नृत्य करती है
सृजन में डूबी हुई
एक पृथ्वी
तो बदलते है दिन
बीतता है समय !
नृत्य करती है
अवसाद में डूबी हुई
एक नर्तकी
तो भूल जाती है
दिन,समय और काल !
Twinkle Tomar Singh
नृत्य करती है
सृजन में डूबी हुई
एक पृथ्वी
तो बदलते है दिन
बीतता है समय !
नृत्य करती है
अवसाद में डूबी हुई
एक नर्तकी
तो भूल जाती है
दिन,समय और काल !
Twinkle Tomar Singh
"तुम पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है....प्लीज़ मुझे छोड़ कर मत जाओ...".सुबह हुई ही थी। मैं बिस्तर छोड़ कर अपनी चप्पल ढूंढ रही थी कि इनकी हल्की हल्की आवाज़ मुझे सुनाई दी। गौर से सुना तो मालूम पड़ा वो नींद में फुसफुसा रहे थे। मैं बड़ी खुश वाह मुझे कितना प्यार करते है ये। इनको सोते सोते भी ये एहसास है कि मैं उठ गई हूं और इनको छोड़ कर जा रही हूँ। सच कहूँ तो कसम से अपनी क़िस्मत पर इतना नाज़ कभी नही हुआ था। अचानक मुझे लगने लगा मेरी बहनें, मेरी सखियाँ सब प्रेम के मामले में मुझसे कितना ज्यादा ग़रीब है। गुरुर में आगे निकल आयी एक लट को कान के पीछे ले जाकर ठिकाने लगाया और अपने आपको शाहजहाँ की मुमताज़ समझने लगी।
इसके पहले कि इनका उन्मादी होकर इस तरह बड़बड़ाना पूरा घर सुन ले मैंने इन्हें जगाना उचित समझा। जैसे प्रेम में पड़े किशोर अपना प्रेम दुनिया की नज़रों से छुपा के रखते है वैसे ही कुछ मेरा हाल था। मैंने इन्हें जोर से हिलाते हुये जगाया-"क्या हो गया...क्या बड़बड़ाये जा रहे हो सपने में...मैं यहीं हूँ तुम्हारे पास...उठो देखो..." और मैंने अपना लावण्यमय लजाता हुआ चेहरा इनके चेहरे के आगे ले जा कर स्थापित कर दिया।
इनकी आँखे खुली सामने मेरा चेहरा फुल फ़ोकस में देखकर ये घबड़ा गये। अचानक अचकचा कर ये उठ बैठे। आंखें मलने लगे। मुझे पहचानकर तो इनका मुंह बन गया। आँखे लाल लाल हो गयीं। जैसे इनके सामने मुमताज़ नही सूर्पणखा आ गयी हो। उठे और बड़बड़ाना चालू ...मुझे कोसने लगे- "तुम..तुम कहाँ से आ गयीं?....सत्यानाश हो तुम्हारा...कहीं तो मेरा पीछा छोड़ दिया करो...पता है सपने में दीपिका पादुकोण की रणवीर सिंह से शादी के छह फेरे हो गये थे..मैं उसे अपनी हीरो वाली फ़िल्मी इमोशनल स्पीच सुना रहा था। और उससे मिन्नतें कर रहा था कि वो मेरा प्यार ठुकरा कर किसी और की न हो जाये। सपने में मैं उसका हीरो था वो मेरी हीरोइन। और रणवीर विलेन जो उसे डरा धमका के शादी कर रहा था। मेरी इमोशनल पुकार सुनकर बस वो मेरी बाहों में आने ही वाली थी कि बस......तुम थोड़ी देर बाद नही जगा सकती थी ? " मुँह बिचकाते हुये उन्होंने बोला। वैसे ही कौन सा सुंदर मुँह बनाया है भगवान जो बिचका हुआ अच्छा लगता। ये बात सुनकर तो मन हुआ कि मुँह नोच लूँ।
