जहाँ
लालिमा लोबान सी सुलगती
धूप को धुंध नहीं ग्रहण लगाती
बसंत मिट्टी में छुपी निधि को
बिन ब्याज लिए हर डाली को उधार देता
जहाँ
नद-क्षीर संजोये घाटी की कटोरी
पर्वत शिखर ललचवाये बन कुल्फी
हरियाली का हर एक पन्ना
हवा की कुँवारी साँसों से फड़फड़ाता
मेरे प्रेयस
मुझे ले डूबे तेरी आँखों का छोटा सा कुँआ
टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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