मैं जानती हूँ
तुम्हारे प्रेम में विवश होकर
मेरी कोई प्रगति नहीं होगी
मैं एक बिन्दु पर
अटक कर रह जाऊँगी
उस बिन्दु से निकलेगीं
असंख्य रेखायें
उन रेखाओं पर टाँग दूँगी मैं
प्रेम में पगे शब्द
बन जायेगीं कवितायें
ये कवितायें ही बन जायेंगी
सर्वजनीन प्रेम के लिये
विधाता द्वारा प्रस्तावित
अनुबंध के नीचे
मेरे हस्ताक्षर !
टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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