बुरा तो बहुत लगा मुझे कहाँ मैं सोच रही थी मुझे सपनों की रानी बना कर रखा गया है कहाँ मुझे देख कर सड़े करेले के आचार सा मुंह बनाया जा रहा है। पर मैंने भी सोचा कि जहाज के पंछी को उसकी औकात बता दी जाये कि चाहे वो जितना भी उड़ान भर ले पर समुंदर में पड़े जहाज पर ही उसे वापस आना है। शोरूम में रखी महँगी चीज़ देखकर जी चाहे जितना ललचाये, काम उसी से चलाना पड़ता है जो हमारे पास है।
मैंने अपने को कूल किया। अरे बावरी पति है तेरा फिसल गया तो क्या हुआ। शरारत से मैंने आंख मारते हुये कहा- " सपने में जिसके साथ चाहो मस्ती कर लो....मियां...जाओ बक्श दिया... पूरी छूट है तुम्हें..पर याद रखना वास्तविकता में तुम पर सिर्फ़ मेरा अधिकार है। समझे डिअर हबी ! "
Twinkle Tomar Singh
मेरे आंगन के हिस्से की धूप
पड़ोस वाली इमारत खा गयी।
सुना है ऊंचे मालों में रहने वाले
किसी अनजान साये से डरते हैं !
Twinkle Tomar Singh
परमपिता जब
बाँट रहे थे बीज
मुझे मिले थे
देर से उगने वाले
पौधों के बीज
खाद पानी धूप
इनकी परवरिश को
काफी नही
धैर्य का मंत्र भी
फूंकना होता है
जड़ों में !
चलो ठीक है
कौन सा एक ही जन्म
बिताना है यहाँ
मैं प्रतीक्षा करूँगी !
Twinkle Tomar Singh
कवितायें
जन्म लेती हैं
क्षोभ से !
नींव के लिये
चीरा लगे बिना
भूमि पर
इमारत भी तो
नही बनती!
Twinkle Tomar Singh
"मौसी, पौधा बेकार में लगा रही हो। जब तक इसमें फूल आयेंगे तुम अपने बेटे के पास अमेरिका में होगी।"
"बिटिया कभी कभी होंठ पराये होते हैं, पर मुस्कान अपनी होती है।"
मैं पराई ही तो थी उनके लिये...नौकरानी की बेटी। मौसी को भगवान के पास पहुँचे दो वर्ष हो चुके। आज मेरे इक्कीसवें जन्मदिन पर बैंक से मैसेज आया है- मिसेज़ राठौर के द्वारा शुरू की गई सुकन्या योजना में निवेश मैच्योर हो गया है। आप धन निकाल सकती हैं।
मौसी के पौधे में ढेर सारे फूल खिले थे। उनमें मौसी मुस्कुरा रहीं थीं...मेरी खुशियों की शुरुआत देखकर।
Twinkle Tomar Singh
"मॉम, क्या पुराने जमाने में कलर्स नही होते थे ?" मेरी सात वर्षीय बेटी मेरी सास का पुराना एल्बम देख रही थी जिसमें सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट फ़ोटोज़ थीं।
"नही बेटा। कलर्स होते थे। पर उस समय कैमरा आजकल की तरह उतने अच्छे नही होते थे कि कलर्स की भी फ़ोटो ले सकें।" मैंने उसे समझाने की कोशिश की। हालांकि मैं जानती थी कि वो अभी बहुत छोटी है शायद ही ये बात उसे समझ में आये।
"उम्म... मॉम पर देखो न पता ही नही चल रहा कि दादी माँ ने अपनी शादी में किस कलर का लहंगा पहन रखा था।" दादी की दुल्हन वाली फ़ोटो उसे विशेष प्रिय थी। बेचारी बहुत कम समय ही अपनी दादी के साथ रह पायी थी। पिछले साल ही उसकी दादी की मृत्यु हो गयी थी। अपनी दादी से वो बहुत लगाव रखती थी। इसलिये अक्सर उनका एल्बम लेकर देखती रहती थी।
