कक्षा कक्ष
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विद्यालय विद्यालय होते हैं। ये और बात है कभी कभी किसी घर को स्कूल बना दिया जाता है। घर वाले स्कूल लचीले से होते हैं। उसमें स्केल से सीधी सीधी लाइन्स खींच दी गयीं हों ऐसी प्रतीति नहीं होती। ऐसे विद्यालओं में एक्स्प्लोर करने की संभावना अधिक होती है। जैसे मेरे विद्यालय में कुछ एक कमरे में कुछ अजीब सी सीमेंट से अलमारी जैसी आकृति बनी होती थी। उस पर हम लोग अपने बस्ते रख दिया करते थे। आज जब उसे अपनी स्मृति में दूर के फोकस से देखती हूँ तो पाती हूँ कि वो एक फायर प्लेस था। फिर मेरे मस्तिष्क ने पूरे स्कूल की संरचना का विश्लेषण कर डाला और पाया उसमें आंगन था, बैठक था, रसोई थी, बाहर पोर्च था (शायद कार खड़ी होती होगी।), पोर्च के सामने छोटी सी गोल आकार की वाटिका। लाल रंग की एक बँगलानुमा इमारत। शायद किसी अंग्रेज ऑफिसर का बंगला रहा होगा या किसी संभ्रांत बंगाली का।
किसी घर को स्कूल न बनाया गया हो तो उनके बड़े नीरस आकार होते हैं। बीएड के दौरान विद्यालय के आकार के बारे में पढ़ाया गया था। एल आकार का, सी आकार का, ई आकार का।
विद्यालय की इमारतों में दरवाजे अंदर की ओर बन्द नहीं होते। कक्षा के दरवाजों में अंदर से नहीं, बाहर की ओर सिटकनी/कुंडी/कड़ी होती है। शायद इसलिए कि कक्षा में अंदर से बंद करके बैठने की क्या आवश्यकता? बच्चों को तो यही लगता होगा कि विद्यालय के कक्ष सदैव खुले रहते हैं। पर खिड़कियों में सिटकिनियाँ होतीं हैं, क्योंकि अक्सर सर्दियों के मौसम में खिड़कियां बन्द करके बैठा जाता है।
संभवतः दरवाजे में कमरे की अंदर की ओर कुंडी या सिटकनी न लगाने के पीछे खर्च कम करना ही उद्देश्य रहता होगा।
इस पर सोचा जाए तो ये दार्शनिक निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कक्षा-कक्ष वह कक्ष नहीं होता जहाँ एक निराश और हताश मन संसार से मुँह मोड़ कर कमरा बन्द करके बैठ जाये। ये मन का विकास करता है।
विद्यालय वो स्थान हैं जहाँ विद्यार्थियों के मस्तिष्क को खुली सोच मिलती है, शिक्षा का प्रकाश मिलता है। यदि बच्चों को लगता है कि विद्यालय के कक्ष कभी बन्द नहीं होते.....
....तो उन्हें सही ही लगता है...!!
~ टि्वंकल तोमर सिंह