Tuesday 3 November 2020

ओ साथी चल

आज सुबह सुबह सड़क के एक मोड़ पर किसी से मुलाकात हुई। मैं इधर से अपना स्कूटर लिये जा रही थी। उधर से एक खूबसूरत सी कम उम्र महिला साड़ी पहने, हाथ में ढेर सारी चूड़ियां पहने, माँग में सिन्दूर, बड़ी सी लाल बिंदी लगाये स्कूटर चलाना सीख रही थी। उसके पीछे शायद उसका पति बैठा था, जो उसे स्कूटर चलाना सिखा रहा था। 

अब आप पूँछेंगे कि चंद पलों के एनकाउंटर में मैंने ये कैसे जान लिया कि वो पति पत्नी हैं? 

'शायद ' शब्द का प्रयोग मैंने इसीलिए ऊपर कर दिया है कि कुछ प्रतिशत भी संभावना हो कि वो पति पत्नी नहीं थे, तो उस 'शायद' में कवर हो जाये। 

दूसरा एक छटी इंद्री होती है जो बैठने के सहज ढँग से ही जान लेती है कि रिश्ता क्या है। फिर अगर महिला साड़ी और पूरे साज सिंगार के साथ सुबह सुबह स्कूटर चलाना सीख रही है तो अवश्य ही ससुराल से निकल कर चलाना सीख रही है। अन्यथा इतनी कम उम्र की महिला मायके में या अपने भाई के साथ निकल कर स्कूटर चलाना सीखेगी तो चाहे कितना भी रूढ़िवादी परिवार हो, लड़की कुर्ता सलवार में होगी। 

अब आप सोच रहे होंगे ये मैं इतनी बकवास क्यों लिख रही हूँ? 

दरअसल उस जोड़े को देखकर मेरे मन में कई विचार जन्म ले बैठे।  आज की बदलती पीढ़ी के लड़कों में जो ललक है अपनी पत्नी को स्कूटर या कार चलाना सिखाने की, उसे देखकर मुझे बड़ा अच्छा लगता है। मेरी एक कलीग है उसने कार चलाना तभी सीखा जब उसके पतिदेव उसके पीछे पड़ गये कि तुम्हारी सेहत ठीक नहीं रहती, स्कूटर से जाना तुम्हारे लिये ठीक नहीं है। 

एक और बात मुझे इस पीढ़ी के युवाओं की बहुत अच्छी लगती है। वो ये कि इन्हें इस बात से कोई परहेज नही है कि लड़की ड्राइवर सीट पर बैठे और वो स्कूटर पर पीछे बैठें या कार में बगल की सीट पर बैठें।

जब मैं कॉलेज में थी और कभी कभी पिता जी को सड़क तक पहुंचाना होना था, जहाँ से उनकी बस आती थी, तो मेरी हीरो पुक इस काम में आती थी। मगर मेरे पिता जी कभी भी मेरे पीछे वाली सीट पर नहीं बैठे। वो आगे बैठ कर बाइक ड्राइव करते थे, और मैं पीछे बैठती थी। फिर गंतव्य तक पहुँच कर मुझे और मेरी हीरो पुक को छोड़ देते थे। उस समय यही फैशन था। एक इकलौते मेरे पिता जी ही ऐसा नहीं करते थे, अपितु सभी सहेलियों के बड़े भाई भी ऐसा ही करते थे। लड़की स्कूटर चलाये और मुहल्ले वालों के सामने भाई पीछे बैठे रहे तो इसमें उन्हें अपनी बेइज्जती लगती थी। 

मेरे छोटे भाई ने ही मुझे हीरो पुक चलाना सिखाया। पर जब पहली बार अपने पतिदेव को स्कूटर की पीछे वाली सीट पर बिठा कर मैंने लखनऊ दर्शन कराया तो सच में एक अजीब सी हीरोइनपंती सवार हो गयी थी। ऐसे स्कूटर चलाते समय एक अलग ही स्वैग आ जाता है। 

अब भले ही आज की पीढ़ी के नौजवान अपनी संगिनी को गाड़ी चलाना सिखाने को क्यों लालायित रहते हैं। इसके कई अन्य पक्ष भी सामने आते हैं। जैसे कि मेरे पतिदेव कहते हैं अब तुम कार चलाने की अच्छे से प्रैक्टिस कर लो और मेरा पीछा छोड़ो। अपना काम स्वयँ निपटाया करो। तो पहला पक्ष ये है जिन घरों में महिलाओं को कार या स्कूटर चलाना आता है, अवश्य ही कुछ एक्स्ट्रा जिम्मेदारियां उनके हिस्से आ जाती हैं। ये पक्ष है पति - पत्नी वाला। 

और दूसरा पक्ष उधर है, जिधर जोड़ा पति पत्नी नहीं है, कबीर सिंह और प्रीति टाइप। उधर क्यों स्कूटर पर कोई पीछे बैठना चाहता है, ये कोई लिखने वाली बात थोड़ी ही है। 😉

~टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ। 


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