Wednesday 19 February 2020

मासिक धर्म में पूजा क्यों नहीं करनी चाहिये

कल वाली पोस्ट पर आप सबकी एक से बढ़कर एक बेहतरीन प्रतिक्रियाओं का बहुत बहुत धन्यवाद। सबको अलग से उत्तर देना संभव नहीं है। इसलिये इसे ही acknowledgement समझिए। 

दूसरी बात मेरी पोस्ट में कहीं भी किसी भी बाबा या उनकी विचारधारा का जिक्र या उनका समर्थन नहीं है। पढ़े लिखे लोगों से इतना तो पढ़कर समझने की उम्मीद की ही जा सकती है। साथ में मैं एक अध्यापिका हूँ, समाज से अंधविश्वास को ख़त्म करना मेरी अघोषित जिम्मेदारी भी है। 

कुछ पॉइंट्स पुनः रखना चाहती हूँ। 

मासिक का मसला शुद्धता व साफ सफाई से क्यों जुड़ा हुआ है ये शायद आज समझना मुश्किल है क्योंकि बगल वाली दुकान में लांग, एक्स्ट्रा लांग पैड शहरी स्त्रियों के लिये आसानी से उपलब्ध हैं। मेरी सास बताती हैं कि डिलीवरी या अबॉर्शन की अवस्था में उनको नीचे रक्त सोखने के लिये कम्बल दे दिया जाता था। अब आप सफाई की दृष्टि से इसे ख़ुद ही जोड़ कर देख लीजिये। गरीब लड़कियां मिट्टी, राख, गंदा कपड़ा क्या नहीं इस्तेमाल करने पर मजबूर है? एक बार अबॉर्शन की स्थिति में मेरे लिये अपने कमरे से बाथरूम तक जाना असंभव था। कमरे से लेकर बाथरूम तक फर्श पर खून ही खून फैल गया था। पंद्रह मिनट तक मैं बाथरूम से रक्त स्राव के कारण निकल नही सकी।

दूसरा शौचालय से आने के बाद क्या आप अपने मंदिर में दिया बाती करने लगते है? क्या आप बिना नहाए धोए पूजा करने लग जाते है? हाँ, जरूरत पड़ने पर तो बचपन में शौचालय में भी बिजली गुल हो जाने पर मैंने हनुमान जी को याद किया है। परीक्षाओं में अगर बिना नहाए भी भगवान से आशीर्वाद लेना पड़ा, तो लिया बिना इस भय के कि पाप हो गया है। 

सुबह सुबह नित्यक्रिया से निपट कर, पहले बिना नहाये मैं स्वयं प्राणायाम, ध्यान  और ओम का उच्चारण करती हूँ। अपने इष्ट का ध्यान करती हूँ। क्योंकि इन सबके लिये खाली पेट चाहिए। शुद्ध मन से आप किसी भी अवस्था में ईश्वर का स्मरण करें, कौन रोक सकता है भला? और बिना ईश्वर को याद किये किसी का एक पल भी गुजरता है क्या? कुछ भी अनहोनी हो सीधे मुँह से निकलता है, - हे राम! ओह गॉड या कुछ और या कोई मंत्र जिसका आप नियमतः जप करते हैं। फिर आप किसी भी स्थिति में हो।  सिजेरियन के बाद मेरे बच्चे को आई सी यू में रखा गया था, तब मेरे मन में भी मेरे इष्ट का जप चल रहा था। उस समय हॉस्पिटल में बेड पर पड़े हुये सफाई मेरी प्राथमिकता में नहीं थी। 

जिन लोगों को मेरी बात समझ आयी, जिन्होंने मुझे सराहा उनका हृदय तल से धन्यवाद। जिन लोगों को खामख्वाह लग रहा है कि मैंने विरोध में पोस्ट लिखी है , उनकी बुद्धि को प्रणाम। आप तीर के निशाने पर ख़ुद ही आकर बैठ जाये, तो बहन इसमें मैं क्या करूँ? 

मैंने पहले ही लिख दिया था कि पूजा पाठ करना न करना, रसोई छूना न छूना, अचार निकालना न निकालना जैसी मनाही आज के दौर में कोई नहीं मानता। फिर प्रॉब्लम क्या है बहन? 

अशुद्ध अवस्था है और मुझे अपने पिता की याद आये तो मैं उनको याद करके रो सकती हूँ, मगर वही पिता अगर मेरे सामने आ जायेंगे तो पहले मैं अपने रक्त से सने कपड़े संभालूंगी बाद में उनसे मिलूँगी। लेकिन अगर मुझे गंभीर रक्तस्राव है, बिस्तर पर पड़ी मैं एक रोगी हूँ, तो मेरे पिता मुझे किसी भी अवस्था में देखें मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

यही रिश्ता मेरा अपने परमपिता से है। और मैं अपनी बात पर कायम हूँ। 

~Twinkle Tomar Singh

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