Sunday 16 August 2020

प्रेमाग्नि

प्रेमाग्नि 

चकमक पत्थर के
किसी कोष्ठ में बंद
प्रतीक्षारत अग्नि
उष्ण हथेलियों के स्पर्श के
हल्के घर्षण से
लपट बन जाती है

मैंने रख दी थीं कभी
अपनी दोनों हथेलियाँ 
आपस में घिस कर 
तुम्हारे सीने पर 
जहाँ तुम्हारे हृदय में
अविकल प्रस्तर धैर्य
एक प्रतीक्षारत मौन 
धारण कर रखता था


~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 





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