प्रेमाग्नि
चकमक पत्थर के
किसी कोष्ठ में बंद
प्रतीक्षारत अग्नि
उष्ण हथेलियों के स्पर्श के
हल्के घर्षण से
लपट बन जाती है
मैंने रख दी थीं कभी
अपनी दोनों हथेलियाँ
आपस में घिस कर
तुम्हारे सीने पर
जहाँ तुम्हारे हृदय में
अविकल प्रस्तर धैर्य
एक प्रतीक्षारत मौन
धारण कर रखता था
~ टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।
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