Monday 10 August 2020

फ़ेसबुकिया इश्क़

आज उसने उसे मिलने के लिये एक रेस्तरां में बुलाया है। पिछले कई दिन से वो उस पर प्यार से दबाव बना रहा था। 

" स्नेहा, कितने दिनों से हम चैट कर रहे हैं। जानती हो जब तुम्हें वीडियो कॉल पर सामने देखता हूँ, तो अपने मोबाइल की स्क्रीन पर उंगली फिरा कर तुम्हें छूने की चाहत को थोड़ा सा तृप्त कर लेता हूँ। पर अब और नहीं...प्लीज़ बस एक बार। " 

स्नेहा ने हर बार टाल दिया। पर अबकी बार उसने कहा कि अगर वो नहीं मिलेगी तो वो समझेगा कि उनके बीच कोई रिश्ता नहीं। अगले दिन वो उसे अनफ्रेंड करके ब्लॉक कर देगा। उसका मोबाइल नंबर भी ब्लॉक कर देगा। उसे या तो इस रिश्ते में पूर्ण संतुष्टि चाहिए या फिर अभी ही रास्ते अलग हो जाएं। 

स्नेहा बहुत देर तक बैचैन सी तड़पती रही। मैसेंजर में एक 'हेलो' से शुरू हुआ रिश्ता कैसे इतने आगे बढ़ गया कि आज एक दिन उससे बात न करे तो उसे चैन नहीं। रोज़ वो अपने व्हाट्सएप पर एक से बढ़कर एक शायराना स्टेटस लगाता था। फ़ेसबुक पर प्यार भरी कवितायें पोस्ट करता था। उसे मालूम था ये सब उसके लिए ही हैं, सिर्फ़ उसकी स्नेहा के लिये। 

गृहस्थी में फंसी, पति की उपेक्षा की शिकार स्नेहा को चाहिये भी क्या था? बस एक दुलार की हल्की सी थपकी ! कोई उसे सुन ले, उसके रूप की तारीफ़ कर दे, उसकी छोटी छोटी बातों पर ध्यान दे। क्या यही कमी नहीं पकड़ ली थी कबीर ने ? 

"हेलो, आपकी तस्वीर को देखा, तो देखता रह गया। कितनी पवित्र आँखें है आपकी। क्या आपके फ़ेसबुक फ्रेंड बनने का गौरव मिलेगा ?" 

उसके पहले टेक्स्ट ने ही उसे मजबूर कर दिया था कि वो उसकी प्रोफाइल पर जाकर देखे, कि आख़िर कौन है ये? एक संभ्रांत परिवार का शादीशुदा व्यक्ति, दो बच्चों का पिता, अच्छे पद पर, शालीनता से अपने विचार रखने वाला। ठीक ही तो था, मित्रता प्रस्ताव स्वीकार करने में क्या बुराई थी? 

लेकिन अब बात मित्रता से बहुत आगे बढ़ चुकी थी। स्नेहा उसके ख़ुमार में थी। उसकी प्यार भरी बातें, उसे उसका ख़ास महसूस करवाना, उसका ये कह भर देना कि वो फ़ेसबुक पर बस उसके लिये आता है, पागल कर देता था। 

पर आज उसका मिलने के लिये यूँ बुलाना....क्या अब उसके संदेशों में प्यार के अलावा कुछ और भी नहीं झलक रहा है ? 

"देखो...एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स कोई नयी बात नहीं हैं स्नेहा। मैं तुमसे प्यार करता हूँ , मैं तुमको लेकर कुछ इमेजिन नहीं करूँगा तो क्या अपनी नानी को सोचूँगा? भरोसा रखो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। " अभी पिछले ही हफ़्ते उसने चैट में कहा था।

तीन बज गया था। वो रॉयल कैफे पहुँच गया है। उसने वहाँ से सेल्फ़ी भेजी है। कितना खुश लग रहा था। स्नेहा भी रुक नहीं पा रही थी। पर कैसे जाये...स्नेहा का सिर फटने लगा। क्या करे, जाए या न जाये? 

