आज समाचार मिला तनु के पति कोरोना के भेंट चढ़ गए।
फ़ेसबुक पर किसी कॉमन फ्रेंड ने ये बुरी ख़बर शेयर की। मन अजीब सा हो गया। हँसती , खिलखिलाती तनु का चेहरा आँखों के आगे नाच गया। मैंने अपने जीवन में इतनी हँसोड़ प्रवृत्ति का शायद ही कोई दूसरा इंसान देखा हो। बात बात में हँसना, हर अच्छी बुरी बात में कोई चुटकी ले लेना। अब क्या होगा उसका ? कैसे सहन कर पायेगी वो ये दुःख?
अमीर घर की तनु सुख सुविधओं से पली बढ़ी थी। ग्रेजुएशन में हम साथ पढ़े थे। ग्रेजुएशन करते ही उसकी शादी एक धनी बिज़नेस मैन के बेटे से हो गयी। उसके दो बेटे भी हो गए थे। अच्छी भली दौड़ती ज़िन्दगी में ये अचानक से ब्रेक लग गया था। भुलाये नहीं भूल रहा था उसका चेहरा। मन कर रहा था अभी जाकर मिल लूँ। पर फ़ोन तक करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।
आख़िर कुछ दिनों बाद हिम्मत करके उसे फ़ोन मिला दिया।
"हैलो" तनु की बहुत धीमी सी आवाज़ आयी उस पार से।
"हैलो, तनु, कैसी हो अब ? " मैंने छोटा सा प्रश्न किया।
"ठीक हूँ, माही, अपने को सँभालने के सिवा और चारा भी क्या है। अभी फ़ोन रखती हूँ। बच्चे आ गए हैं।" बिना मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किये तनु ने फ़ोन रख दिया।
शान्त , संयत स्वर में बात करती तनु से बात करके भी तृप्ति ही नहीं मिली। ऐसे लगा जैसे किसी और से बात की हो। दुःख के कोड़े मन के साथ वाणी को भी लकवा लगा जाते हैं।
कई दोनों तक हमारे बीच में कोई संवाद नहीं हुआ। मेरी तो हिम्मत ही नही होती थी बात करने की और तनु शायद अपने जीवन को दुबारा संवारने इतनी व्यस्त हो गयी थी कि किसी के लिये भी उसके पास वक़्त नहीं था।
एक दिन अपने से तनु का फ़ोन आया।
"माही, मैं आ रही हूँ तुम्हारे शहर, कुछ काम है बिज़नेस का। " तनु की आवाज़ में हल्का सा उत्साह दिख रहा था।
" अरे वाह ,सुबह सुबह अच्छी ख़बर... जल्दी आओ रे।" मैंने दोगुने उत्साह से उत्तर दिया।
फ़ोन रखने के बाद मैं उसके बारे में ही सोचती रहती थी। कितनी जिंदादिल थी तनु। पहनने ओढ़ने का, फैशन का , घूमने फिरने का, चाट पकौड़ी खाने का कितना शौक था उसे। अब कैसे उसे देख पाऊँगी मैं सादे सफेद कपड़ों में। उसका बिन बिंदी का सूना माथा क्या मुझे उसकी उजड़ी दुनिया के तिनकों सा नहीं चुभेगा ? लाल रंग की चूड़ियाँ कितनी पसंद थी उसे। कैसे तोड़ी गयीं होगीं वो चूड़ियाँ उसके हाथों में? क्या अब भी वो चूड़ियाँ पहनती होगी? शायद एक कँगन डाल लेती होगी हाथों में।
फिर वो दिन आ ही गया जब तनु अपना सूटकेस लिये मेरे दरवाजे पर खड़ी थी। आश्चर्य... मैंने जैसी उम्मीद की थी वो वैसी बिल्कुल भी नहीं थी। पीले रंग के सूट में लाल चुनरी ओढ़े, हाथों में लाल पीले कँगन, माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, हँसता मुस्कुराता चेहरा।
"तनु...." मैं भावतिरेक में उससे गले लग गयी।
"अरे अंदर तो आने दो, या यहीं खड़े रखना है मुझे।" प्यार से धिक्कार कर वो अंदर आ कर सोफे पर बैठ गयी।
"क्या देख रही हो? मैं बिल्कुल नहीं बदली , यही न ? "
"नहीं...हाँ...कुछ नहीं बस ख़ुश हूँ तुम्हें देखकर।"
" देखो माही, मैं बहुत दिनों तक डिप्रेशन में रही। सब जो कहते गये, मैं करती रही। सफेद साड़ी पहनी, सफेद सूट पहना, सारा श्रृंगार त्याग दिया। पता है क्या हुआ...मेरा दो साल का बेटा मुझे इस रूप में देखकर ख़ूब रोता था, अपनी दादी के पास दुबक जाता था। तब मुझे एहसास हुआ मैं ये क्या कर रही हूँ।" तनु का गला भर आया था।
" अभी कहाँ है बेटे तुम्हारे? " मैंने पूछा।
"वहीं दादा- दादी के पास। डैडी का बिज़नेस मैंने संभाल लिया है। पता है माही...जाने वाला तो चला गया। मेरे सामने तो पूरी ज़िन्दगी पड़ी है अभी। बहुत बुरा लगता है अब भी। पर यही लगता है मरने वाले के साथ मरा नहीं जाता। मैं अपने बच्चों के सामने मुर्दा लाश बनकर नहीं रह सकती। मुझे उनकी जिन्दादिल माँ बनना ही होगा। "
तनु की आँखों से आँसू निकल पड़े थे,जिसे उसने रुमाल से पोछ लिया था। अब उसकी आँखों में चमक साफ देखी जा सकती थी।
टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ।
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