जलती है,सूखती है,मरती है,कुचली जाती है
जिजीविषा हरी दूब सी है फिर उग आती है
Thursday, 31 January 2019
Wednesday, 30 January 2019
Monday, 28 January 2019
मणिकर्णिका
#मणिकर्णिका
जब मणिकर्णिका के संवादों पर हॉल में तालियाँ गूंजती है, तो न मालूम क्यों लगता है हम एक हैं। आखिर मेरे दिल में भी वही भाव उठ रहे हैं जो दूसरों के दिल में उठ रहे हैं।
शायद लक्ष्मीबाई पर बनी ये पहली फ़िल्म है जो हम सब देख रहे हैं। रोज़ हम अपनी ज़िन्दगी में इतने व्यस्त हैं कि वाकई 15 अगस्त और 26 जनवरी को छोड़कर बाकी दिनों देशभक्ति हममें सोती रहती है। क़िताबों में कोर्स की तरह पढ़ी गयी शौर्यगाथायें दिमाग़ में अंकित तो है, पर उन्हें शिद्दत से महसूस करने के मौके कम ही आये।
मणिकर्णिका भी बस इसीलिए देखनी चाहिये।एक पितृसत्तात्मक समाज में झांसी की बागडोर एक रानी के हाथ में आज कहानी के रूप में देखना सहज लग रहा है पर उस समय बिल्कुल भी नही रहा होगा। उस पर अंग्रेज़ो से जूझना वाक़ई मुश्किल रहा होगा।
मणिकर्णिका इसलिये भी देखना कि एक संतान विहीन विधवा को समाज ज़्यादा सम्मान की दृष्टि से नही देखता। न तब न अब। फिर वो चाहे शाही परिवार की ही क्यों न हो। ऐसे में किस प्रकार रानी लक्ष्मीबाई ने शासन सत्ता हाथ में ली होगी और सबको अपने पक्ष में किया होगा ?
मणिकर्णिका इसलिये भी देखनी चाहिये और अपने बच्चों को दिखानी चाहिये कि बस हम इतना ही पढ़ कर न रह जायें कि झांसी के किले से रानी अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांध कर कूदी, वहां से कालपी पहुंची, फिर ग्वालियर पहुंचकर उसने सेना का संगठन किया। उन्होंने ये सब वास्तव में कैसे किया होगा।
मणिकर्णिका इसलिये भी देखना चाहिये कि अंत में जब रानी लक्ष्मीबाई आत्मसमर्पण न करके स्वयं को अग्नि के हवाले कर देती है कि अंग्रेज उसका सर काट कर झांसी के किले में लटका न सकें ,तो आपको उनके साथ सहानुभूति होती है, पर गर्व भी होता है।
मणिकर्णिका इसलिये भी देखना कि उस जमाने की रानी ने पुरुषों से लोहा लिया तो इस दौर में क्वीन कंगना ने भी पुरुष समाज के आगे घुटने नही टेके। जब लगभग आधा बॉलीवुड उसके ख़िलाफ़ है,उसने अपने पर विश्वास नही खोया, खुल कर बोला बिना डरे, और अपनी अभिनय क्षमता का एक बार फिर से लोहा मनवाया है।
प्रशिक्षण से निखरी तलवारबाज़ी, उसके लिए जरूरी बॉडी पॉशचर, सहजता से की गई घुड़सवारी जैसे स्वयं ही वो रानी हो और बरसों से वो ऐसा करती रही हो, हर एक फ्रेम में प्रभावशाली भाव भंगिमा व चाल ढाल और जबरदस्त अभिनय उससे प्रेम करने को आपको मजबूर कर देगा।
कुछ जगह फ़िल्म ढीली जरूर पड़ती है, पर उतना अनदेखा किया जा सकता है। आख़िर बाकी फ़िल्म में देखने लायक बहुत कुछ है कॉस्ट्यूम्स, आर्ट डायरेक्शन, सेट्स, गीत संगीत सब लाज़वाब है।
Twinkle Tomar Singh 💕
Saturday, 26 January 2019
गणतंत्र दिवस
आज गणतंत्र दिवस था। लेकिन उसे पता तक नही था कि ये क्या होता है। उसे कभी स्कूल नही भेजा गया था। वो मंत्रमुग्ध सी अपने भाई को देख रही थी जो अपने स्कूल में होने वाली परेड और खेलकूद में भाग लेने के लिये तैयार हो रहा था। उसने सफ़ेद पैंट, सफ़ेद शर्ट पहन रखी थी और हाथ में तिरंगा रिबन बांध रहा था। आख़िर में उसने अपने गालों पर तिरंगा पेंट किया , अपनी बहन को चिढ़ाया और जोश से भारत माता की जय बोलते हुये भाग गया।
उसके जाने के बाद उसने ब्रश रंगों में डुबाया और अपने गालों पर एक तिरंगा पेंट कर लिया जो जल्द ही उसके आंसुओं से धुल गया।
Twinkle Tomar
Thursday, 24 January 2019
अजूबा
उसे जाने दिया मैंने अंदर।
कुछ रेज़गारी लेकर वो आया था। यूनिफार्म पहने बच्चों की पंक्ति में अकेला वही मैले कुचैले कपड़ों में अलग नज़र आ रहा था।
बाहर दुनिया उसे अजूबा समझ रही थी। और उसे अंदर अजायबघर में अजूबे देखने थे।
Twinkle Tomar Singh
Monday, 21 January 2019
ओ स्त्री कल आना..