आख़िरकार उसने न जाने का फ़ैसला किया। 

"सॉरी, ये मेरा शहर है, किसी ने देख लिया तो खामख्वाह बातें बनेगीं। मैं अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी में कोई बाधा नहीं चाहती। माफ़ कर देना। लव ! " इसके बाद मोबाइल स्विचड ऑफ़ करके गुमसुम सी वो बिस्तर पर पड़ गयी। 

शाम को जब उसने मोबाइल ऑन किया, तो सबसे पहले उसने उसके टेक्स्ट चेक करने चाहे। देखा तो वो उसे हर जगह ब्लॉक कर चुका था। स्नेहा की आँखों में आँसू आ गए। 

उस दिन से उसका किसी भी चीज़ में मन लगना बन्द हो गया। वो एक लत बन चुका था। सुबह उसकी गुड मॉर्निंग से होती थी तो रात उसके लव यू कहने पर ख़त्म होती थी। अब किसी की प्रोफाइल चेक करने का उसे चाव न रहा। कोई उसके लिये प्यार भरे स्टेटस नहीं डालता था। स्नेहा वैसे ही तड़पने लगी जैसे ड्रग्स न मिलने पर ड्रग्स लेने वाले रोगी की हालत हो जाती है। 

वो उसे देखे बिना नहीं रह सकती थी। अचानक उसके दिमाग में एक ख़्याल आया। वो ब्लॉक है तो क्या हुआ। एक दूसरी फेक आई डी तो बना कर उस पर नज़र रखी जा सकती है। बस फिर क्या था। करिश्मा साहनी के नाम से उसने एक नई आई डी बनाई। उसकी प्रोफाइल जाकर चेक किया। उसका अभी भी प्यार भरी शायरियाँ चेपना बदस्तूर जारी था। उसे तो उससे अलग होने का जैसे कोई फर्क ही न पड़ा हो। ख़ैर हो सकता है फ़ेसबुक पर ऐसा दिखाने के लिये कर रहा है। अंदर ही अंदर वो भी जरूर दुखी होगा। चार महीने से दोनों ही एक दूसरे के प्यार में गुंथे हुये थे। 

स्नेहा अब जब भी मन करता करिश्मा साहनी बन कर उसको देख आती थी। पर भूल कर भी उसकी कोई पोस्ट पर न लाइक करती न कमेंट। " देखती हूँ, जनाब कितने दिन दूर रहते हैं।" उसकी प्रोफाइल स्क्रॉल करते करते वो मुस्कुराती रहती। 

तभी एक दिन अचानक करिश्मा साहनी के मैसेंजर में एक संदेश आया- "हेलो, आपकी तस्वीर को देखा, तो देखता रह गया। कितनी पवित्र आँखें है आपकी। क्या आपके फ़ेसबुक फ्रेंड बनने का गौरव मिलेगा ?"  ये कोई और नहीं कबीर ही था। स्नेहा ने एक ऐसे ही किसी गुमनाम अभिनेत्री की घरेलू सी फ़ोटो डीपी में लगा रखी थी। 

स्नेहा का भ्रम एक काँच के महल सा टूट गया। कोई प्यार व्यार नहीं था। ये तो बस एक खेल है। जिसमें लड़कियों, विवाहित स्त्रियों को फंसा कर उनसे प्रेम भरी बातें करके दूसरी तरफ बैठा एक मक्कार आदमी थोड़ी गुदगुदी का मजा ले रहा होता है। स्नेहा का चेहरा कठोर हो गया। वितृष्णा से उसके मुँह का स्वाद कसैला हो गया। 

" बास्टर्ड...!!"  उसने रिप्लाई में लिखा। और उसे ब्लॉक कर दिया। 

टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

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