Tuesday, 30 October 2018

दुआ

दुआ भाप जैसी होती है
एक तपते हुए दिल से उठती है
दूसरे तपते हुए दिल पर बरसने के लिये !

#दर्द_का_रिश्ता
Twinkle Tomar

Friday, 26 October 2018

नाना जी का करवा चौथ

नानी बहुत सुंदर थी । कोई भी देख के कह सकता था कि खंडहर बताते हैं इमारत बहुत बुलंद थी। सूती कलफ लगी महीन बेल बूटों वाली थीसाड़ी पहनती थी। मैं उनकी साड़ी को अपनी उंगलियों से छूती और पूछती थी- " नानी आप पेपर की साड़ी क्यों पहनती हो? "
"इसलिए कि जब भी तुझे कागज की नाव बनानी हो, तो मैं पेपर दे सकूं।" नानी मेरे गाल थपथपाते हुए कहतीं । अपने पेटीकोट में लेस लगाने का उन्हें बहुत शौक था। कभी क्रोशिया से बुनकर, कभी बाज़ार से मोल लेकर।

नाना उन्हें बुढ्ढी , बुढ़िया कह कर चिढ़ाते थे। नानी बहुत चिढ़ जाती थी। कहती थी - "मैं बुड्ढी हूँ तो क्या तुम हमेशा जवान रहोगे ?"

नाना नहले पर दहला मारते और कहते - "पुरुष और घोड़ा हमेशा जवान रहते हैं, समझी बुढ़िया।"

नानी और चिढ़ जाती और कहती- "इतना ही जवानी के शौक बाकी है तो दूसरी शादी क्यों नही कर लेते हो ?"

नाना और चिढ़ाते हुये कहते - "कर लूंगा बुढ़िया, बस इधर तू मरी और उधर मैं घोड़ी चढ़ा। "

नानी मुंह फुला कर बैठ जातीं और पूरे दिन नाना से बात न करतीं। दोपहर ढले जब शन्नो की अम्मा बर्तन मांजने आती तो उससे अपना दुखड़ा रोती थी।

" देख ले शन्नो की अम्मा, बुड्ढ़ा कितना दुख देता है मुझे। सत्तर साल की उम्र में भी इसके लिए निर्जल करवा चौथ का व्रत रखती हूं। और ये रोज़ रोज़ मेरे मरने का रास्ता देखता है। "

शन्नो की अम्मा पल्लू से मुंह छुपा के हंसती और कहती - अरे नही आंटी, तुमको बहुत ही पियार करते है। तुम जिस दिन निर्जल व्रत रखती जो, पूरे दिन पगलाये घूमते हैं। मटरू की पान की दुकान पर कहते हैं। आज फिर बुढ़िया निर्जला ब्रत है। आज तो ऊपर खिसक ही जाएगी। ज़रा भी परवाह नही है इसको कौन मुझे दो रोटी खिलायेगा फ़िर। "

नानी आंख में आंसू भरते हुये कहती- "रहने दे शन्नो की अम्मा। उनकी ज्यादा तरफ़दारी न कर। अपने बुड्ढे को अच्छे से जानती हूँ मैं। बीड़ी नही पीने न देती मैं इसलिये मनाता है कि मैं मर जाऊं। और ये चैन से अपने बचे हुये सालों में बीड़ी, सिगरेट, चुरट पी सके। "

शन्नो हंसती जाती, बर्तन घिसती जाती और नानी की दुख भरी कहानी सुनती रहती।

उस साल फिर करवा चौथ था। नानी ने शन्नो की अम्मा से करवा चौथ व्रत का सारा सामान एक दिन पहले ही मंगा रखा था। बक्से से अपना लाल रंग का लहंगा चुन्नी सब निकाल के रख लिया था। अपनी बड़ी सी नथुनी और मांग टीका अपनी अलमारी से निकाल कर सहेज कर रख लिया था। अपनी नानी को एक ही बार मैंने इस अवतार में देखा था। एकदम लाल परी लगती थी। गोरी इतनी थी कि लाल रंग का जोड़ा भी खुश हो जाता था वो इतना फब रहा है।

