क्षणभंगुर जीवन का शोक
गहरा होता जाता आंखों के
नीचे काले गड्ढों में
बुजुर्गों के आशीर्वाद,
छोटों की दुआएं
शरत ऋतु में डालियों को
पुष्पवासित न कर पाने की विवशता में
ठिठुरते रहते हैं
विश्वासघात चकित करते हैं
एक जादुई जिन्न की तरह
कुछ स्तब्ध क्षणों में
सारे शोक किसी चिराग़ की तली में
दफन कर आते हैं
आँखें बंद किये
चौराहों पर खड़े हम अपने
उधड़े वस्त्र लिए
आँसुओं के धागों से सीते रहते हैं
मित्र आते हैं
हमें एक प्रतिमा का आदर सौंपने
माल्यार्पण की रीत प्रीत की तरह निभाकर
एक विश्व विजेता कप हाथ में थमाकर
कंधे पर उठा लेते हैं !
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