Wednesday 13 July 2022

गुरु पूर्णिमा

"तू आ गया,नरेंद्र ! " इन चार साधारण से दिखने वाले शब्दों में कितनी पीड़ा, कितनी प्रतीक्षा, कितनी तड़प छुपी है, ये एक गुरु बनने पर ही अनुभव की जा सकती है अन्यथा नहीं! 

नरेंद्र ने गुरु को देखा। "ये...ये व्यक्ति...इसकी सब इतनी बड़ाई करते हैं..ये साधारण सी धोती पहने बैठा व्यक्ति, अर्धनग्न शरीर से पसीने की बूंद टपकाता हुआ, ओष्ठों के कोनों से शिशु की तरह तरल बहाता हुआ...ये व्यक्ति?...इसकी इतनी प्रशंसा? आख़िर क्या देखा सबने इसमें ? क्यों सब इसके चरणों में शीश नवाते हैं? अरे ...कहीं से कोई चमत्कार सीख लिया होगा बस..लोगों का क्या है आस्था के नाम पर मूर्ख बनने में उन्हें बेहद आनंद आता है...."

सुशिक्षित, सुसंस्कृत, अंग्रेजी पढ़े हुये नरेंद्र के मन में इस गँवार से दिखने वाले व्यक्ति के प्रति विरक्ति के भाव जग रहे थे। कितनी दूर से आया था वह। न जाने कितने गुरुओं के पास गया। सबसे उसने एक ही प्रश्न किया- " क्या आपने ईश्वर को देखा है?" सबने बड़ी बड़ी बातें तो कीं पर इस प्रश्न का सटीक उत्तर किसी के पास न था। फिर किसी ने बताया दक्षिणेश्वर में एक सिद्ध पुरुष हैं, चाहो तो उनसे मिल लो। पर ये क्या...इनसे तो मिलते ही नरेंद्र का मन हुआ वहाँ से भाग जाए। जिसे अपने शरीर तक का बोध नहीं, उसके पास जगत की चेतना का ज्ञान क्या प्राप्त होगा भला ? 

उधर रामकृष्ण जी 'तू आ गया नरेंद्र' कहते कहते भाव विह्वल हुये जा रहे थे। हृदय से भावों का एक ऐसा ज्वार उमड़ा कि थमने का नाम ही न ले रहा था। चक्षुओं में अपने परम प्रिय को देखकर अश्रुओं का धारासार प्रवाह थमने का नाम ही नहीं ले रहा था। गुरु ने शिष्य को पहचान लिया था। शिष्य गुरु को पहचान नहीं सका था। 

माता-पिता, अच्छे संगी-साथी सब पुण्यों से प्राप्त होते हैं। परम पुण्य जब फलित होता होता है तब 'परमहंस' जैसे गुरु प्राप्त होते हैं। ज्योतिष में आस्था रखने वाले अच्छे से जानते होंगे कि कुंडली में 'बृहस्पति ग्रह' की मजबूती बताती है कि जातक को अच्छा गुरु कब और कैसे प्राप्त होगा। 

हमारी समस्या ये है कि कई बार किसी गुरु का प्रेम और स्नेह हमारे ऊपर अप्रत्यक्ष रूप से आस-पास होता है , पर हम उन्हें पहचानने में बहुत देर कर देते हैं। गुरु 'इनसिस्ट' (ज़ोर देना, आग्रह करना) नहीं करते। उन्हें पता होता है, उनके पास तुम्हारा लाभ करने वाला ज्ञान है, पर जब तक हृदय में अहंकार होगा, तुम उसे प्राप्त करने के अधिकारी नहीं रहोगे। 

गुरु के प्रति समर्पण हमें ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग की ओर ले जाता है। अब कुछ तर्कवादी कहेंगे किसने कहा हमें मोक्ष चाहिए? जब संसार ही ईश्वर का रूप है तो इसी में रमे रहो, यही ईश्वर है! 

एक अवस्था होती है अंधकार की। दूसरी अवस्था आती है जब प्रकाश आँखों को चुँधिया देता है। तीसरी अवस्था होती है जब प्रकाश देख लेने के बाद आँखों के चुँधिया जाने से अंधकार आ जाता है। पहली और तीसरी अवस्था के अंधकार में बहुत अंतर है। मूढ़ के अंदर की शांति और विवेकवान के अंदर की शान्ति समान नहीं होती!

जिनके जीवन में गुरु का आगमन हो गया, वे सौभाग्यशाली हैं। जिन्होंने उन्हें पहचान लिया, वे धन्य हैं, वे मुक्त होंगे ! आख़िर तो नरेंद्र को लौट कर आना ही पड़ा था। 

सबको गुरु की प्राप्ति हो! सबका मंगल हो! 


~ टि्वंकल तोमर सिंह

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