Saturday 26 September 2020

पराठा चोर ननद

"अजी सुनो...." निधि ने अपने पति को आवाज़ लगाई। उसका पति टीवी पर मैच देखने में व्यस्त था। 

"हां बोलो...क्या हुआ?" 

"वो श्रुति न आजकल सुबह सुबह आठ पराठे बनाकर अपने टिफिन में ले जा रही है।" निधि ने कहा। 

"तो..?" पति ने सुना अनसुना कर दिया और वापस मैच देखने में व्यस्त हो गए। 

निधि ने उसके हाथ से रिमोट छीन लिया और टीवी बन्द कर दिया। 

'अरे समझो कुछ।" निधि पास आकर बिस्तर पर बैठ गयी और फुसफुसा कर बोली। 

श्रुति निधि की ननद थी। एक अच्छे इंस्टीट्यूट से एम बी ए कर रही थी। रोज़ सुबह आठ बजे निकल जाना होता था। अपना नाश्ता वो स्वयँ ही बना कर ले जाती थी। आज सुबह सुबह  निधि सात बजे ही रसोई में पहुँच गयी तो उसने देखा कि श्रुति अपने लिये पराठे बना रही है। रोज ही बनाती थी तो इसमें कोई नई बात नहीं थी। पर जब उसकी नज़र परात की ओर गयी तो उसने देखा कि वहाँ आठ लोइयाँ रखी थी। 

"अब तुम्हीं बताओ इसमें मैं क्या समझूँ?" उसके पति ने खीजते हुये कहा। 

निधि ने कहा- "आज सुबह जब मैं रसोई में गयी तो देखा श्रुति सन्नाटे में आठ आठ लोई लिये पराठे बना रही है। मुझे बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे रहते ये तुम्हारे लिये पराठे बना रही है नाश्ते में। मैंने पूछा- अरे इतने पराठे किसके लिये बना रही हो? मैं तुम्हारे भैया के लिये नाश्ता बना दूँगी। तो जानते हो क्या बोली?" 

" क्या बोली?" 

"यही कि अरे मैं ले जा रही हूँ टिफिन में। मैं खाऊँगी। " 

"हां तो दिन भर बाहर रहती है । भूख लगती होगी? " 

"अरे रहने दो। इतनी डाइट किसी लड़की की नहीं होती। ये किसी और की ही ख़ुराक का इंतजाम किया जा रहा है। दो अपने लिये छह किसी और के लिये।" निधि बोली। 

"तुम कहना क्या चाहती हो?" 

" और तुमने ध्यान दिया कि हमारे घर में शिमला मिर्च में आलू भर कर सब्जी कभी नहीं बनती थी। फिर भी आजकल सासू माँ और ननद शाम को ही बना कर रख लेतीं हैं, उसके टिफिन के लिये।" निधि ने कहा। 

"अब ज़्यादा गोल गोल मत घुमाओ। साफ साफ कहो क्या कहना चाहती हो?" उसका पति बोला। 

" यही कि श्रुति ने लगता है कोई लड़का पसंद कर लिया है। और मम्मीजी की भी रज़ामंदी है। बस तुम इतने स्ट्रिक्ट हो, और उसके पिता है नहीं इसलिए बताने से डर रही है।" निधि ने मुस्कुराते हुये कहा। 

"ओह... ये बात..." उसके पति ने सिर खुजाते हुये कहा। " क्या पता कोई और बात हो। तुम बेकार में ज़्यादा दिमाग लगा रही हो। " पति ने रिमोट वापस लिया और टीवी देखने में पुनः व्यस्त हो गए। 

श्रुति का पराठा और भरवा शिमला मिर्च ले जाना ज़ारी रहा। इसके अलावा घर में कुछ अच्छी चीज बनती तो श्रुति कुछ हिस्सा निकाल कर रख लेती थी।  निधि  मन ही मन सब समझती रही। एक दिन उसने मौका निकाल कर अकेले में श्रुति से पूछ ही लिया , " क्या बात है? कोई पसंद आ गया है क्या ?" 

श्रुति अचकचा गयी, " आ आ ..नहीं तो भाभी...!" 

"अरे भाभी हूँ, पराई नहीं, सहेली मानो तो अपने दिल की बात बता सकती हो। वरना आठ पराठे तुम्हें हज़म हो जाते होंगे, आठ पराठे ले जाने वाली बात मुझे हज़म नहीं हो रही है।" निधि ने मुस्काते हुये कहा। 


"नही भाभी ऐसी कोई भी बात नहीं है। अगर होगी तो मैं सबसे पहले आपको ही बता दूँगी।" इतना कहकर श्रुति वहाँ से चली गयी। 

निधि ने मन में खिचड़ी पकती रही। उसे पता लगाना ही था कि माज़रा क्या है। निधि के रिश्तेदारी में एक पंद्रह-सोलह साल का लड़का था- विजय। निधि को भाभी कहता था , और बहुत मानता था। निधि ने एक दिन उसे बुलाकर कुछ कहानी समझा कर उसे श्रुति के पीछे लगा दिया। 

शाम को विजय ने जो कुछ बताया उससे निधि अपने आप पर शर्मिंदा हुये बगैर नहीं रह सकी। 

विजय ने बताया कि श्रुति दीदी कॉलेज के लिये निकलती हैं फिर थोड़ी दूर पर एक घर है, वहाँ जातीं हैं। दस पंद्रह मिनिट बाद वहाँ से निकलतीं हैं। विजय ने खिड़की से झांका तो पाया कि एक बुजुर्ग कुर्सी पर बैठे हैं। श्रुति दीदी ने उनको एक थाली में दो पराठे और सब्जी डाल कर दिया। और बाकी ढक कर उनकी मेज पर रख दिये। और कहा कि लंच में खा लेना। 

जिस घर की लोकेशन विजय ने बताई उससे निधि के मन पर पड़े सारे पर्दे हट गये। दरअसल वो बुजुर्ग कोई और नहीं श्रुति के अंकल थे। वो अंकल जो कभी उसकी माँ को बहुत पसंद करते थे, और आज भी उसकी माँ से कहीं न कहीं जुड़े हुए थे। श्रुति की माँ लोकलाज के कारण उनके घर नहीं जा सकती थीं। और श्रुति ने अनकहे ही अपने पिता समान बुजुर्ग की सेवा अपने सर ले ली थी। 

जब पूरी तरह कन्फर्म होकर निधि ने अपने पति को ये बात बताई तो उसने कहा," तुम्हें तो सी आई डी में होना चाहिये था। पराठा सूंघ कर बता देती हो, कोई तो खिचड़ी पक रही है।" 

"अरे वो सब छोड़ो..अब इस खिचड़ी में तड़का हमें लगाना है। " निधि ने कहा। 

"क्या मतलब ? " 

"अरे यही, कि अंकल अब भी हमारे घर का खाना खाएंगे मगर हमारे साथ हमारे घर में। हम मम्मीजी और उनकी शादी करवा दें तो कैसे रहेगा ? " 

"ख़याल तो बुरा नहीं है तुम्हारा। चलो मम्मी से बात करते हैं।" 

इसके बाद सादे ढंग से दोनों का विवाह करवा दिया गया। 

टि्वंकल तोमर सिंह,
लखनऊ। 

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