"बेबो...उस समय भी सब बहुत रंग बिरंगे कपड़े पहनते थे। पर कैमरा उन रंगों को कैद ही नही कर पाता था।" मैंने फिर उसके छोटे से दिमाग में ये घुसाना चाहा कि दुनिया बेरंगी नही थी। बस रंग फ़ोटो में नही उतर पाते थे।
"मॉम..आप तो रोज हर रंग की ड्रेस के साथ मैचिंग की बिंदी लगाते हो पर लगता है दादी सिर्फ़ एक ही रंग की बिंदी लगाती थीं...काली।" दादी की बिंदी पर उंगली रखते हुये वो बोली। दादी को बिंदी में देखना भी उसके लिये नई बात थी। क्योंकि जब वो दो साल की थी तभी उसके दादा जी मृत्यु हो चुकी थी। जब से वो बड़ी हुई उसने अपनी दादी को कभी बिंदी लगाते हुये नही देखा था। ये भी उसकी उत्सुकता का विषय था कि दादी ने आखिर किस रंग की बिंदी लगाई होगी।
"नही स्वीटहार्ट.......दादी काली रंग की बिंदी नही लगाती थीं। लाल रंग की बिंदी लगाती थीं। पर फ़ोटो में तुम्हें काली लग रही है।"
"मतलब दादी के पास अलग अलग रंग की बिंदियां नही थी क्या ? " उसने फिर एक मासूम सा सवाल किया। थोड़ी देर मैं भी सोच में पड़ गयी।
अचानक मुझे लगने लगा कुछ हद तक बेबो सही ही तो कह रही है। उन दिनों जीवन के सारे रंग पुरुषों के लिये ही तो थे। स्त्रियों के जीवन में रंग कितने कम थे या थे ही नही। सधवा है तो लाल....विधवा है तो सफ़ेद! छोटी सी बच्ची बात बात में कितनी बड़ी बात की ओर ध्यान दिला गयी।
हमेशा देखा माँजी ससुर जी के सामने कभी ऊंची आवाज़ में बोल तक नही पाती थीं। माँजी कभी कभी भावुक होकर एक किस्सा सुनाती थी कि एक बार उन्होंने ख़ूब चटक रंग की साड़ी पहन ली थी। ससुर जी ने ख़ूब डांटा। क्या देहातियों की तरह रंग बिरंगी बनी हुई हो , ढंग से सोबर रंग के कपड़े नही पहन सकतीं? दूर से आ रही हो तो सब तुम्हें ही देखने लगें यही चाहती हो न। अतीत से वापस आते हुई भर आयी आंखों में आंसूओं को रोकते हुये वो बताती थीं वो दिन और आज का दिन अपनी पसंद के रंग का कपड़ा तक कभी नही पहना उन्होंने।
अनजाने ही मैं उनकी और अपनी स्थिति की तुलना करने लगी। आज जब शीशे के सामने खड़े होकर लाल, नीली, पीली, हरी कौन सी बिंदी लगाऊँ ये चुनती हूँ...तो ये अहसास भी नही होता मुझे तो अपना रंग चुनने की आज़ादी मिली हुई है, अपने जीवन को दिशा देने की आज़ादी मिली हुई है। ख़ुद कमाती हूँ, सारे निर्णय ख़ुद लेतीं हूँ, घर के काम के लिये नौकर रख सकती हूँ। ये कितनी अमूल्य चीजें है।
मॉम.. पर हम तो मोबाइल से जो भी फ़ोटो खींचते है उसमें कलर होते है न!" बेबो अभी भी वहीं अटकी हुई थी। उसकी आवाज़ सुनकर मैं चौंककर अपनी तंद्रा से बाहर आई। बाल सुलभ उत्सुकता अपने प्रश्न का संतोषजनक उत्तर चाहती थी। उसे अब भी यही लग रहा था पहले की दुनिया में रंग नही होते थे। और आज की दुनिया में रंग होते हैं।