हमारा घर बंद गली का आख़िरी घर था। लोग गली सुनसान पाकर हमारे घर के बाहर की नाली में मूत्र विसर्जन कर जाते थे, जिससे हमारी बाउंड्री वाल भी गंदी हो जाती थी। जब भी मैं घर से बाहर निकलती तो भीगी हुई दीवार देखकर मेरा ख़ून खौल जाता।
हमने इस समस्या से छुटकारा पाने के सारे प्रयास कर डाले , पर सब विफल रहे।
अंततः हमने बाहरी दीवार पर एक स्लोगन लिख दिया और साथ में नींबू और हरी मिर्च भी टाँग दिये।
स्लोगन था - ओ स्त्री कल आना !
और यह काम कर गया। ऊपरी शक्ति के श्राप के भय ने इस समस्या को हल कर दिया।
Twinkle Tomar Singh
Wednesday, 16 January 2019
कर्म का हथकरघा
ग्रहों में भाग्य टटोलना
नक्षत्रों से क़िस्मत खंगालना
हाथ के छुरी कांटों को
उल्टा रख देना है
कर्म के हथकरघे पर
बुने जाते है ख़्वाब
तब हासिल होती है
चादर जो छोटी न पड़े
©® Twinkle Tomar Singh
Monday, 14 January 2019
शुरुआत
बेटी मैथ्स टेस्ट में फ़ेल हो गयी थी। उसने रोते हुये माँ को कोसा। "क्लास में सब ट्यूशन पढ़ते हैं, तुम मत भेजना मुझे ट्यूशन के लिये। जब मैं हाई स्कूल में फ़ेल हो जाऊंगी, तब तुम्हें अक्ल आएगी।"
शांति के लिये उसकी स्कूल की महंगी फ़ीस ही भारी पड़ रही थी फ़िर ये ट्यूशन का खर्चा..
जब बेटी सो रही थी, शांति ने उसकी मैथ्स बुक उठायी। हाईस्कूल तक मैथ्स में तेज होने के बावजूद उसके पिता ने आगे नही पढ़ाया। वो जीवन में पिछड़ गयी ,उसकी बेटी नही पिछड़ेगी। उसकी मैथ्स टीचर बनकर उसे नई शुरुआत करनी होगी।
Twinkle Tomar
Friday, 4 January 2019
चतुर अभौतिक वैज्ञानिक
पूर्ण और शुद्ध दुःख
असंभव है मानव देह में
पूर्ण और शुद्ध आनंद
भी संभव नही इस देह में !
भाप बने अणु त्याग देते हैं
खौलते द्रव के तट को
पराकाष्ठा को प्राप्त करते हैं
गतिज ऊर्जा के वेग से !
न पूर्ण रूप से दुःख में खौलने देगा
न ही आनंद के पलों में उबाल देगा
मोक्ष के मार्ग से भटकाया है
चतुर अभौतिक वैज्ञानिक ने !
©® Twinkle Tomar Singh
Thursday, 3 January 2019
मोज़ेक
एक हादसा ही
काफी होता है
शीशे को चटखाने को
टूटे और बिखरे हुये लोग
अपने हिस्सों को बटोर के
मुक़म्मल शीशा बनने की
कोशिश में रहते है,
बहुत लुभावने हो जाते है
ख़ूबसूरत और रंगबिरंगे भी,
पर साबुत शीशे की तरह नही
एक मोज़ेक की तरह !
©® Twinkle Tomar Singh
Wednesday, 2 January 2019
पुलिस अंकल , आप मेरी माँ को डांट लगा दो
"आंटी, पुलिस अंकल का घर कहाँ है ?"
