नही आया। फिर उसकी ज़िन्दगी में मिहिर आया। प्रेम हुआ, बात विवाह तक पहुँची, जैसे तैसे मिहिर के मम्मी पापा को दूसरी कास्ट की, बिन माँ बाप की लड़की से शादी करने को राज़ी कराया गया। मिहिर की मम्मी का पहले से ही एक ढंग के समधी समधन, जो उचित सम्मान व्यवहार दे सकें , न मिलने के कारण थोड़ा मूड ख़राब था।

फिलहाल डरते डरते तुलसी किचेन में गयी और उसने चावल निकाले, दूध निकाला, मेवे निकाले। सारे रटे रटाये स्टेप्स अपने मन में दोहराने लगी। कभी पानी गैस पर रखती, कभी दूध गैस पर रखती, कभी चावल कुकर में डालती उसे कुछ समझ नही आ रहा था। धीरे से उसने मिहिर को मेसेज़ किया-" सुख दुख में साथ निभाने की क़सम खाई है। नीचे आओ रसोई में, मुझे कुछ समझ नही आ रहा।"

मिहिर धड़धड़ाता हुआ सीढ़ियों से नीचे आया। घर में उस दिन ख़ास ख़ास रिश्तेदार ही बचे, सब अपने अपने कमरे में आराम कर रहे थे, या घूमने निकल गये थे। मिहिर ने भी इंजीनिरिंग की पढ़ाई घर से बाहर रहकर की थी, पर उसे खाना बनाना थोड़ा बहुत आता था।

उसने थोड़े से घी में चावल भूने। फिर कुकर में सीटी ली। फिर दूध डालकर मिश्रण को पकाया। तुलसी मात्र सूखे मेवे काटती रही, और खीर में उन्हें डाल दिया। आख़िर में जब खीर पक कर तैयार हो गयी तो उसने उसमें चीनी डाल दी। इस तरह नव युगल के साझा प्रयास से नववधू की पहली रसोई की खीर तैयार थी।

खीर की कटोरियों को ट्रे में सजा कर सिर पर पल्ला रखकर संस्कारी बहू की चाल चलती हुई, नयी नयी पायल की रुनझुन पूरे घर में छनकाती तुलसी अपने सास ससुर के कमरे में पहुँची। मिहिर मुस्कुराकर उसे पीछे से जाते हुये देख रहा था। तुलसी ने सास ससुर के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया। सासु माँ ने बड़े प्यार से सिर पर हाथ फेरकर उसे आशीर्वाद दिया। फिर उसे ट्रे लेकर डाइनिंग रूम में चलने को कहा। वहाँ उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों को आवाज़ देकर बुलाया- "अरे भाई, सभी लोग आ जाओ। बहू की पहली रसोई का पकवान आ गया है।"

सब हँसते बतियाते वहाँ पहुंच गये। तुलसी सबके पैर छूकर आशीर्वाद लेती फिर सबको हाथ में एक खीर की कटोरी पकड़ाती जाती। सबने खीर खायी और वाह किये बगैर न रह सके। सबने कहा - "भई बहू तो सर्वगुणसम्पन्न है।" अपनी तारीफ़ सुनकर तुलसी मंद मंद मुस्कुरा रही थी और कनखियों से मिहिर को देख रही थी। मिहिर ने सबकी नज़र बचा कर शरारत से उसे एक आँख मारी। तुलसी ने शर्मा कर अपनी आँखें झुका ली।

बुआ, चाची, मौसी सबने पहली रसोई के शगुन के रूप में तुलसी को कुछ न कुछ दिया। किसी ने रुपये दिये, किसी ने बिछिया, किसी ने पायल। तुलसी सर झुकाये सब स्वीकार करती जा रही थी। अब आयी सास की बारी। सास ने एक सोने की अँगूठी निकाली और और तुलसी की उंगली में पहना दी। तुलसी ने अपनी सास को खुश होकर थैंक्यू मम्मी जी कहा।

फिर सासूमाँ ने मिहिर को आवाज़ दी- "तू वहाँ खड़े खड़े क्या कर रहा है। इधर आ। ये ले तू भी पति के रूप में अपनी पहली रसोई का शगुन।"

तुलसी ने चौंक कर सास की ओर देखा, फिर मिहिर की ओर देखा। मिहिर झेंपते हुये वहाँ आया और उसने माँ के पैर छुये। माँ ने उसके हाथ में इक्कीस सौ रुपये रखे। मिहिर की तो बोलती बंद हो गयी-" माँ मैं...वो....मदद...! तुम्हें कैसे पता चला? तुम तो रसोई में आयी ही नही थी।"

" अरे तेरी माँ हूँ। तुझसे बड़ी वाली बिल्ली। मैंने तुम्हारे कमरे में कैमरा छुपा रखा है। तुम लोग जो भी बात करते हो मुझे सब पता चल जाता है।" माँ ने मिहिर के पिता की तरफ़ देखकर आँख मारते हुये कहा। ( दरअसल जब मिहिर और तुलसी रसोई में साथ खीर बना रहे थे उस समय कामवाली आयी थी झाँकने। उसी ने जाकर मिहिर की माँ को बता दिया था कि भैया भाभी की मदद कर रहे हैं।)

" बहू को खाना बनाना नही आता तो कौन सी बड़ी बात है। मेरी जब शादी हुई थी तब मेरी उम्र केवल सोलह साल थी। मुझे खाना बनाना मेरी सास ने सिखाया। अब बारी है कि मैं अपनी बहू को खाना बनाना सिखा कर अपनी सास का कर्जा उतारूँ।" सास ने प्यार से बहू के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा। नवयुगल की पोल खुल जाने पर सब ठहाका मारकर हँस रहे थे। मिहिर झेंप रहा था पर तुलसी की आँखों में अपनी सास के लिये सम्मान के आँसू भरे थे। उसे खुशी इस बात की थी कि आख़िरकार ईश्वर ने उसे एक ममतामयी माँ इसी जीवन में दे दी।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

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