"शालू इधर आना। जल्दी से।" जिठानी ने अपनी देवरानी को आवाज़ दी और अपने कमरे में चली गयीं। शालू दौड़ते हुये आयी उसे अपनी जिठानी के आवाज़ देने के अंदाज़ से लग गया था जरूर कोई ख़ास और चटपटी बात है। शालू जब जिठानी के कमरे में पहुँची तो देखा वो एक बड़ा सा एल्बम लेकर बैठी थीं। पास जाकर देखा तो वो एक पुराने जमाने का एल्बम था जिसमें सब ब्लैक एंड व्हाइट फोटोज लगीं हुई थीं।
"ये क्या है भाभी? कहाँ से मिला आपको?" शालू ने बेड पर बैठते हुये पूछा।
"श श श श....." जिठानी ने उंगली अपने होंठों पर रखकर उसे चुप रहने का इशारा किया। " मम्मी जी के कमरे से लाई हूँ चुरा कर। मम्मी जी पड़ोस में गयीं है बत्तो बुआ से बतलाने।"
"अरे भाभी इस एल्बम में ऐसा क्या ख़ास है?" शालू ने पूछा।
"ख़ास ये है इसमें की इसमें मम्मी की यंग ऐज की फोटोज़ है। ये देखो मम्मीजी इसमें एकदम पुराने जमाने की हीरोइन लग रही है न?" जिठानी ने आँखे चमकाते हुये कहा।
" अरे लाओ तब तो ज़रा ध्यान से देखूँ मैं। हाय दैय्या... ये तो एकदम पूरब और पश्चिम वाली सायरा बानो लग रहीं हैं। स्लीवलेस स्टाइलिश मैक्सी। कसी हुई ड्रेस। " शालू की तो आँखे ही बाहर आ गईं थीं।
"अरे पेज़ पलट, आगे चल। देख और भी है।"
" उई माँ... इत्ती छोटी स्कर्ट? लगता है किसी स्कूल के टूर पर गयीं थीं।"
" हाँ वही मुझे भी लग रहा है।".
" भाभी...फिर हम दोनों पर इतने बंधन क्यों? साड़ी पहनो साड़ी पहनो। " शालू में मुँह बिचकाते हुये कहा।
" मैंने तो सोच लिया है अब जो मन में आएगा वो पहनूँगी। अपने जमाने में तो पटाखा बन कर रहती थीं और हमे सीली हुई फुलझड़ी बना कर रखना चाहती हैं। आज से साड़ी वाड़ी बन्द।" जेठानी ने तमतमाते हुये कहा।
"ठीक है दीदी। मैं भी यही करूँगी।"
दूसरे दिन सुबह से दोनों देवरानी जेठानी तैयार होकर अपने कमरे से बाहर निकलीं। जेठानी ने एक कसा कसा सा गाउन पहन रखा था। और देवरानी ने बहुत टाइट पैंट और छोटा सा स्लीवलेस टॉप पहन रखा था। सास ने देखा तो त्योरियां चढ़ा ली। " क्यों रे बहूओं ये क्या अधर्म मचा रखा है। लाज मर गयी है क्या तुम दोनों की आंखों में? ससुर है घर में ,जेठ हैं और तुम लोग ये क्या छम्मकछल्लो बन कर निकली हो?"
" मम्मी जी अब हम लोग यही पहनेगीं। साड़ी वाड़ी ओल्ड फैशन हो गया है।" दोनों इतराते हुये बोली।
"अरे कंजड़ियों ...जाओ फौरन कपड़े बदल कर आओ। वरना अभी यहीं इन कपड़ों में आग लगा दूँगी।"
"मम्मी जी रहने दीजिये। हमको आपकी सारी पोल पट्टी पता चल गई है। आपने जमाने में तो आप सायरा बानू बन कर रहती थी। और हमारे जमाने में भी आप हमको नूतन बना कर रखना चाहती हैं? हमने आपका एल्बम देख लिया है। इसलिए अब आपको अपनी इज्जत प्यारी है तो आगे कुछ मत कहिएगा।" शालू थोड़ा तेज थी सो उसने कहा।
" अरी...करमजलियों.मर जाओ तुम दोनों..मेरे पीछे मेरी चीज़ें खंगालती हो....। और जो फ़ोटो तुम लोगों ने देखी, वो मेरी नहीं है मेरी जुड़वाँ बहन की थी। उसे एक मिशनरी की नन ने गोद ले लिया था। पिता जी की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। तो उन्होंने सोचा अच्छा रहेगा ऐसे उसकी पढ़ाई लिखाई हो जाएगी। एक दिन वो स्कूल टूर पर किसी नदी की सैर को गयी थी। छोटी सी स्कर्ट और ऊँची हील पहन कर। वहीं पैर फिसला और बह गई। उसकी लाश तक न मिली किसी को। "
जुड़वाँ बहन वाली कहानी सुनकर दोनों बहुओं का मुँह उतर गया। दोनों हारे हुये से कदम रखते अपने कमरे में वापस कपड़े बदलने चली गईं।
इधर सास भी अपने कमरे में पहुँची। ससुर ने पूछा ," क्या हुया भागवान सुबह सुबह इतनी तेज आवाज कौन सी सत्यनारायण की कथा बाँच रही थी?"
" अरे कुछ नहीं...ये दोनों बहुऐं न...हाथ से निकली जा रहीं थीं। मेरी शादी से पहले की कुछ फ़ोटो इनके हाथ लग गयी थी। अब कहाँ मेरा मायका बड़ा शहर में था तो सब चल जाता था। कहाँ ये छोटा सा पहाड़ का कस्बा। चली थीं मेरी बराबरी करने। नाक कटा कर रख देतीं रिश्तेदारी में दोनों। बस कुछ नहीं इनके पर कतर के आ रहीं हूँ।" सास ने मुँह दबा कर हँसते हुये कहा।
( सिर्फ़ हास्य के लिये लिखी गयी एक कहानी। )
©® टि्वंकल तोमर सिंह,लखनऊ।