उस छोटी सी बच्ची की बात सुनकर सड़क पर जाती महिला चौंक पड़ी। उसे लगा ये छोटी सी बच्ची अपने घर का रास्ता भूल गयी है। उसने तुरंत इस बच्ची को पुलिस स्टेशन पहुंचाया जिससे ये अपने माता पिता तक सही सलामत पहुंच सके।
मगर पुलिस स्टेशन पहुंच कर जो सच्चाई सामने आई उसे सुनकर सब दंग रह गये। बच्ची ने वहां तैनात चौकी प्रभारी से अपनी माँ की शिकायत की। उसकी शिकायत ये थी कि उसकी माँ उसके छोटे भाई का ज़्यादा धयान रखती हैं, उसे ज़्यादा प्यार करती हैं और उसे कम।
ये घटना है सन्त कबीर नगर, उत्तर प्रदेश की। जहां चौकी इन्चार्ज जितेंद्र कुमार यादव थे। उनके पास 17 दिसम्बर 2018 को अपनी मां की शिकायत लेकर पहुंचने वाली इस छोटी सी बच्ची का नाम है फ़लक। और इसकी उम्र है मात्र साढ़े तीन साल।
अपने घर से तीन सौ मीटर दूर स्थित मदरसे में एल के जी मे पढ़ने वाली फ़लक ने चौकी प्रभारी जितेंद्र यादव को बताया कि वो अपनी माँ से बहुत ज्यादा नाराज़ है। कारण ये है कि उसकी माँ उसके छोटे भाई को ज़्यादा प्यार करती है और उसी में लगी रहती है। उसकी एक और शिकायत है कि मां उसे रोज़ स्कूल भी नही भेजती। उसने उनसे विनती की - " आप चलकर मेरी माँ को डांट लगा दीजिये।"
चौकी प्रभारी इस अजीबोगरीब केस पर हंसे बिना नही रह सके। उन्होंने अपने साथ कुछ ग्रामीणों को लिया और उसे उसके घर पहुंचाने चल दिये। घर पहुंच कर उसने एक और शिकायत की - देखिये मेरी माँ मुझे पुआल पर सुलाती है। अपने पास नही सुलाती।"
चौकी प्रभारी जितेंद यादव ने फ़लक के पिता मकसूद खान जो कि एक मजदूर है और माता आसमां खातून से बात की। दोनों ने बताया कि फ़लक बेटे की ज्यादा देखभाल से गुस्सा रहती है। इसे ये नही समझ आता कि वो अभी छोटा है और उसे ज़्यादा देखभाल की जरूरत है। उसे लगता है कि हम फ़लक को कम प्यार करते हैं। चौकी प्रभारी ने फ़लक को उसके माता पिता को सौंप कर अपने कर्तव्य का पालन किया, उन्हें इसका ध्यान रखने को कहा और इस केस को बंद किया।
तीसरे दिन जब वो दुबारा फ़लक का हाल चाल लेने उसके घर पहुंचे तब भी उस की शिकायतें खत्म नही हुई थीं। उसने अपने भाई की ओर इशारा करते हुये कहा कि देखिये बाबू को स्वेटर पहना रखा है मुझे नही। चौकी प्रभारी का हंसते हंसते बुरा हाल हो गया। उन्होंने उसकी ज़िद पर उसे एक स्वेटर भी खरीद के दिला दिया।
इस केस में साढ़े तीन साल की बच्ची की निडरता पर भले ही हमें आश्चर्य हो और उसकी मासूम शिकायत पर हमें हंसी आ रही हो पर इस बच्ची ने परिवार की एक बड़ी सच्चाई पर सोचने को मजबूर कर दिया है। बच्चों में अपने छोटे भाई बहनों को लेकर ईर्ष्या की भावना पनपती है। ये स्वाभाविक भी है क्योंकि दूसरे बच्चे के जन्म के बाद माता पिता बड़े बच्चे को समय कम दे पाते है पर इस समस्या की ओर उन को विशेष ध्यान देना चाहिये, जिससे कि ये भावना उनके मन में कुंठा का रूप धारण न कर पाये। अगर बच्चा ज्यादा आक्रामक है, तो ये भी संभव है कि वो अपने छोटे भाई या बहन जिससे वो ईर्ष्या करता है, उसे कोई नुकसान पहुंचा दे।
ऐसे में इन बच्चों का विषय ख़्याल रखना चाहिये। उन्हें समझाना चाहिये कि छोटे बच्चे को अधिक देखभाल की जरूरत है, क्योंकि अभी वो बहुत छोटा है। बड़े बच्चे को उसके हर एक काम इन्वॉल्व करें। किसी भी कार्य को करने पर उसकी प्रशंसा करें। उसे पुरुस्कार दें। उसे ये कहीं से भी न लगे कि उसे नेगलेक्ट किया जा रहा है। संभव हो तो उसे अपने पास ही सुलायें या पिता उसे अपने साथ सुलाया करें क्योंकि छोटा बेबी माँ के पास सोता है।
फ़लक जैसे न जाने कितने बच्चे ऐसे होंगे हमारे परिवारों में जिन पर हमने ध्यान न देकर उन्हें अनजाने में अपने भाई या बहन का दुश्मन बना दिया होगा।
©® Twinkle Tomar Singh
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