Friday 7 August 2020

स्वर्ग सी छटा

जहाँ
लालिमा लोबान सी सुलगती 
धूप को धुंध नहीं ग्रहण लगाती 
बसंत मिट्टी में छुपी निधि को
बिन ब्याज लिए हर डाली को उधार देता 

जहाँ 
नद-क्षीर संजोये घाटी की कटोरी
पर्वत शिखर ललचवाये बन कुल्फी
हरियाली का हर एक पन्ना
हवा की कुँवारी साँसों से फड़फड़ाता 

मेरे प्रेयस
तुम इंगित करो स्वर्ग सी छटा कहाँ कहाँ
मुझे ले डूबे तेरी आँखों का छोटा सा कुँआ

टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 

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