Monday 5 August 2019

माँ के हाथ के खाने का रहस्य

"वाह दम आलू बने हैं। वाओ माय फेवरेट।" लार टपकाते हुये पति ने अपनी प्लेट में भर भरकर दम आलू परोस लिये। पर ये क्या एक कौर खाते ही बोले," अच्छे बने है, पर वो क्या है न माँ के हाथ वाला स्वाद नही है।"

"माँ के हाथ का स्वाद माय फुट। कहाँ से लाऊँ?" रोहिणी ने मन में सोचा जो अंदर तक जल कर रह गयी थी। एक घंटे लग कर उसने ये सब्जी बनाई थी। पहले यू ट्यूब पर घंटों रेसिपी सर्च की। कई रेसिपीज़ की तुलना की। फिर बेस्ट रेसिपी के अनुसार सब्जी बनाई। प्याज पिसा,आलू तला, सब्जी घंटों तक भूनी, एक पैर पर खड़े होकर ये सब्जी तैयार की। पर क्या वही ढाक के तीन पात।  "रोहिणी माँ के हाथ के खाने की बात ही अलग है। अब क्या करूँ? बन जाऊं तुम्हारी माँ? या माँ के हाथ कटवा कर लगवा लूँ अपनी कोहनी में?

अंदर से उबल रही थी। और ऊपर से रोहिणी शांत बनी हुई थी। मुस्कुरा कर बोली- "अब कोशिश तो करती हूँ जी उनके जैसा बनाने की। पर कुछ कमी रह जाती है।"

"अरे तुम उन जैसा कभी नही बना पाओगी। जानती हो जब मैं स्कूल में टिफिन ले जाता था तो मेरे दोस्तों में होड़ लग जाती थी मेरा टिफिन लूटने की। पता नही माँ के हाथ में क्या जादू होता है। कुछ तो बात है ही। जरा दम आलू और देना।" उँगलियाँ चाट चाट कर सब्जी खाये जा रहे थे पतिदेव पर तारीफें सिर्फ़ माँ के लिये निकल रहीं थीं। रोहिणी का मन हुआ दम आलू का पूरा कैसरोल उनके सर पर दे मारे।

तभी एक दिन सासू माँ उनके यहाँ कुछ दिन रहने के लिये आ गईं। रोहिणी को थोड़ा चैन मिला कि चलो सब्जी बनाने में थोड़ा आराम मिल जायेगा पर जलन भी हुई कि बस अब तो रोज रोज बस यही सुनना पड़ेगा " वाह मम्मी तुम्हारे हाथों जैसा स्वाद कहीं नहीं।"

सास के आने से रोहिणी को एक आराम और हो गया। रोहिणी ने शाम के समय एक घंटे के लिये योगा क्लासेज जॉइन कर लिये थे। तो अपने बेटे को सास के पास छोड़कर आराम से जा सकती थी। अब उसकी अनुपस्थिति में अक्सर सासू माँ अपने पोते के लिये चाऊमीन या मैगी या मैक्रोनी बना देती थीं। रात की सब्जी भी वो अक्सर छौंक देतीं थीं।

दो चार दिन तो चल गया। पर एक दिन जब रोहिणी घर लौट कर आई तो बेटा दौड़ते हुये उसके पास आया, और मम्मी मम्मी भूख लगी है कहकर चिपक गया। रोहिणी ने किचेन में जाकर देखा तो दादी की बनाई मैक्रोनी जस की तस पड़ी है और बेटे ने अपनी प्लेट में आधी खा कर छोड़ रखी है।

"क्या हुआ मेरा राजा बेटा तबियत खराब है क्या? मैक्रोनी तो तुम्हारी फेवरेट है। फिर क्यों नही खाई?" रोहिणी ने प्यार से सहलाते हुये पूछा।

" नही मुझे नही खानी। दादी तुम्हारी तरह मैक्रोनी नही बनाती। मुझे अच्छी नही लगती। तुम बनाओ मेरे लिये।" बेटे ने मुँह बनाते हुये कहा। रोहिणी को हँसी आ गयी उसकी मासूमियत पर। अन्नप्राशन जब से हुआ है तब से बेटा उसके हाथ का ही बना खाना खा रहा है। जैसा भी नमक तेल  कम ज्यादा रहता हो उसे उसी की आदत है। उसे लगता है यही ओरिजिनल स्वाद है। रोहिणी के दिल को कहीं न कहीं तसल्ली मिली कम से कम बेटे को तो उसकी कद्र है।

रात को जब डिनर के लिये सब इकठ्ठे हुये तो बेटे ने दम आलू की सब्जी खाने से इनकार कर दिया। ये सब्जी रोहिणी की सास ने बनाई थी। पापा ने डाँटते हुये कहा- " क्या नाटक लगा रखा है? इतनी स्वादिष्ट सब्जी तो बनी है? बस तुमको पिज़्ज़ा बर्गर ही चाहिये। चुपचाप यही खाओ और कुछ नही मिलेगा।"

बेटा अपनी माँ की ओर रूआंसा होकर देखने लगा। " नही खानी मुझे ये सब्जी। मुझे मम्मी के हाथ के दम आलू खाने हैं। दादी बनाती है तो मुझे अच्छा नही लगता। कितना ज्यादा मसाला है इसमें। मम्मी तुम बना दो न मेरे लिये।"

रोहिणी मुस्कुरा रही थी। पति जी झेंप रहे थे। माँ के हाथ के खाने के स्वाद का रहस्य खुल चुका था। बच्चों को बचपन से जिस स्वाद की आदत लग जाती है उन्हें वही स्वाद अच्छा लगता है। फिर चाहे कोई कितना भी अच्छा खाना क्यों न बना दे, बड़े होने तक वो वही स्वाद ढूँढते रहते हैं। यही स्वाद माँ के हाथ के खाने का स्वाद कहलाता है।

एक बात बताऊँ आप लोगों को मुझे भी मेरी माँ के हाथ की बनी गोभी आलू की सब्जी बहुत पसंद है। मुझे कहीं भी वैसी गोभी आलू की सब्जी नही मिलती। मैं ख़ुद भी वैसी नही बना पाती।

©® टि्वंकल तोमर सिंह

No comments:

Post a Comment

रेत के घर

दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर  माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...