आने वाले पल की हम तैयारी कर सकते है, पर आने वाला पल क्या लेकर आयेगा कोई नही जानता।

नानी की रात से ही तबियत बहुत ख़राब हो गयी। उल्टी दस्त शुरू हो गये। बुख़ार हो गया। दूसरे दिन हालत इतनी ख़राब हो गयी कि नानी बिस्तर से उठ नही पा रही थी। नाना आवाज़ देते रहे - "बुढ़िया उठ जा सूरज निकल आया है। मरना हो तो रात में मरना , चांद देखकर पूजा करने के बाद। और मेरी लंबी जिंदगी की दुआ मांग लेना। "

नानी हल्का सा कांखी पर उन्होंने कोई चिलचिलाता हुआ उत्तर नही दिया। तब नाना छड़ी टेकते हुए लंबे लंबे डग भरते हुये नानी के बिस्तर तक पहुंचे। रात से अंदाजा तो उन्हें हो गया था कि नानी की तबियत कुछ नासाज़ है। पर इतनी बिगड़ चुकी है उन्हें अंदाजा नही था। नानी के सर पर नाना ने हाथ फेरा , उनकी हथेलियों को सहलाया। फिर अपने नौकर शंभु से चाय और बिस्कुट मंगवाई। पर जब नानी को खिलाने की कोशिश की तो नानी ने कस के दांत भींच लिये , बोली- "सोचना भी मत, अन्न मेरे मुंह में डालने को, मेरा व्रत है।"

नाना भिनभिनाये- "काहे का व्रत? सबसे पहले अपना शरीर देखो। "

नानी रुंधे हुए स्वर में बोली- "अब इतने साल से व्रत रखती आयी हूँ मना न करो। सास ने कहा था बहु ये व्रत ही पति को जिलाये रखता है। कुछ भी हो इसका नियम न तोड़ना। "

नाना चिढ़ते हुये बोले- "अरे मर खप गयी तेरी सास। तूने कुछ न खाया तो तू भी आज ही
उनके पास चली जायेगी। सोच ले फिर कल मैं बल्लू की अम्मा से ब्याह कर लूंगा।"

नानी आह भरते हुये बोली- "कल क्यों आज ही कर लो। ले आओ मेरी सौतन। "

खैर नानी की तबियत बिगड़ती चली गयी। और उनसे व्रत निभाना मुश्किल हो गया। और उन्होंने नाना की जिद के आगे घुटने टेक दिये और चाय पी ली, बिस्किट खा लिया। दोपहर बाद उन्हें  मूंग की पतली खिचड़ी खिलाई गयी। डॉक्टर को घर बुला के दिखाया गया। डॉक्टर ने दवा लिख दी। ग्लूकोज़ जूस वगैरह देते रहने को कहा। कुछ दिन बाद नानी स्वस्थ हो गयी। पर उन्हें ये बात कचोटने लगी कि उनका करवा चौथ के व्रत का नियम टूट गया।

जोड़े में आये जरूर है, सात जन्मों का साथ भी तय कर लिया, पर इस जन्म में कितने साल साथ रहेंगे कोई नही जानता।

उसी साल दिसंबर में नाना जी की मृत्यु हो गयी। अपनी स्वाभविक मौत ही मरे थे वो। कोई कष्ट नही , किसी से सेवा नही ली। एक रात सोने के लिये गए फिर सुबह सो कर ही नही उठे।

नानी पर तो वज्रपात हो गया। शन्नो की अम्मा की छाती में सिर घुसा कर घंटों रोती रहती। कहती - "हाय रे मेरे फूटे करम ! सास ने कहा था व्रत न छोड़ना। व्रत वाले दिन ही मुझे भगवान उठा लेते। विधवा तो न होना पड़ता।"

