"मैंने एक वास्तु की क़िताब में पढ़ा है। पति पत्नी के बीच में झगड़े क्यों होते है?" ड्रेसिंग टेबल पर बैठी अनामिका ने कहा जो कि आईने में ख़ुद को देखकर अपने बाल सवाँर रही थी।
"क्या पढा है, क्यों होते हैं झगड़े ?" अनामिका के पति ने बिस्तर पर लेटे लेते कहा जो कि इंडिया टुडे पढ़ने में व्यस्त थे, पर बीवी ने जो कहा उस पर प्रतिक्रिया देना बहुत ज़रूरी था, अन्यथा अभी यहीं, इसी वक़्त, इसी बात पर झगड़ा शुरू हो जाता कि तुम मेरी बात ध्यान से नहीं सुनते हो, फिर वास्तु चाहे जितना ठीक होता या बिगड़ा होता उससे कोई मतलब नहीं।
अनामिका ने फौरन कंघी रख दी, पति की तरफ मुँह मोड़ लिया, फिर बोली, "हमारे बीच में झगड़ों का कारण है हमारा बिस्तर।"
"बिस्तर ?? वो कैसे भला।" पति ने इच्छा न होते हुये भी जानने की इच्छा का पूरा पूरा नाटक किया। पति को पता था अनामिका ऐसे ही फ़िज़ूल के प्रैक्टिकल करती रहती है।
" अरे हमारा डबल बेड दो सिंगल मैट्रेस से मिलकर बना है न। बस यही हमारे बीच में दरार डाल रहा है। और वो जो हम अलग अलग कम्बल या चादर ले कर सोते हैं न ...वो भी एक कारण है। पति पत्नी को एक ही मैट्रेस पर सोना चाहिए और एक ही रजाई या कम्बल या चादर ओढ़नी चाहिए। ऐसा लिखा है श्री श्री पद्मनाभ जी वास्तु विशेषज्ञ जी ने अपनी किताब में। " अनामिका ने पति को समझाते हुये कहा।
"हूँ....समझ गया।" पति ने हामी भर दी।
"समझ क्या गये ...चलो कल ही नया मैट्रेस लेकर आते है, जो पूरे पलंग पर बिछ सके।" अनामिका ने जोर देते हुये कहा।
"ठीक है बाबा।" पति ने पीछा छुड़ाते हुये कहा।
दूसरे दिन अनामिका और उसका पति बाज़ार से लाकर एक सिंगल मैट्रेस डाल देते हैं और एक डबल बेड के साइज का एक कम्बल भी ले आते हैं।
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अब जन्म लेती है लड़ाई की एक नयी वज़ह...
"तुम अपने आधे हिस्से तक सीमित क्यों नहीं रहते हो? आधे से ज़्यादा बिस्तर पर तुम्हारा ही कब्ज़ा रहता है। " दो दिन बाद ही अनामिका ने अपने पति से शिकायत की।
"अरे पहले दो आधे आधे मैट्रेस थे तो एक सीमा रेखा रहती थी। अब पता ही नहीं चलता कहाँ मेरा हिस्सा ख़त्म हुया, तो मैं क्या करूँ? वैसे ये आधा कहाँ ख़त्म होता है बताओगी ज़रा?" पति ने पलट कर पूछा।
"इतने भी भोले नहीं हो तुम। और कम्बल भी तुम पूरा खींच लेते हो मैं खुले में ही सोती रहती हूँ। और तो और दबा लेते हो कस कर। खींचने से भी नहीं देते। पूरी रात मुझे जाड़ा लगता रहता है।" अनामिका ने मुँह बनाते हुये कहा।
"अरे वाह यही बात तो मैं भी कह सकता हूँ। मुबारक हो मोहतरमा। हमारे विचार आपस में कितना मिलते हैं। मुझे भी ऐसा ही लगता है कि मुझे बस ज़रा सा कम्बल मिलता है और आधे से ज़्यादा बेड पर तुम्हारा कब्ज़ा रहता है।" पति ने गुस्से से मुँह दूसरी तरफ फेर लिया और टीवी ऑन कर लिया।
"तुम्हारा मतलब है मैं झूठ बोल रही हूँ? " अनामिका ने अपनी उपेक्षा होते हुये देखा तो रूआंसी हो आयी।
"नही.. पर मैं भी झूठ नहीं बोल रहा.." पति फिर भी अपनी बात पर अड़े रहे।
"फिर ऐसे कैसे चल पायेगा बोलो? तुम बेवज़ह लड़ते हो। बात समझना ही नहीं चाहते।" अनामिका की आंखों में मोटे मोटे आँसू उभर आये थे ।
"अब ये तो तुम बताओ, कैसे चलेगा?..तुम्हें ही वास्तु की पड़ी थी..." अनामिका के आँसुओं को इग्नोर करते हुये पति ने कहा।
"तुम्हें तो कुछ परवाह ही नहीं, तुम्हें मेरी हर बात बुरी लगती है, " अनामिका के आँसू बह निकले।
दूसरे कमरे में बैठी अनामिका की सास ने एक बार फिर से माथा पटक लिया.."फिर शुरू हो गए दोनों.."ऐसा कहकर उन्होंने अपने कमरे के टीवी का वॉल्यूम बढ़ा लिया।
और ये नोंक झोंक चलती रही।....
इस कहानी से बस इतनी सी शिक्षा मिलती है कि पति पत्नी के बीच होने वाले ये छोटे मोटे झगड़े मिट जायें, दुनिया में ऐसा कोई भी वास्तु टिप्स नहीं।
©® टि्वंकल तोमर सिंह, लखनऊ।
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