मैंने मोबाइल निकाला कैमरे की सेटिंग ब्लैक एंड व्हाइट पर की फिर एक फ़ोटो उसे खींचकर दिखाई। तब जाकर उसकी उत्सुकता कुछ शांत हुई। एल्बम के पन्ने पलटने लगी सारी फ़ोटो एक बार फिर से देखने के बाद टीवी देखने में बिजी हो गयी।
मगर मैं सोच में पड़ गयी कि आज भी कुछ ही भाग्यशाली औरतें है जिन्हें अपना रंग चुनने की आज़ादी है। न मालूम कितनी औरतें बेरंग या सीमित रंगों से सजा जीवन जीने के लिये मजबूर हैं। कोई मेरी माँ है तो कोई मेरी भाभी, कोई मेरी कलीग है तो कोई मेरी पड़ोसन। उनके लिये जीवन का कैमरा वहीं पुरानी तकनीक पर ठहरा हुआ है.....ब्लैक एंड व्हाइट।
Twinkle Tomar Singh
एक ऐसी
जादुई जगह है
जहां मेरे भय
और मेरे पछतावे
मुझे निराशा भरी
अंधेरे की कोठरी में
नही ढकेल पाते
तुम्हारे प्रेम का तिलिस्म !
Twinkle Tomar Singh
देर कर दी मेहरबाँ तुमने इश्क़ के इज़हार में
तेरी सीप के हिस्से की बूंद खो गयी सागर में
©® Twinkle Tomar Singh
हिमानी अपने स्टॉफ रूम में बैठी रजिस्टर का कोई वर्क कर रही थी। तभी कक्षा नौ से कक्षा दस में आयी एक लड़की उसके पास आती है। "मैम आपसे एक काम था।"
हिमानी ने रजिस्टर से मुंह उठा कर उसे देखा और पूछा बोलो क्या बात है?
"मैम जी , मुझे अपनी मम्मी का नाम चेंज कराना है।"
"मम्मी का नाम चेंज कराना है? क्या मतलब ? रिजल्ट में कुछ गलत चढ़ गया है ?"
"नही मैम जी..... "हिचकते हुये उदास स्वर में वो बोली।
"फिर क्या? सरनेम में कोई दिक्कत है?"
"नही मैम जी वो बात नही है।"
"फिर क्या बात है?"
"मम्मी का नाम कमला था। अब सुधा कराना है।"
"हैं ??? मम्मी ने नाम बदल लिया है?"
बच्ची चुप रही। कुछ बोली नही ।
"क्या बात है साफ़ साफ़ बोलो। तुम्हारी मम्मी ने हाई स्कूल इंटर कुछ पास किया है? जो उनके सर्टिफ़िकेट पर नाम होगा वही नाम रहेगा।" हिमानी ने सोचा कुछ पुकारने वाला नाम और स्कूल वाले नाम का लोचा होगा।
"नही मैम जी वो पढ़ी लिखी नही हैं। "
(ये कहानी एक ग्रामीण परिवेश के सरकारी विद्यालय से ली गयी है। वहां ज्यादातर बच्चों के माता पिता आज भी अनपढ़ हैं।)
"अरे तो जो तुमने टीसी दी होगी उस पर जो नाम माँ का लिखा होगा वही रहेगा।"
"नही मैम जी, मुझे अपनी मम्मी का नाम चेंज कराना ही कराना है। टीसी में कमला है मुझे सुधा कराना है।"
"क्या तुम्हारी मम्मी बदल गयीं है?"
लड़की चुप। सिर नीचे झुका कर पैर के अंगूठे से जमीन खोद रही है।
"क्या बात है। खुल के बोलो।"
"जी मैम जी वो...वो....मेरे पापा ने दूसरी शादी कर ली है।"
"तो ? मम्मी तो तुम्हारी वही रहेंगी। तुम क्या मम्मी के साथ नही रहती ?"