नानी को गहरा सदमा पहुंचा था। हर वक़्त नानी चुप रहती। घड़ी घड़ी रो देती थी। सब बच्चों ने अपने घर ले जाना चाहा पर उन्होंने अपने घर की दहलीज न छोड़ी। कहती थी- "इस घर में पालकी में बैठ दुल्हन बन कर आई थी और अब अर्थी में ही यहां से जाऊंगी। "

एक दिन शंभु का फोन आया कि नानी नही रही। हम सब जितनी जल्दी हो सकता था कार से नानी के घर पहुंचे। बिस्तर पर नानी लेटी हुई थी, झक सफेद रंग की सादी सूती कलफ लगी साड़ी पहने। पास में मेज पर उनका वही लाल रंग का लंहगा रखा था।

शम्भू और शन्नो की अम्मा से बात हुयी। पूछा गया नानी ने कल क्या क्या किया ? उन्होंने बताया कि कुछ नही दिन भर ठीक ठाक थी। समय से उठी पूजा पाठ किया। खाना खाया दोपहर में कन्हैया के भजन सुने। हाँ शाम को मटरू की पान की दुकान पर गयीं थी।

मटरू भी घर पर आया हुआ था। हमने उससे पूछा कि कल क्या बात हुयी थी?? मटरू ने बताया - "कुछ खास नही बस यूँ ही इधर उधर की और नाना जी बारे में बात होती रही। फिर जब मैंने उन्हें बताया कि वो कितनी भाग्यों वाली है। पचहत्तर साल की उम्र में नाना जी ने उनकी सलामती के लिये करवा चौथ वाले दिन निर्जला व्रत रखा था, तो वो बहुत उदास हो गयी थी। फिर जल भरी आंखें लिये वहां से चली गयीं।"

अब मुझे समझ आया नानी की पास वाली मेज पर लाल रंग वाला लहंगा क्यों रखा था। शायद वो रात भर उसी से चिपट कर रोती रहीं थीं।

Twinkle Tomar

Wednesday, 24 October 2018

ये चांद बीते ज़मानों का आईना होगा

वो आसमान में जड़ा रहता था
जब मैं रेल की खिड़की से झांकती थी
मेरे संग संग दौड़ लगाने लगता था

शायद प्यासा था कई जन्मों से
एक परात भर पानी के लालच में
वो जल- जाल में उतर आया करता था

कभी सांय सांय करते कैथे के पेड़ पर
कभी दूर मस्जिद में बने मेहताब के ऊपर
यहाँ वहाँ कहाँ कहाँ नही टंगा रहता था

दूर शहर से प्रिय तम में उस पर
इबारतें लिख दिया करते थे आंखों से
वो डाकिया इन आँखों को चिट्ठियां भेजता था

#ये_चाँद_बीते_ज़मानों_का_आईना_होगा

Tuesday, 16 October 2018

सिगरेट

वो सिगरेट का कश खींचता और धुएं का गुबार छोड़ता। वो दोनों हाथों से इस धुएं को बेकार ही दूर हटाने की कोशिश करती।

ये सिलसिला जारी रहा बल्कि बढ़ता चला गया। हारकर एक दिन उसने इस धुएं को अपनी सांसों में भरना शुरू कर दिया।

उसने हाथ पकड़ के उसे खींचा और कहा , " पागल हो गयी हो क्या ?"

आधी मुंदी हुई नशीली सी आंखे बनाकर उसने कहा , "तुम्हारी तरह सिगरेट होंठो से लगा कर इस धुएं का स्वाद नही ले सकती न ! इसलिये सांसों से फेफड़ों में भर रही हूँ इसका जायका।"

"ड्रामा बंद करो। छोड़ो ये सब ।"

"कैसे छोड़ दूं ? साथ साथ जीने मरने की क़सम खायी है न ! अब आपको अकेले कैसे मरने दूं ?"
उन्हीं नशीली ड्रामेबाज़ आंखों में दो सच्चे अश्रु मोती झिलमिला उठे।

