Monday 28 October 2019

लोहे की कढ़ाही

नये जमाने की बहू थी....पढ़ी लिखी समझदार। एक दिन बाज़ार से नॉन स्टिक कढ़ाही ले आयी। " ये देखिये मम्मी जी। ये नये तरह की कढ़ाही चलती है अब। लोहे की कढ़ाही की तरह जलती नहीं है। न ही इसे घंटों घिस घिस कर माँजना  पड़ता है। बस स्क्रबर से ही साफ़ हो जाती है।" 

" पर बहू क्या इसमें बनी सब्जी में स्वाद आयेगा? और फिर कहते है इसमें बनी सब्जी से आयरन...." सास ने थोड़ा हिचकते हुये कहा। 

बीच में ही बहू ने बात काट दी..." स्वाद तो मसाले और सब्जी में ख़ुद ही होता है, मम्मीजी जी... कढ़ाही का इससे क्या लेना देना...और आयरन तो आजकल अच्छे खानपान और गोलियों से मिल जाता है। " मॉर्डन बहू ने नई नवेली कढ़ाही बर्तनों के बीच सजा दी। 

नयी नवेली नॉन स्टिक कढ़ाही पुराने बर्तनों के बीच में एकदम रानी की तरह इतरा रही थी। उसका रुतबा ही अलग था। कहाँ वो इतनी महँगी, नाज़ुक सी, कोमल सी, सहेज कर रखी जाने वाली चीज़। कहाँ वो पुरानी लोहे की बदसूरत सी कढ़ाही, जितना भी पटको कुछ असर नही होता था उस पर। कुछ दिनों तक लोहे की कढ़ाही उपेक्षित सी इधर उधर पड़ी रही। उसमे जंग लगने से वो और बदसूरत हो चुकी थी। आख़िरकार उससे ऊबकर बहू ने उसे महरी को दे दिया। 

समय बीता बहू माँ बनी, बच्चों में ख़ुद का ख़्याल रखना भी भूल जाती थी। आयरन की गोली तो क्या रोटी खाने तक का समय उसके पास नहीं रहता था। एक दिन चक्कर खा कर गिरी। डॉक्टर ने ब्लड टेस्ट कराया, मालूम पड़ा हीमोग्लोबिन सात-आठ पहुँच गया था। डॉक्टर ने जम कर डाँट लगाई। कहा," खान पान सुधारिये अपना। जीवन शैली बदलिये। सब्जी किसमें पकाती है आप? "

" नॉन स्टिक कढ़ाही में।" बहू ने सहमते हुये उत्तर दिया। 

" उफ़्फ़ ये आज कल की लड़कियाँ।" डॉक्टर पुरानी थीं और बहुत अनुभवी थीं।" आप को एक सलाह देती हूँ नॉनस्टिक का प्रयोग बंद करिये। नयी खोजों में पता चला है नॉन स्टिक बहुत हानिकारक होता है। ऐसा करिये लोहे की कढ़ाही में खाना बनाइये, स्पेशली हरी पत्तेदार सब्जियाँ...आयरन की कमी अपने आप दूर हो जायेगी। गोलियों पर भी बहुत अधिक निर्भर रहना ठीक नहीं है।" 

मुँह लटका कर बहू बाज़ार गयी, वहाँ से एक लोहे कढ़ाही लाकर घर में बर्तनों बीच में सजा दी। " मम्मीजी डॉक्टर ने कहा है लोहे की कढ़ाही में सब्जी बना कर ही खानी है।" बहू ने अपनी सास से थोड़ा सकुचाते हुये कहा। सास रसोई में ही खाना पका रही थीं। 

सास ने बर्तनों के बीच में रखी लोहे की कढ़ाही की ओर देखा। लोहे की कढ़ाही और सास दोनों एक दूसरे को देखकर मुँह दबाकर हँसने लगीं।  

©® टि्वंकल तोमर सिंह, लखनऊ।

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