"नही मैम जी मैं पापा के साथ रहती हूँ। पापा ने मम्मी को छोड़ दिया है।"
"अजीब लड़की हो। तब तो तुम्हें और अपनी मम्मी के साथ रहना चाहिये।"
"नही मैम जी.. मैं अपनी सौतेली मम्मी के साथ ही रहना चाहती हूँ।"
"पहली बार ये किसी बच्चे के मुंह से सुन रहीं हूँ कि वो अपनी सगी माँ को छोड़कर सौतेली माँ के साथ रहना चाहती है। कारण क्या है आख़िर।"
"मैम जी , मेरे दो छोटे भाई बहन और हैं। वो माँ के साथ ही रहेंगें। माँ इतनी गरीब हैं कि हम तीनों का खर्चा नही उठा पायेगी। और मैम जी...(सकुचाते हुये)..…मैं अपनी पढ़ाई छोड़ना नही चाहती।"
"ओह तो ये बात है। अगर तुम्हारी सौतेली मां ने तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार नही किया तो। "
"न करे। थोड़ा बहुत घर का काम ही तो करना होगा। खरी खोटी सुननी पड़ेगी। पर पापा पढ़ाई का खर्चा तो दे देंगे।"
"फिर भी इसमें माँ का नाम बदलवाने की क्या जरूरत है?"
"जरूरत है मैम जी। मैं अपनी सौतेली माँ को खुश रखना चाहती हूँ। उन्हें ये विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि मैं अपनी सगी माँ से कोई वास्ता नही रखना चाहती। फिर वो मेरी पढ़ाई में ज़्यादा बाधा नही डालेगी।"
"तुम तो बड़ी स्मार्ट हो। इतनी छोटी उम्र में इतनी बुद्धि। और तुम्हें नही लगता कि तुम स्वार्थी हो रही है। बुरे वक़्त में अपनी माँ का साथ छोड़ रही हो। इतना काम माँ के लिये करोगी तो उनकी मदद हो जाएगी।"
"मैम कभी कभी जो दिखता है। होता उसका उल्टा है। माँ के साथ रही तो पढ़ाई ख़त्म। बस घर के काम में ही बंध कर रह जाऊंगी। मैं माँ से दूर रहकर माँ की मदद करना चाहती हूँ। मैं पढ़ लिख कर कुछ बनना
चाहती हूं। अपने पैरों पर खड़ी होकर इतना पैसा कमाना चाहती हूं कि मेरी माँ को फिर कोई दुःख न रह जाये।" लड़की की खोई खोई आंखों में आत्मविश्वास झलक रहा था।
"पापा अच्छा कमाते हैं। मम्मी दिखने में कम अच्छी है पढ़ी लिखी भी नही है। इसलिये उनको दूसरी पसंद आ गयी। वो अपनी पत्नी बदल सकते है। मैं अपनी माँ नही बदल सकती, सर्टिफिकेट में माँ का नाम तो बदल सकती हूँ। पापा ने पत्नी बदल कर मम्मी को दुःख दिया है, मैं माँ का नाम बदलकर अपनी प्लानिंग से चलकर माँ को खुशी देना चाहती हूं।"
हिमानी छोटी सी लड़की का मजबूत इरादा देखकर दंग रह गयी। सोचने लगी क्या करूँ ? रिकॉर्ड्स में नाम बदलना आसान तो नही है पर असंभव भी नही है। असंभव नही है तो न्यायसंगत भी नही है। एक अध्यापक की ज़िंदगी में कभी कभी ऐसे मुश्किल पल भी आ जाते हैं।
©® Twinkle Tomar Singh
दीवाली पर कुछ घरों में दिखते हैं छोटे छोटे प्यारे प्यारे मिट्टी के घर माँ से पूछते हम क्यों नहीं बनाते ऐसे घर? माँ कहतीं हमें विरासत में नह...