उंगलियों में फंसी मंहगी सिगरेट उसे आख़िरी कश के मोह में भी बांध न सकी। कब सिगरेट बुझायी, कब दूर फेंकी और कब उसने उसे कभी दूर न जाने देने के लिये करीब खींच लिया , उसे कुछ याद नही।

Twinkle Tomar

Monday, 15 October 2018

पेड़ के पाप और पुण्य


वो कटा, किताबें बनी,पुस्तकालयों में सजीं
उस पेड़ ने पूर्व जन्म में बहुत पुण्य किये थे

वो कटा, किताबें बनी,कबाड़ी के तराजू में तुलीं
उस पेड़ ने अवश्य ही पूर्व जन्म में पाप किये होगें

Twinkle Tomar Singh

Thursday, 11 October 2018

स्मृति भर शेष नही हो तुम


तुम्हारे आने की
कितनी प्रतीक्षा थी

तुम्हारा जाना
इतनी जल्दी होगा
ये भी नही पता था

अच्छा है
जाने का अर्थ
मात्र जाना होता है

दूर जाना नही
और हृदय से दूर जाना
तो बिल्कुल भी नही

फिर भी
इस औपचारिक
विदा की घड़ी में
सीली हैं आंखें
जैसे कि विदा हो
एक वधु की
हर्ष भी है,विषाद भी

हमने पढ़ा है न
अच्छे लोगों की
दुनिया को बहुत जरूरत है
इसीलिये ईश्वर उन्हें
एक जगह टिकने नही देता

भले ही
दूसरों के लिये ये
पुरुस्कार सरीखा हो
और स्वयं उस
अच्छे इंसान के लिये
दण्ड सरीखा।

मेरे भी जीवन में
कुछ अच्छे कर्मों का
पुरुस्कार हो तुम
जो सदा साथ चलते है
उपलब्धि बनकर !

स्मृति भर शेष नही हो तुम !

Twinkle Tomar

Tuesday, 2 October 2018

जिम्मेदारियां


जिम्मेदारियां

गीता के श्लोक पूरे घर में गूंज रहे थे। पंडित जी व्याख्या करके बता रहे थे - जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों का त्याग करके नये वस्त्रों को अपनाता है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर का त्याग करकेे नवीन शरीर धारण करती है।

अश्रुपूर्ण आंखों से सौम्या पंडित जी के निर्देशानुसार सारी रीतियां निभाती जा रही थी। उसकी सास जब तक जीवित थीं, उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करती थीं। उनके रहने से उसे गृहस्थी के अधिकतर कामकाजों के बारे में कोई जानकारी ही नही रहती थी। लेकिन आज पूरे घर में हर काम के लिये बस उसे ही पुकारा जा रहा था।

उसे अनुभव हुआ केवल आत्मा ही नही जिम्मेदारियां भी शरीर बदल लेती हैं। ये पुराने व्यक्ति को त्याग कर नये उत्तराधिकारी को राजमुकुट पहना देती हैं।

Twinkle Tomar Singh

Monday, 1 October 2018

मातृ ऋण

"तेरा कंठ बहुत मीठा है,पर बेटी एक तो तू अंधी और ऊपर से गरीब। तेरी शादी तो गूलर का फूल समझ। " , माँ कहती थी।

जिसकी शादी ही गूलर का फूल हो वो पूर्ण मां बनेगी, कौन सोच सकता था ?

सबने कहा- क्यों एक अनाथ और मंद बुद्धि बालक  को अपना रही हो?..

गुस्सैल और विध्वंसक,दानव सरीखा बालक संगीत के प्रशिक्षण से ऐसे सरल हो जायेगा, कौन जानता था।

उसके मुंह से निकला 'माँ' शब्द ही मेरी सरगम थी।

शायद तू मातृ ऋण चुकाना चाहता था, इसलिये अपनी आंखें दान दे गया...बेटा...जुदा होके भी तू मुझमें कहीं बाकी है।

Twinkle Tomar

रेत के घर

दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर  माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...