Saturday 24 October 2020

मोतियाबिंद

सवेरे से ही धनिया मेरे पास बैठी थी। एक घण्टे पहले ही आ गयी थी। उसे पूरा भरोसा था , आज दीवाली के दिन उसका लड़का उसे फ़ोन जरूर करेगा। 

जैसे ही मेरे फ़ोन की घण्टी बजती धनिया को लगता था कि उसी के लड़के का फोन है। पर मेरे किसी मित्र या रिश्तेदार की तरफ से फोन पर मिलने वाली बधाई सुनकर वो थोड़ा निराश हो जाती थी। 

"और कितनी देर बैठी रहोगी धनिया? उसने कहा था सुबह 9 बजे फ़ोन करेगा। अब तो ग्यारह बज चुके हैं। अपने घर जाओ। दीवाली की तैयारी करो।" मैंने रंगोली में रंग भरते हुये कहा। 

धनिया की आंखों में निराशा के हल्के से भाव आये। फिर बोली- लाइये ये वाला रंग हम भर देते हैं। जब तक रंगोली पूरी नहीं होती, हम आपके साथ रंग भरते रहेंगे। " 

धनिया की आस टूट जाये मैं भी नहीं चाहती थी। मैंने मुस्कुरा कर उसे अनुमति दे दी। 

धनिया का लड़का दिल्ली चला गया था। फिर कभी वापस आया ही नहीं। यहाँ धनिया अपनी मड़ैया में अकेले रहती थी। उसके दो बच्चे और थे। एक लड़की जिसकी शादी ही चुकी थी। और एक छोटा लड़का जो कई बरस हुये पीलिया, निमोनिया झेल न पाया , और भगवान को प्यारा हो गया। अब बड़ा लड़का ही उसके जीने की अंतिम आस थी। 

धनिया की आंखों में मोतियाबिंद ही गया था। उसे अपनी आँख का ऑपरेशन कराना था। उसे लगता था उसका बड़ा लड़का वापस आयेगा और उसका इलाज कराएगा। 

धनिया के एक सम्बन्धी चाचा दिल्ली किसी काम से गये थे वहाँ उनकी मुलाकात उसके लड़के से हुई। उन्होंने धनिया का पूरा हाल उसे बताया। उसका मोबाइल नंबर भी ले लिया। उन्होंने लौट कर बताया कि उसके लड़के ने दिल्ली में किसी फैक्ट्री में गॉर्ड की नौकरी ली है और वहीं उसने शादी करके अपनी गृहस्थी बसा ली है। 

धनिया को तनिक भी विश्वास न था। उसे लगता था उसका लड़का उससे पूछे बिना कपड़े तक नहीं पहनता था फिर शादी क्या करेगा। उसे क्या पता था कि दिल्ली जैसे बड़े शहर कितने भी सगे रिश्ते हों सबको पराया कर देते हैं। 

चाचा ने धनिया के बेटे का जो फ़ोन नंबर लाकर दिया था, धनिया ने जब उस पर कल मुझसे फ़ोन मिलवाया तो किसी औरत ने फ़ोन उठाया और कहा- "वो तो है नहीं।"

इधर से धनिया ने कहा- "हम उनकी अम्मा बोल रहे हैं।"

तो उधर से औरत ने कहा कल सुबह नौ बजे बात कराते हैं आपकी।
बस आज सुबह सात बजे धनिया मेरे साथ लगी है। अब तो बारह भी बज गये, पर उसका फ़ोन न आया। 

"भाभी न हो तो एक बार आप ही मिला लो, क्या पता भूल गया हो। या हो सकता है दीवाली की तैयारी में लगा हो।" 
धनिया ने कहा। 

मैंने उसका मन रखने के लिये फोन मिला दिया। पर मेरी अंदर की आवाज़ कह रही थी कि अब यहां कनेक्शन नहीं मिलने वाला। 

"हैलो.. सुखवान, धनिया...तुमसे बात करना चाहती है।" जब मैंने किसी आदमी की आवाज़ सुनी तो उसे धनिया का लड़का समझा। 

"यहाँ कोई सुखवान नहीं रहता। प्लीज़ इस नंबर पर फोन मत मिलायेगा कभी।" उधर से उत्तर आया। 

मैंने धनिया की तरफ देखा जो आंखों में आस भरे मेरी ओर देख रही थी। उधर से फोन कट चुका था। 

"क्या हुआ भाभी? " उसने पूछा। 

"कुछ नहीं धनिया। लगता है फोन ठीक से काम नहीं कर रहा। उधर से आवाज़ नहीं आ रही है।" मैंने बहुत धीमे से कहा। 

"अच्छा".. धनिया को जैसे मेरी बात का भरोसा नहीं हुआ। 
"अच्छा भाभी...कल फिर देख लेंगे।" इतना कहकर वो जाने लगी। 

मैं जानती थी कल भी फ़ोन नहीं आएगा। मैंने अलमारी से दस हज़ार रुपये निकाले। तब तक धनिया गेट तक पहुँच गयी थी। 

"धनिया ओ धनिया...." 

" हाँ, भाभी..." 

" तुम्हारे लड़के का फ़ोन नहीं लग रहा था। पर उसका मैसेज आया है। कह रहा है मेमसाब मेरी माँ को दस हज़ार रुपये दे दीजिए। जब मैं आऊँगा तब दे दूँगा। ये लो..पैसे। अपने मोतियाबिंद का इलाज करा लेना।" मैंने कहा।

धनिया की आँखों से आँसू ढुलक गये। उसके विश्वास की जीत हो चुकी थी। 

आंखों का मोतियाबिंद तो ठीक हो सकता है। मन की आँखों को सब स्पष्ट न दिखे वही ठीक है। 


टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 





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