Tuesday 29 October 2019

मुझे मेरी मम्मी जी वापस चाहिए

"तुम्हारी सास इतने चटकीले कलर पहन लेती है?" नेहा ने अपनी सहेली ऋतु से कहा जो अपनी सास के लिये साड़ी पसंद कर रही थी।

" हाँ...क्यों...क्या ख़राबी है इन रंगों में।" ऋतु ने पलट कर पूछा।

" ख़राबी कुछ नहीं...मेरा मतलब है कि तुम्हारी सास तो अभी कुछ ही महीने पहले.....मेरा मतलब....तुम्हारे ससुर को गुज़रे हुये अभी डेढ़ महीना ही तो हुया है न ऋतु?" नेहा थोड़ा अटकते अटकते बोला। 

" हाँ... नेहा...तो उससे क्या हुआ?...तुम शायद ये कहना चाहती हो कि उन्हें सफ़ेद या हल्के रंग पहनने चाहिए...है न?" ऋतु ने मंद मंद मुस्काते हुये कहा। 

" ऋतु मैं तुमको हर्ट नहीं करना चाहती। बस यूँ ही मन में आया तो पूछ लिया।" नेहा ने शर्मिंदा होते हुये कहा। 

" इट्स ओके...मुझे बुरा नहीं लगा। जानती हो मेरी सास को हमेशा से चटक रंग बहुत पसंद थे...वो कभी फ़ीके रंगो के कपड़े नहीं पहनती थीं।" ऋतु जैसे अतीत में चली गयी थी। 

" पापा जी के गुज़र जाने के बाद जब मैंने उन्हें सफ़ेद साड़ी में देखा....." इतना कहकर ऋतु की आँखें नम हो गयीं। नेहा उसकी पीठ सहलाने लगी। ऋतु ने रुमाल निकाला और अपनी छलक आयी आँखों को पोछ डाला। फिर आगे कहने लगी," जब मैंने उन्हें सफ़ेद साड़ी में देखा तो मुझे बहुत बुरा लगा...पापाजी के चले जाने के बाद वो एकदम बुझ सी गयीं थीं...उनको देखकर मैं बस ये सोचती रहती थी... क्यों बनाई गई ये रीत?....जो बुझ गया है बुझा ही रहे इसलिये?..."

" रंगों का अपने मन पर कितना असर पड़ता है जानती ही हो...आपने आस पास ढेर सारे रंग हों तो मन भी प्रफुल्लित हो जाता है...सबसे बड़ी बात....मुझे लगता ही नहीं था कि वो मेरी सास हैं। मुझे लगने लगा था कोई और मेरे साथ इस घर में रहने लगा है....सफेद साड़ी में लिपटी कोई अनजान महिला...जिसे मैं पहचानती तक नहीं..." ऋतु खोई खोई कहती जा रही थी। 

" फिर एक दिन मैंने मम्मी का हाथ पकड़ा और उनकी अलमारी खोलकर उसके सामने उन्हें खड़ा कर दिया....क्या करेंगी आप इन सब साड़ियों का?...इनमें से कुछ तो आप जीते जी सीने से लगा कर रखेंगी क्योंकि पापाजी ने आपको ला कर दी थी..कुछ आप मुझे या दीदी को दे देंगी...पर उससे क्या हासिल होगा?"

" मम्मी... पापा गये हैं....आप वहीं हैं...पापा भी आपको ऊपर से इस रूप में दुखी देखते होंगे तो ख़ुश नहीं होते होंगे। सफ़ेद साड़ी पहन कर आपको कौन सी उपलब्धि मिल जा रही है? क्या मैं जानती नहीं आपको चटक रंग कितने पसंद है?...मुझे मेरी मम्मी जी वापस चाहिये...रंग बिरंगी....मेरा नहीं तो शोमू का ही ख़्याल कर लीजिये। डेढ़ साल का है... सफ़ेद साड़ी में जबसे आपको देखा है आपसे पास जाने तक से डरता है...उसे उसकी दादी वापस दे दीजिये।" 

"जब इतना मैंने उन्हें समझाया तब जाकर उन्होंने वापस रंग बिरंगी साड़ियां पहननी शुरू की है...नेहा...इससे क्या फर्क पड़ता है कि वो विधवा है?...रंगों पर भगवान ने सबको अधिकार दिया है।" ऋतु मुस्कुरा दी और नेहा भी। 


©® टि्वंकल तोमर सिंह, लखनऊ।



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