वो उनकी आँखों में
देखते हुए बोलीं-
आपके तीनों नेत्र
कितने निष्पाप है,
कितने सच्चे।
मानो सारी सृष्टि
घूर्णन करती है
इन पुतलियों में!
फिर कौतूहल से पूछा
और मेरे नैन ?
तेरे नैन कहाँ
निष्पाप हैं प्रिये
छवि मेरी
बंदी बना के रखते हैं
घोर अपराधी हैं ये!
शिव-पार्वती संवाद
टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ।
चित्र: साभार गूगल
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